भोजली तिहार : किसानी के निसानी

हमर छत्तीसगढ़ देस-राज म लोक संसकिरीति, लोक परब अऊ लोक गीत ह हमर जीनगी म रचे बसे हाबय। इहां हर परब के महत्तम हे। भोजली घलो ह हमर तिहार के रूप म आसथा के परतीक हावय, भोजली दाई। भोजली ह एक लोक गीत हावय जेला सावन सुकुल पछ के पंचमी तिथि ले के राखी तिहार के दूसर दिन याने भादो के पहिली तिथि तक हमर छत्तीगढ़ राज म भोजली बोय के बाद बड़ सरद्धा भकती-भाव ले कुंवारी बेटी मन अऊ ़नवा-नेवरिया माईलोगन मन गाथे। असल म ये समय धान के…

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छत्तीसगढ़ के गारी -प्रतिकात्मक अभिव्यक्ति

हर मनखे के मन म सकारात्मक-नकारात्मक, सुभ-असुभ भाव होथे। मन के ये सुभ-असुभ बिचार हर समय पा के अभिव्यक्त होथे। जब परिवेस बने रहिथे तब बानी ले बने-बने बात निकलथे अउ जब परिवेस हर बने नइ राहय तब मुँहू ले असुभ अउ अपशब्द निकलथे। बानी ले शब्द के निकलना अपनेआप म अन्तरभाव के परकटीकरन आय। अन्तरभाव के अभिव्यक्ति हर संस्कार अउ शिक्षा ले सरोकार रखथे। यदि ये बात के परतीत करना हे, त कोनो समाज के सामाजिकार्थिक दसा, शिक्षा के संगे-संग बिचार अभिव्यक्ति तरीका के अध्ययन करे जा सकत हे।…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – गाली, वर्जनाएँ

गाली – रोगहा, कोढि़या, बन्चक, रांड़ी, रण्ड़ी, भोसड़ामारी, चोदरी, बेसिया, चरकट, किसबीन, चंडालीन, बकरचोद, रांड़ी, भौजी, किसबीन, भडुवा, लफंगा, हरामी, सारा, चुतिया, चुच्चा, बेसरम, चंडाल, दोगला, लबरा, जुठहा, जुठही, रोगहा, किसबा, कनचोदवा, मादरचोद,  चोट्टा, चोदू, चोदूनंदन, भोसडीवाला, टोनही, टोनहा, कुरगहा, जलनकुकडा, टेटरही, रेंदहा, हेक्कड, पाजी, हिजडा, नलायक, दत्तला, घोंघी, करबोंगी, भकचोदवा, करबोकवा, करलुठी, करजिभि, पेटली, लमगोडवा, बदमास, बरदाओटिहा, परदाकुद्दा, कुबरा, बेर्रा, कनटेरी, कनवा, मरहा, कुसवा, सुसवा, छुछमुहा, गठारन, ननजतिया, हकनीन, कौंवा, उखनू, उखानचंद। वर्जनाएँ (टैबू संरचना) :– शरीर के अंग– नूनू, चोचो, झांट, लवड़ा, पुदी, गट्टा, गांड, पोंद, दुदु, फुर्गा,…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – कृषि संबंधी प्रक्रियाएँ

छत्तीसगढ़ी में कृषि संबंधी प्रक्रियाएँ, जैसे – खातू पलई, खेत जोतई, बोनी, पलोई, बियासी, निंदई-कोड़ई, रोपा, रोपई, दवई डरई, लुवई, डोरी बरई, करपा गंजई, बीड़ा बंधई, भारा बंधई, खरही गंजई, पैर डरई, मिंजई, खोवई, ओसई, नपई, धरई, कोठी छबई, बियारा छोलई, लिपई, बहरई, बसूला/राँपा / बिन्हा/टंगिया/हँसिया टेवई, बेंठ धरई, कलारी चलई, पैर खोवई, पैरावट लहुटई, पैर गंजइ। फसलों की विभिन्न स्थितियाँ– जरई आगे, जामत हे, धान केंवची हे, दूध भरावत हे, पोटरिया गे, भरा गे, बाली आवथे, पोठा गे, पोक्खा-पोक्खा होगे, पोचलियावत है, बदरा पर गे, माहो लग गे, पाकत हे, सूखा गे,…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – गीत, नृत्य

नृत्य – सुवा, करमा, राउतनाचा, डंगचगहा नाचा, बघवा नाचा, ढोलामारी, गम्मत, तमासा, पंथीनाचा, गोंडनाचा, डंडानाच, बिहावनाचा, डिडवानाचा, फी नाचा, बरतिया नाचा, रामनामी, पंडवानी, फाग, जंवारा, गौरा-गौरी, डिड्वानाचा, गांडा, ढोला, तारि-नारि। लोकगीत– छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में वैविध्यता और विशिष्टता को दृष्टिगत रखते हुए उसकी अंतर्वस्तु के आधार पर निम्नप्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है – (क) संस्कार गीत – जन्म-गीत, बधावा, सोहर, बरूवा, बिहाव-गीत, चूलमाटी-गीत, तेलमाटी, माय-मौरी, नहडोरी, परघनी, रातीभाजी या लाली भाजी-गीत, भडौनी, कलेवना, डिंडवानाचा-गीत, भावर, दाईज-गीत, बिदाई-गीत, मरनी-गीत। (ख) ऋतु एवं व्रत गीत – छेरछेरा, सवनाही, कार्तिक स्नान-गीत, नगमत-गीत, फाग…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – कपड़े, आभूषण

