छेरी ल बेचों मेढ़ ल बेचौं, बेचों भंसी बगार। बनी भूती मा हम जी जाबो सोबोन गोड़ लमाय॥ छरी न बेचों, मेढ़ी न बेचौं न बेचौं भैंसी बगार। मोले मही मां हम जी जाबो, अउ बेचौं तोही ल घलाय॥ कोन तोरे करही राम रसोई, कोन करे जेवनार। कोन तोरे करही पलंग बिछौना, कोन जोहे तोरे बाट॥ दाई करिहै रामे रसोई, बहिनी करे जेवनार। सुलखी चेरया पलंग बिछाही, अउ मुरली जोहे मोर बाट॥ सास डोकरिया मरहर जाही नंनद पढठोहूं ससुरार। सुलखी चेरिया हाटन बिकाही, अउ मुरली नदी माँ बोहाय॥ दाई ल…
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पारंपरिक देवार-गीत
मार दिस पानी बिछल गे बाट ठमकत केंवटिन चलिस बजार केंवटिन गिर गे माड़ी के भार केवट उठाये नगडेंवा के भार लाई मुर्रा दीन बिछाय शहर के लइका बिन बिन खाय अपन लइका ला थपड़ा बजाय पर के लइका ला कोरा मां बइठाय दिन खवाय मछरी भात रात ओढ़ाइस मछरी के जाल अलको रे केंवटिन मलको रे धार सुख सनीचर मंगलवार भरे पूरा मां घोड़ा दौड़ाय सुक्खा नदिया मां डोंगा चलाय रात के केंवटिन डफड़ा बजाय दिन के केंवटिन खपड़ा बजाय एक ठन सीथा मां फुल के मरे एक बूंद…
Read Moreपारंपरिक फाग गीत
श्याम बजा गयो बीना हो एक दिन श्याम बजा गयो बीना चैत भगती, बैस़ाख लगती, जेठ असाढ़ महीना सावन में गोरी झूले हिंडोलना, भादो मस्त महीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। कुंवार भागती, कातिक लगती अगहन पूस महीना माघ में गोरी मकर नहावे, फ़ागुन मस्त महीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। सुंदर सेज बिछे अंटा पर, पौढ़े नारी नगीना चोली के बंद तड़ातड़ टूटे अंचरा पोछे पछीना हो … एक दिन श्याम बजा गयो बीना। पारंपरिक फाग गीत
Read Moreपारंपरिक छत्तीसगढ़ी सोहर गीत
यशोदा से देवकी कहती है कि ‘नून-तेल’ की उधारी होती है, पैसे की भी उधारी होती है, बहन किन्तु अपने कोख की उधारी नहीं होती.. विधन हरन गन नायक, सोहर सुख गावथंव। सातो धन अंगिया के पातर, देवकी गरभ में रहय वो, बहिनी, विघन हरन गन नायक, सोहर सुख गावथंव। साते सखी आगे चलय, साते सखी पीछे चलय, बहिनी बीच में दशोमती रानी चलत हे, जमुना पानी बर वो, बहिनी कोनो सखी बोहे हावय हवला, मोर कोनों बटलोइहा ला वो, कोनो सखी बोहे माटी के घइला, चलत हे जमुना पनिया…
Read Moreकविता : बुढ़ापा
एके झन होगे जिनगी रिता गे रेंगे बर सफर ह कठिन होगे जिये बर अउ मया बर जीव ललचथे निरबल देह गोड़ लड़खड़ाते आंखी म अपन मन बर असीस देवथे हमर बुजुर्ग मन जेला बेकार अउ बोझ समझेंन एक ठन कोनहा ल उंखर घर बना देन सिरतोन म बुढ़वा होना बोझ हरे घर परिवार बर बिधन बाधा हरे आज के पढ़ें लिखे लोग बर आवव सोचव अउ विचार कर काबर काली हमरो बारी हे इही मोहाटी ले गुजरे के हमरो पारी से ललिता परमार बेलर गांव, नगरी
Read Moreनान कुन कहानी : ठौर
“मारो मारो”के कोलहार ल सुन के महुं ह खोर डाहर निकलेव।एक ठन सांप रहाय ओखर पीछु म सात-आठ झन मनखे मन लाठी धऱे रहाय। “काय होगे”में केहेव।”काय होही बिसरु के पठेवा ले कुदिस धन तो बपरा लैका ह बांच गे नी ते आज ओखर जीव चले जातिस”त चाबिस तो नी ही का गा काबर वोला मारथव” “वा काबर मारथव कहाथस बैरी ल बचाथस आज नी ही त काली चाब दीही ता””हव गा एला छोड़े के नो हे मारव “अइसे कहिके भीड़ ह वोला घेर डारिन।तभे वो सांप ह कते डाहर…
Read Moreछत्तीसगढ़ की संस्कृति पर गांधीवाद का प्रभाव
