एक रहिस रमिया। एक रहिस केतकी। दूनों एके महतारी के बेटी रिहीन। खारुन नदिया ले चार कोस दूरिहा रक्सहूं बूड़ती मं एक गांव ‘कसही’। भइगे दूनों उहीं रहत रहींन अपन महतारी संग। महतारी ह खाली हाथ रहीस। खेतखार मं बनीभूती करके अपन जिनगी चलावय। रमिया केतकी बिहाव के लइक होगे। दुनों के रूपरंग सोन जइसे जग-जग ले। उंखर भरे जोबन ल देख के सबो उंखरे डहार खिंचावत आवयं। समय अपन रंग देखइस। धान-कर्टई मिंजई खतम होगे, तहां ले बर बिहाव खातिर, सब कमइया किसान मन, लड़का लड़की खोजे बर निकलगें।…
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संत कोटि के अलमस्त कवि बद्रीबिशाल परमानंद
जेन मनखे के रचना मन भले कभू पत्र-पत्रिका के मुंह नइ देखिन, फेर लोगन के कंठ म बिना वोकर रचनाकार के नांव जाने बइठिस अउ सुर धर के निकलिस, उही तो लोककवि होइस. सन् 1917 के रथयात्रा परब के दिन रायपुर जिला के गाँव छतौना (मंदिर हसौद) म महतारी फुलबाई अउ ददा रामचरण यदु जी के घर जनमे बद्रीबिशाल यदु ‘परमानंद’ जी के संग अइसने होए हे. उनला उंकर जीयत काल म ही लोककवि के रूप म चिन्हारी मिलगे रिहिसे. वोकर लोकप्रियता अतेक रिहिसे, जेला देख के हमूं मनला गरब…
Read Moreकविता के थरहा- विसम्भर यादव ‘मरहा’
(सुरता ‘मरहा’ के) अवसान दिवस 10-09-2011 बिना पढ़े-लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुंह अखरा होना बड़ अचरज के बात आए। येला माता सरसती के किरपा अउ कवि के लगन, त्याग-तपसिया अउ साधना के परिनाम केहे जही मंच मं खड़ा होके सरलग 8-10 घंटा कविता पाठ करना कउनो हांसी-ठट्ठा नो हे। फेर ‘मरहा’ जी हा ये रिकार्ड बनइस तहां ले कई जघा ‘मरहा’ नाइट के आयोजन घलो करे गिस। बच्छर के 365 दिन मा 300 दिन कवि सम्मेलन के मंच मा रहय। ‘मरहा’ जी हा कतको धारमिक, अध्यात्मिक…
Read Moreसुरता: लोक संगीत म जीवन ल समर्पित करइया महान कलाकार – खुमान साव
कोनो भी अंचल के संस्कृति वो क्षेत्र के पहिचान होथे. येमा वोकर आत्मा ह वास करथे. जब अपन संस्कृति ल जन मानस समाज ह कोनो मंच म प्रस्तुति के रूप म देखथे त ऊंकर हिरदे म गजब उछाह भर जाथे. ढाई करोड़ के आबादी वाला हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के अलगे पहिचान हे. येला जन जन तक बिखेरे म जउन महान कलाकार मन के हाथ हे वोमन म स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. महासिंग चन्द्राकर, स्व. हबीब तनवीर, स्व. देव दास बंजारे, स्व. झाड़ू…
Read Moreपंचायती राज के पंदरा अगस्त
इस्कुली कार्यकरम मं पंचायत बॉडी के सदस्य ल ही मुख्य अतिथि के खुरसी मं बिराजमान होना हे। सब ला खुरसी मिलना चाही। मास्टर मन तो सालभर खुरसी मं बइठ के खुरसी टोरत रइथें। मास्टर मन कोती ले हमर सेवा सत्कार होना चाही अउ एक बात के बिल्कुल धियान रखना हे के सब ला खुरसी जरूर मिलना चाही। उंकर झंडा-फंडा अउ गवई-बजई ले जादा अपन के मतलब रखना हे। अउ कोनो मास्टर हमर पंचायत बॉडी अउ गांव वाले के मीनमेख कहूं निकालिस ते उंकर सतपुरखा मं पानी रितोना हे। एक बात…