पुरुषों के कपड़े – पागा, गमछा, पचहथी, सटका, लिंगोटी, अंगोछा, अंगरखा, कुरता, पागी-पटका, सांफी, सल्लूखा, धोती, लूँहंगी, चड्डी, बनयडडन, गोड्थैला (पैंठ), कमीज, बंगाली-पजामा। महिलाओं के कपड़े – लुगरा, पोलखा, साडी, बिलाउज, साया, लुगरी, कुरथी, इसकट-बिलउज, कुरती, झंगा, फराक, सादालुगरा, सादा के पोइलका, अन्य पहनावे – पनही, भंदड, अतरिया, खुमरी, कमरा, कनपापड़ । जेवर (आभूषण)- मुड़ म पहिरे के (माथा, जुडा, नाक, कान) – पटिय, मांगमोती, बिन्दी, सिंदूर, टिकली-फूंदरी, ढरकऊँवा, लच्छा, लटकन, ढार, लुरकी, बारी, खोंचनी, बेलकांटा, फून्दरा, फीता, झबुआ, बेनी, चौरी, बेनीफूल, करनफूल, अमलीफूल, सूरजमुखी, बाला, तत्तेया, फुली, नथली, ब्लॉक, खूंटी, खिनवा, नगी, जुगजुगी। गर बर…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – संस्कार

संस्कार – छट्ठी (छठी), मुहू जुठारना (अन्न प्राशन संस्कार), झालर उतारना (मुंडन संस्कार), बरवा (जनेऊ संस्कार), मंगनी-जंचनी, बिहाव (विवाह संस्कार), मुह देखउनी, सधउरी (गोद भराई), काठी /लेसना/माटी देना (अंतिम संस्कार)) आगी देना (मुखाग्नि), तिज नहावन (तीसरा करना), दसनहावन (दशगात्र), तेरही (तेरहवाँ करना), बरसी (वार्षिक श्राद्ध)। विवाह संबंधी प्रक्रिया– मंगनी-जंचनी, मंगनी /सगई, चूलमाटी, मड़वा, तेल-हरदी, हरदाही, माई मौरी, नहडोरी, बरात, परघनी, दूधभत्ता, भांवर, टिकावन, बिदा, चौथिया, लिहे बर जाना, गवना। व्यक्ति– ढेड़हा, पगरईत (दूल्हे के पिता, चाचा आदि), लोकड़हीन, सुवासीन, लेठवा, चूल मंदरिहा (दोनो पक्षों का मध्यस्थ) आदि । सामग्री– मर, पर्रा, झाँपी,…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – खानपान

शाकाहार व्यंजन – दार, भात, रोटी, साग, बरा, भजिया, बोबरा, अँईरसा, फरा, सौंहारी, ठेठरी, खुरमी, पेठा, रसाउर, खस्तोरी, धुसका, हथफोड्वा, पपची, देहदौरी, करी, चौसेला, चिलबोबरा, पीठा, तसमही, तिलगुजिया, बफौरी, नूनफरा, भजिया, रोट, घुचकुलिया, बासी, चटनी, अंगाकर रोटी, चिला, कोहरी, फरा, दुधफरा, मुठिया, अट्टरसा, कोढा रोटी, गुझा, कढी, पेंऊस, खुजरी, खीर, सेवड, बघारे भात, खिचरी, फरहार-कतरा, घीव, लाडू- बूँदी, करी, मुर्रा, लाई, मोतीचूर, तिली, मगज, चिरोंजी, छेवारी लाडू, बेसन । मोदक, साबूदाना, पापड, सेतवा, गुरभजिया /गुलगुला भजिया, मिरचा भजिया, लिमउ अथान, आमा अथान, मिरचा अथान, करउंदा अथान, अंवरा / जिमिकांदा अथान,…

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महान लोकनायक अउ समन्वयवादी कबि गोस्वामी तुलसीदास

हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दील भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीत भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिन्दीत भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दीं साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन,…

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नाग पंचमी के महत्तम

हमर भारत देस राज ह खेती-किसानी वाला देस हावय। याने हमर देस ह किरसी परधान देस हावय। नाग देवता ह किसान के एक परकार ले संगवारी ये, काबर के वो ह किसान के खेत-खार के रछा करथे। येखर कारन वोला छेत्रपाल कहे जाथे। छोटे-मोटे जीव जंतु अउ मुसवा ह फसल ल नुकसान करे वाला जीव हावय। ओखर नास करके नाग ह हमर खेत के रछा करथे। सांप ह हमन ल कई परकार के संदेस घलो देथे। सांप के गुन देखे बर हमनकरा गुनग्राही अउ सुभग्राही नजर होना चाही। भगवावन दत्ता़त्रय…

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