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आज के बड़का दानव

अभिच कुन के गोठ हवै। हमर रयपुर म घाम ह आगी कस बरसत रिहिस, जेखर ले मनखे मन परसान रिहिस। मेहा एक झन संगवारी के रद्दा देखत एक ठन फल-फूल के ठेला के तीर म बैठै रहव। ओ ठेला वाला करा अब्बड झन मनखे मन आतिस, अऊ अपन बड़ महँगा जिनिस लेके चल देवय। आप मन ह सोचत होहू कि फल-फूल वाला करा काय महाँगी समान होही? ओ समान रिहिस गुटका, बीड़ी, माखुर, सिगरेट, जरदा जैसे निशा के समान। असल म वो ठेला वाला मेर फल-फूल, कुरकुरे-पापड़ी के संग म निशा क समान घलो राखे रिहिस। ऊँहा बिकट मनखे आवय फेर फल-फूल बर निहि, बीड़ी-माखुर बर। आघूच म टेरैफिक पुलीस मन गाड़िवाला मन ऊपर चालान बनावत रिहीस, फेर बिन कोनो रोक-टोक के वो ठेला म मनखे मन के मौत के समान बेधड़क बेचात रिहिस।



आज कुन मनखे मन हा ये सबो निशा अऊ जानलेवा समान मन के आदत बना डारे हवै। आज मनखे मन ल एखर बिना जिंदा रहेबर अलकरहा होगे हवै। मनखे मन ह हवा, पानी असन ये निशा समान मन ल घलो जिनगी म मिझार डारे हवै, जानथे तभो कि येहा हमर जान के बैरी हरै। आज के लईका मन ए मन म फँसगे हवै। आज कुन बीड़ी-सिगरेट पियई ल फेशन बना डारे हवै। ये सबो के गलत आदत लईका मन के उपर हमर बड़े सियान मन के सेती होवत हवै। लईका मन ल सिखाथै कि ए मन ला हाथ नी लगाहू अऊ खुदेच येला पिथे-खाथै अऊ लईका मन ल घलौ देखाथै। कहावत घलो हवै जैसने बड़का मन करथे ओखर नकल ननकी लईका मन करथे। फल-फूल ल छोड़के ईहाँ बीड़ी-माखुर म पईसा गँवाके अपन मौत ल बुलावा देथे।

ए सबो निशा के समान मन ह जानलेवा हरै, जउन ला सरकार के डाहर ले घलो बढावा देवत हवै काबर कि ए सबो समान म सरकार ल बड़ कन टैक्स मिलथे। फेर मेहा बतायेबर चाहथो कि जतका टैक्स ईहाँ ले सरकार ल मिलथे ऊखर ले कतको जादा पईसा सरकार ल एखर से होवईया बीमारी ल मिटाये बर दवाई के कम्पनी मन ल देबर पड़थे। येहा त ऊही बात होगे ना कि फोकट बर मेहनत ले गढ्ढा खन, ताहन ओला फेर ले पाट।

भारत के एक झन मनखे होये के सेती सरकार अऊ हमर समाज मन के बड़े पद म बैठे सियान मन ले मोर एक ठन बिनती हे कि ये सबो निशा के समान मन ल धिरलगहा सहीच फेर चूकता बंद कराके हमर समाज, गांव, सहर अऊ देश के जम्मो लईका सियान मन ल ये चिखला भराय जिनगी ले बाहर निकाल के अऊ देश ला विश्वगुरू बनाय के डाॅ. अब्दुल कलाम जी के देखय सपना ल पूरा करेबर अपन योगदान देवव। ये सबो निशा के समान ह बिकहिच निहि ता दुरघटना नी होवय, घर-परवार म झगरा नी होवय, बिमारी कम होही अऊ हमर देश हा आघू बाढ़ही। वईसने घलो ये बीड़ी-माखुर ले कोनो फाईदा नहिच हवै, फेर नकसान आनी-बानी के हवै। ये सबो ल चुकता खतम कराके हमर देश क जम्मो लईका सियान मन बने रद्दा म लाय के बादेच म राज्य अऊ देश ल आघू बढ़ाये जा सकथे। निहिते आप मन खुदे सोच सकत हवौ कि एखर ले समाज के संगे-संग देश ला काय नकसान हो सकत हवै ?

पुष्पराज साहू “राज”


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