गुने के गोठ : मोर पेड़ मोर पहिचान

वासु अउ धीरज ममा फूफू के भाई ऑंय। दूनो झन चार छ: महिना के छोटे बड़ेआय। दूनो तीसरी कक्छा मा पढ़थें। वासु शहर के अँगरेजी इस्कूल मा पढ़थे अउ धीरज गाँव के सरकारी स्कूल मा। धीरज के दाई ददा किसानी करथँय अउ वासु के दाई ददा नउकरिहा हावँय। गर्मी के छुट्टी माँ एसो वासु हा ममा गाँव गइस। आजी आजा खुश होगे। ममा मामी के घलाव मया दुलार पाय लगिस।फेर सबले बढ़िया ओला धीरज लगिस। लइका अपन खेलबर संगवारी खोजथे। ओला अपन जँहुरिया संगवारी मिलगे। दू दिन वासु के महतारी…

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शिव शंकर

शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी  , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी  , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में  , चंदा चमके माथ में । श्रद्धा रखथे नाथ में  , गौरी ओकर साथ में ।। सावन महिना खास हे , भोले के उपवास हे । जेहर जाथे द्वार जी  , होथे बेड़ा पार जी ।। महेन्द्र देवांगन “माटी”  (शिक्षक) पंडरिया …

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

आँसू के कीमत तैं का जनाबे। प्रेम- मोहब्बत तैं  का  जानबे। झगरा हावै धरम अउर जात के, हे असल इबादत तैं का जानबे। आँसू  पोंछत  हावै  अँछरा  मा, दुखिया के हालत तैं का जानबे। सटका बन के  तैं  बइठे  हावस, हे जबर बगावत  तैं  का जानबे। हावै फोरा जी जिनकर  पाँव  मा, उन झेलिन मुसीबत तैं का जानबे। सटका= बिचौलिया, फोरा=फोड़ा, बलदाऊ राम साहू

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कविता: कुल्हड़ म चाय

जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे जमाना चिट्ठी के पढोईया नंदागे गांव ह घलो बिगड़ गे जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे कुनहुन गोरस के पियैया “साहिल” घलो दारू म भुलागे आम अमचूर बोरे बासी ह नंदागे तीज तिहार म अब फैसन ह आगे पड़ोसी ह घलो डीजे म मोहागे का कहिबे मन के बात ल अब अपन संगवारी ह घलो मीठ लबरा होगे जेती देखबे ओती मोबाईल ह छागे घर म खुसर फुसुर अउ खोल…

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कविता : वा रे मनखे

वा रे मनखे रूख रई नदिया नरवा सबो ल खा डरे रूपिया- पैसा धन-दोगानी, चांदी-सोना सबो ल पा डरे जीव-जंतु, कीरा-मकोरा सब के हक ल मारत हस आंखी नटेरे घेरी बेरी ऊपर कोती ल ताकत हस पानी नी गीरत हे त तोला जियानत हे फेर ए दुनिया के सबो परानी ऊपरवाला के अमानत हे तोर बिसवास म पूरा पिरथी ल तोला दे दिस अउ तें बनगे कैराहा-कपटी, लालची अब भुगत अपन करनी के सजा ऊपरवाला ल लेवन दे मजा!! रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)

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किताब कोठी: आवौ भैया पेड़ लगावौ

छत्तीसगढ में बालगीतों का सृजन सबसे पहली बात तो यह कि बाल-गीत या कहें कि बालकों यानी बच्चों के लिए किसी भी विधा में लिखना ही अपने-आप में बडा चुनौती भरा काम है। लेकिन उन सबमें ‘बाल गीत’? इसके लिए गीतकार को (या कहें कि बाल साहित्यकार को) उसी स्तर पर जाना पडता है। स्वयं को बालक बना लेना पडता है और तभी वह बालकों की जुबान पर आसानी से चढ जाने वाले गीत, कविता, कहानी, नाटक, एकांकी आदि का सृजन कर पाता है। यदि यह सब इतना कठिन नहीं…

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सुरता : प्रेमचंद अउ गांव

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित के अनमोल रतन आय। उंकर लिखे कहानी अउ उपन्यास आज घलो बड चाव से पढ़े जाथे। उंकर कहानी ल पढत रबे त अइसे लागथे जानो मानो सनिमा देखत हैं। उंकर कहानी के पात्र के हर भाव ल पाठक ह सोयम महसूस करथे। गांव अउ किसान के जइसन चित्रण उंकर कहानी म पढ़े बर मिलथे वइसन दूसर कहानीकार मन के कहानी म देखब म बहुत कम अथे। गांव ल संउहत गांव बरोबर उही मन कागज म उतारे हे। नानुक रहंव त बड संउक लागे महूं अलगू चौधरी…

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रफी के छत्तीसगढ़ी गीत

रफी साहब….. हिंदी सनिमा जगत के बहुत बड़े नाम आय। जिंकर गुरतुर अउ मीठ अवाज के जादू के मोहनी म आज घलो जम्मो संगीत परेमी मनखे झूमरत रथे। उंकर अवाज के चरचा के बिना हिंदी सनिमा के गीत-संगीत के गोठ ह अधूरहा लागथे। जम्मो छत्तीसगढ़िया मन भागमानी हवय के अतिक बड़े कलाकार ह हमर भाखा के गीत ल घलो अपन अवाज दे हवय। रफी साहब के अवाज म छत्तीसगढ़ी गीत सुनना अपन आप म बड गौरव के बात आय। बछर 1965 के आसपास म जब छत्तीसगढ़ी सनिमा जगत के दादा…

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हिन्दी साहित्य के महान साहित्यकार उपन्यास सम्राट, कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद

हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दीर भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीं भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार हावय। हिन्दीं भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा मन आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दी3 साहित्य के इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल,…

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उत्‍ती के बेरा

कविता, झन ले ये गाँव के नाव, ठलहा बर गोठ, हद करथे बिलई, बिजली, चटकारा, बस्तरिहा, अंतस के पीरा, संस्कृति, तोला छत्तीसगढी, आथे!, फेसन, कतका सुग्घर बिदा, गणेश मढाओ योजना, बेटा के बलवा, बाई के मया, रिंगी-चिंगी, अंतस के भरभरी, बिदेशी चोचला, ममादाई ह रोवय, छत्तीसगढिया हिन्दी, सवनाही मेचका, चिखला, महूँ खडे हँव, जस चिल-चिल, कुकुरवाधिकार, पइसा, तोर मन, होही भरती, छ.ग. के छाव, उत्ती के बेरा, हरेली, दूज के चंदा, अकादशी, निसैनी, प्रहलाद, राजनीति, नवा बछर, गुन के देख, चाकर, बिचार, श्रृंगार अउ पीरा, जीव के छुटौनी, पसार दिये तैं मनोज कुमार श्रीवास्त, शंकरनगर नवागढ, जिला – बेमेतरा, छ.ग., मो. 8878922092, 9406249242, 7000193831 हरेली सखी मितान अउ सहेली, मिल-जुल के बरपेली, खाबों बरा-चिला अउ, फोड्बो नरियर भेली, आज कखरो नई सुनन संगी, मनाबो तिहार हरेली

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