शोधकर्ता: खोबगड़े, रजनी गाइड : चंद्राकर, सुभाष कीवर्ड: संस्कृति पूर्ण तिथि: 2006 विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर गांधीवाद का प्रभाव अनुक्रमणिका अध्याय प्रथम : छत्तीसगढ़ की संस्कृति संस्कृतिक का परिचय, संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा, संस्कृति संरचना, छत्तीसगढ़ की संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में, छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, छत्तीसगढ़ का लोक साहित्य, कवि समाज की स्थापना, छत्तीसगढ़ की लोक भाषाएँ, छत्तीसगढ़ की लोक बोली, छत्तीसगढ़ शब्द कोष एवं विस्तार छत्तीसगढ़ी लोक गीत करमा गीत, सुवा गीत, ददरिया, पन्डवानी गीत,बांस गीत छत्तीसगढ़ी लोक कलाएँ आदिवासी लोककला छत्तीसगढ़ी लोक…
Read Moreछत्तीसगढ़ के व्यंग्यपरक हिंदी उपन्यासों की रचनधर्मिता
शोधकर्ता: सुराना, अभिनेष गाइड : शर्मा, शैल कीवर्ड: व्यंग्यपरक उपन्यास पूर्ण तिथि: 2005 विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ के व्यंग्यपरक हिंदी उपन्यासों की रचनधर्मिता अनुक्रमणिका अध्याय – 1 : छत्तीसगढ़ की राजनीतिक-सामाजिक स्थितियाँ और छत्तीसगढ़ का व्यंग्य-लेखन 1.0 छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि 1.1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 1.2 सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 1.3. छत्तीसगढ़ का व्यंग्य-साहित्य एवं व्यंग्यकार 1.4. छत्तीसगढ़ में व्यंग्यानुकूल सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियाँ 1.5. छत्तीसगढ़ में गद्य-व्यंग्य लेखन एवं व्यंग्य उपन्यासकार 1.6. शोध-कार्य की प्रविधि एवं सीमाएँ 1.6.1. पूर्व शोधकार्य पर एक दृष्टिकोण 1.6.2. शोध-कार्य की…
Read Moreछत्तीसगढ़ी कहानियों मे सांस्कृतिक चेतना
शोधकर्ता: ध्रुव, यशेश्वरी गाइड : शर्मा, शीला कीवर्ड: छत्तीसगढ़ी चेतना पूर्ण तिथि: 2014 विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ी कहानियों मे सांस्कृतिक चेतना अनुक्रमणिका भूमिका -सांस्कृतिक पृष्ठभूमि व सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति के विविध आयाम अध्याय -एक कहानी की परिभाषा, स्वरूप-प्रकार कहानी की यात्रा-कथा समय-निर्धारण, आधार एवं प्रवृत्तियाँ छत्तीसगढ़ी प्रमुख कहानीकार प्रमुख कहानियाँ छत्तीसगढ़ी प्रमुख कहानीकार एवं कहानियाँ (छायाचित्र) अध्याय -दो सांस्कृतिक चेतना की समझ व उसकी अभिव्यक्ति संस्कृति : परिभाषा, स्वरूप-प्रकार संस्कृति के तत्व संस्कृति – ग्रहण की कहानियाँ अध्याय – तीन छत्तीसगढ़ी कहानियों में संस्कृति की अभिव्यक्ति रहन-सहन,…
Read Moreलोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला। जांगर टोर कमाने वाला है कंगला के कंगला। देखत आवत हन शासन के शोसन के रंग ढंग ला। राहत मा भुलवारत रहिथे छत्तीसगढ़ के मनला। हमरे भुंइया ला लूटत हें, खनथें हमर खनिज ला। भरथे अपन तिजोरी, हरथें हमर अमोल बनिज ला। चोरा चोरा के हवै ढोहारत छत्तीसगढ़ के वन ला। लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला। लाठी गोली अउर बूट से लोकतंत्र चलवाथें। अइसन अफसर छांट छांट के छत्तीसगढ़ मा लाथें। नेता मन सहराथें अइसन शासन के हुड़दंग ला। लोटा धरके…
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