लाकडाउन के बीच कई दिन के बाद असम म रहइया कुछ छत्तीसगढ़िया मनखे मन ले बातचीत होइस। पहली बात होइस बामनवाड़ी निवासी ललित साहू ले जेकर काली जन्मदिन रहिस। ललित के पूर्वज धमतरी तीर के जंवरतला नाम के गांव ले चाय बागान म काम करे बर असम गे रहिन जिहां अभी उंखर पांचवा पीढ़ी निवास करत हे। अभी हाल म ललित मन तीनो भाई अऊ ओखर पिता, सबो चिकित्सा के क्षेत्र म काम करत हें अऊ कोविड-19 के सेती सबो के अपन-अपन व्यस्तता हे।
दुसर बात मोर होजाई निवासी डॉ. जोनेस्वर साहू अऊ उंखर पत्नी सपना ले होइस। आज बड़ा सुखद अचरज होइस, एखर ले पहिली जब मोर सपना ले बात होवत रहिस त अक्सर वो ह हिंदी म बातचीत करत रहिस अऊ ओखर पीछू ओखर ये तर्क रहय के काबर के वो डिब्रूगढ़ म रहिथे जिहां वोखर आसपास छत्तीसगढ़ी बोलइया मनखे कम हे, ए खातिर ओखर अधिकतर अभ्यास असमिया म बात करे के हे, या फेर हिन्दी म, येकरे आधार म मैं ह आज सपना ले हिंदी म बात करे शुरू करेंव अऊ मोर खुशी के ठिकाना नइ रहिस जब सपना ह छत्तीसगढ़ी म बात करना शुरू करिस। सपना ह बताइस के वोखर ससुराल म सबो छत्तीसगढ़ी म ही बात करथें ते खातिर अब वो खुदे छत्तीसगढ़ी म बातचीत करथे। जोनेश्वर फिलहाल कोविड-19 के चलत अड़बड़ व्यस्त रहिथे अऊ सपना अपन पढ़ाई लिखाई म व्यस्त हे ताकि वो असम लोक सेवा आयोग के परीक्षा देके एक अधिकारी बन सकय। जोनेश्वर के पिता जगत नारायण जी ओ जिला के एक उत्कृष्ट कृषक माने जाथे, अऊ वइसनहे ऊंखर चाचा जागेश्वर घलोक ह।
आज मोर नहरानी निवासी भवन केवट ले बातचीत तको होइस जऊन एक रिटायर्ड फौजी हे अऊ छत्तीसगढ़ी समाज बर बहुत काम करत हें। अभी हाल म लाकडाउन चलत ऊंखर व्यवसाय म तालाबंदी चलत हे ए खातिर घर ले ही छोटा-मोटा काम करत हें अऊ अपन खेती किसानी म ध्यान देवत हें। बहुतेच ऊर्जावान भवन के छत्तीसगढ़ के बहुत अकन मनखे मन ले सीधा संपर्क हे जेकर से उंखर अक्सर बातचीत होत रहिथे। ऊंखर कुछ परिवार वाले अभी घलोक छत्तीसगढ़ म निवास करत हें।
मोर अगला बातचीत सापेखाटी निवासी मौसमी ले होइस। मैं ह ओखर से पूछेंव के आजकल डिब्रूगढ़ म हस या अपन गांव म। ओ हर जवाब दीस अभी तो गांव म हंव फेर मैं अब डिब्रूगढ़ म नइ रहंव आजकल शिलांग म रहिथंव। में भुला गए रहेंव के मौसमी आजकल केंद्रीय विश्वविद्यालय शिलांग जऊन ल उत्तर पूर्व पर्वतीय विश्वविद्यालय के नाम ले जाने जाथे उहां बायो टेक्नोलॉजी म पोस्ट ग्रेजुएशन करत हे। मौसमी के पूरा परिवार बहुतेच शिक्षित हे अऊ ओ मन सबो भाई बहिनी अलग-अलग जगा म ऊंचहा दर्जा बर पढ़ाई करत हें। ऊंखर परिवार के असम म पहिली ले बड़ ख्याति रहे हे अऊ ऊंखर दादाजी गुरु अगम दास जी ल एक हाथी भेंट करे रहिन जऊन ल पहुंचाए बर ओ मन उही रेलगाड़ी म बइठके रायपुर तक आए रहिन जऊन रेलगाड़ी म हाथी ल असम ले इहां लाए गए रहिस।
असम के छत्तीसगढ़ी मनखे मन ले मोर जब भी बात होथे एक अजीब सा आनंद महसूस होथे। डेढ़ सौ साल के सफर के बाद घलव घलोक उमन म छत्तीसगढ़ी भाखा अऊ संस्कृति बर जऊन लगाव हे, वो अनुकरणीय हे। अऊ छत्तीसगढ़ के मनखे मन बर तो ओ मन हमेशा पलक पाँवड़ा बिछाए रहिथें। ये दृष्टि ले मैं एक भाग्यवान मनखे हंव के जब भी मैं असम जाथंव त मोला उहां रहइया सबो उमर के छत्तीसगढ़ी मनखे मन ले जऊन मया अऊ सम्मान मिलथे ओखर शायद मैं हमेशा ऋणी रइहूं।
– अशोक तिवारी