Read Moreछत्तीसगढ़ के बासी: टिकेंद्र टिकरिहा
अइसे हाबय छत्तीसगढ़ के गुद गुद बासी जइसे नवा बहुरिया के मुच-मुच हांसी मया पोहाये येकर पोर-पोर म अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी कासा जइसे दग-दग उज्जर चोला मया-पिरित के बने ये दासी छल-फरेब थोकरो जानय नहीं हमर छत्तीसगढ़ के ये बासी कोंवर गजबेच जइसे घिवहा सोहारी भोभला तक के बने ये संगवारी रोटी सहीं तक के ये महतारी अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी सब कलेवा बनेगे सोज्ना येला बना दीन रासी कभू पारटी म चलिस नहीं हमर छत्तीसगढ़ के ये वासी येकर बर गहेरिच बन…
Read Moreपहुना: ग.सी. पल्लीवार
पहुना आगे, पहुना आगे अब्बड़ लरा जरा हो देखत होहू उनखर मन के टुकना मोटरी मोटरा हो….. कनवा कका, खोरवी काकी चिपरा आँखी के उनखन नाती रामू के ददा, लीला के दाई बहिनी के भांटो मेछर्रा हो- ननद मन ला हांसेला कहिदे चटर चटर बोले ला कहिदे तिलरी खिनवा करधन सूता भइगे उत्ताधुर्रा हो- रांधे के बेरा म मूड पिराये आगी के आधघू म देंह जुड़ावे देखत सुनत महूं बुढ़ागेंव इनखन मन के नखरा हो- भइया खाही जिमी कांदा भौजी खोजे खेकसी खेकसा कोनो पूछहिं ठेठरी खुरमी बाचैं नहीं बरा…
Read Moreबसंत पंचमी: नित्यानंद पाण्डेय
आ गय बसंत पंचमी, तोर मन बड़ाई कोन करे द्वापरजुग के कुरक्षेत्र होईस एक महाभारत कौरव मन के नाश कर देईस अर्जुन बान मा भारत। बड़का बड़का का वीर ढलंग गे बीच बचाव ल कौन करें।। 11। तहूं सुने होवे भारत म रेल मा कतका मरिन मनखे ओकर दुख ल नई भुलायेन भुईया धसकगे मरगे मनखे। बरफ गिरे ले आकड़िन कतका, तेकर गिनती कौन करै।। 21। अर्जुन नई हे अब द्वापर के शब्द ला सुन के मारै बान कलजुग के अर्जुन लंग नई हे ओ गांडीव तीर कमान। बान चलावत…
Read Moreधूंका-ढुलबांदर: रवीन्द्र कंचन
बादर नवां छवाये मांदर ! धातिन् तिनंग तीन दहांदा पानी बरसे गादा-गादा हर-हर चले खेत म नांगर! मोती-जइसे बरसे पानी भीजे कुरिया भीजे छानी रूख तरी छैहावय साम्हर ! आल्हा-भोजली जंगल गावे बेंगचा-झिंगरा तान मिलावे नाचत हे धूंका-ढुलबांदर होगे अब अंधियार के पारी छिंटकत हावे कोला-बारी रात के हॉथ म करिया-काजंर। रवीन्द्र कंचन छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्यकार Chhattisgarhi language writers and litterateurs Ravindra Kanchan
Read Moreपरबत के झांपी: रवीन्द्र कंचन
परबत के झांपी खमखम ले माढ़े हे परबत के झांपी ! सात रंग के बोड़ा बहिंगा बने हे बादर के खाँद म तन तन तने हे नदिया के देहे ला कइसे हम नापी? सुरूज हा का जाने काबर रिसागे चंदा हा कोन कोती जाके लुकागे तरिया-तेलाई म काला हम ढांपी? रवीन्द्र कंचन
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