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कविता

अकती बिहाव

मड़वा गड़ाबो अँगना मा,
सुग्घर छाबो हरियर डारा।
नेवता देबो बिहाव के,
गाँव सहर आरा पारा।।

सुग्घर लगन हावे अकती के,
चलो चुलमाटी जाबो।
शीतला दाई के अँगना ले,
सुग्घर चुलमाटी लाबो।।

सात तेल चघाके सुग्घर,
मायन माँदी खवाबो।
सुग्घर सजाबो दूल्हा राजा,
बाजा सँग बराती जाबो।।

कोनो नाचही बनके अप्सरा,
कोनो घोड़ा नचाही।
सुग्घर बजाके मोहरी बाजा,
सुग्घर बराती परघाही।।

पंडित करही मंत्र उच्चारण,
मंगल बिहाव रचाही।
सात बचन ला निभाहू कहिके,
सातो वचन सुनाही।।

धरम टिकावन होही सुग्घर,
पियँर चउँर रंगाय।
दाई टिकत हे अचहर-पचहर,
ददा टिके धेनू गाय।।

रोवत-रोवत दुलही बिचारी,
दाई-ददा ले आसिस पाही।
डोली मा होके सवार सुग्घर,
अपन पती के संग जाही।।

नवा बहुरिया ला घर मे लानत,
सुग्घर आरती सजाय हे।
मई पिला आनंद मुसकावत,
सउँहत लक्ष्मी आय हे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156