बेरा के गोठ : फिलिम के रद्दा कब बदलही

आजकल जौन ला देखबे तौन हा फिलिम, सिरियल अउ बजरहा जिनिस बेचइया विज्ञापन करइया मनके नकल करेबर अउ वइसने दिखेबर रिकिम रिकिम के उदिम करत हे।सियान मन कहिते रहिगे कि फिलिम विलिम ला देखव झिन, ये समाज अउ संस्कृति के लीलइया अजगर आय जौन सबो ला लील देही। आज वइसनेच होत हावय। हमर पहिराव ओढ़ाव, खाना पीना, रहना बसना, संस्कृति, परंपरा, तीज तिहार, बर बिहाव सबो फिल्मी होगे। देस मा जब फिलिम बनेबर सुरु होइस तब कोंदा फिलिम अउ करिया सफेद (ब्लेक एंड व्हाइट) फिलिम हा हमर देबी देवता के…

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन भूकत,  उछरत,  घूमत  हावै,  गाँव  के  मतवार  मन, लाँघन, भूखन बइठे हावै, कमिया अउ भुतियार मन। राज बनिस नवा-नवा, खुलिस कतको रोजगार  इहाँ, मुसवा कस मोटागे उनकर, सगा अउ गोतियार  मन। साहब, बाबू, अगुवा मन ह, छत्तीसगढ़ ल चरत हावै, चुचवावत सब बइठे हे, इहाँ  के  डेढ़  हुसियार  मन। पर गाँव ले आये  हे, उही  चिरई  मन  हर  उड़त  हे, पाछू-पाछू म  उड़त  हावै,   इहाँ  के  जमीदार  मन। सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन, कते बुता ल करन हम। धर ले हें  जम्मो  धंधा  ल,  अनगइहाँ  बटमार  मन। –बलदाऊ राम…

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सक

‘‘मोर सोना मालिक, पैलगी पहुॅचै जी। तुमन ठीक हौ जी? अउ हमर दादू ह? मोला माफ करहौ जी, नइ कहौं अब तुंह ल? अइसन कपड़ा,अइसे पहिने करौ। कुछ नइ कहौं जी, कुछ नइ देखौं जी अब, कुछू नइ देखे सकौं जी, कुछूच नहीं, थोरकुन घलोक नहीं जी। तुमन असकर कहौ, भड़कौ असकर मोर बर, के देखत रहिथस वोला-वोला, जइसे मरद नइ देखे हे कभू, कोनों दूसर लोक ले आए हे जनामना तइसे………। मोर राजा मालिक, तुहर ऑखि के आघू, कोनों माई लोगिन/मावा लोग आ जाथे कभू, त तुमन देख लेथौ…

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विष्णु सखाराम खांडेकर कहानी के एकांकी रूपांन्तरण : सांति

दिरिस्यः 1 घना करिया बादर ले सूरुज नरायन भगवान धीरे धीरे उअत हावय। ओला देखके- कबि:- कल संझा समे मा, सागर मा बूड़े सोन कलस हाथ मा लेके उए होही, फेर सागर के तरी मा कलस के खोज करत करत ओकर हीरा मोती लगे गहना कहूंॅ छूट गे होही, ओला खोजे बर फेर एक घा सागर के तरी मा गे होही, ता देखिस, ये सोन कलस लहरमन के भान ले लहरावत हावय। लइका:- नंदनबन के कोन्हो सुग्घर आमारूख ले गदराय आमा गिरत हावय, जेहर ढुलत ढुलत भिंया मा आत हावय।…

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ददा

बर कस रूख होथे ददा जेकर जुड छांव म रथे परवार बइद बरोबर जतनथे नइ संचरन दे कोनो अजार। चिरई-चुरगुन कस दाना खोजत को जनी कतका भटकथे माथ ले पसीना चुहथे त परवार के मुंहु म कौंरा अमरथे। परवार के जतन करे बर अपन जम्मो सुख ल तियागथे। खुद के गोड भले भोंभरा म लेसावय फेर अपन लइका बर पनही लानथे। ददा के सम्मान बर एक दिन का पूरा बच्छर घलो कमती हे। संउहत देवता के जीते जी सम्मान नी करन ये हमर गलती हे। भरम होथे मनखे ल अपन…

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आमा के अथान – चौपई छन्द (जयकारी छंद )

अब अथान आमा के खाव,आगे गरमी कम हे भाव। झोला धर के जाव बजार,*लानव आमा छाँट निमार। मेथी संग मा सरसों तेल,येकर राखव सुग्घर मेल। * मेथी अउ सरसों के दार,चिटिक करायत होथे सार। 2 पीसे हरदी बने मिलाव,लहसुन डारे झने भुलाव। जीरा के येमा हे खेल,नापतौल के डारव तेल। 3 मिरचा सिरतो कमती खाव,स्वाद देख के नून मिलाव। थोरिक अदरक घलो मिलाव,दू दू दिन मा बने हिलाव। 4 गोही ला झन फेंकव हेर,लेव स्वाद खाये के बेर। अब्बड़ मिठाथे गोही जान,आमा सँग मा बनय अथान। 5 राखव कुछ दिन…

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सिंहावलोकनी दोहा (गरमी)

गरमी हा आ गे हवय,परत हवय अब घाम। छइँहा खोजे नइ मिलय,जरत हवय जी चाम। । जरत हवय जी चाम हा,छाँव घलो नइ पाय। निसदिन काटे पेंड़ ला,अब काबर पछताय। । अब काबर पछताय तै,झेल घाम ला यार। पेंड़ लगाते तैं कहूँ,नइ परतिस जी मार। । नइ परतिस जी मार हा,मौसम होतिस कूल। हरियाली दिखतिस बने,सुग्घर झरतिस फूल। । सुग्घर झरतिस फूल तब,सब दिन होतिस ख़ास। हरियाली मा घाम के,नइ होतिस अहसास। । नइ होतिस अहसास जी,रहितिस सुग्घर छाँव। लइका पिचका संग मा,घूमें जाते गाँव। । घूमे जाते गाँव तै…

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चंदैनी गोंदा, रामचंद्र देशमुख, लक्ष्मण मस्तुरिया अउ खुमान लाल साव एक दूसर के पर्याय

लोक गायक महादेव हिरवानी के सांस्कृतिक संस्था “धरोहर” ह लोक संगीत के पुरोधा खुमानलाल साव अउ गीत के पुरोधा लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता म कन्हारपुरी, राजनाँदगाँव म “श्रद्धा-सुमन” के आयोजन करिस जेमा छत्तीसगढ़ के पचास ले आगर लोक मंच अउ उँकर कलाकार मन गीत अउ संगीत द्वारा अपन श्रद्धा सुमन प्रस्तुत करिन। कार्यक्रम के शुरुवात मा कर्मा भवन मा स्थित मंदिर म कर्मा माता के पूजा अर्चना होइस। तेखर बाद मंच मा खुमान लाल साव जी के फोटू मा उँकर बड़े बेटा चेतन साव, दाऊ दीपक चंद्रकार, अरुण कुमार निगम…

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कबीरदास कोन ? एक भक्त , समाज सुधारक या एक रहस्यवादी जन कवि

हमर देस राज म साहित्य बैदिक काल ले आज तलक समरिध हावय चाहे वो जब हिंदी भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिंदी भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिंदी भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिंदी साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल, रीतिकाल…

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दुसर के दुख ला देख : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! दुसर के दुख ला देख रे! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। काबर उमन कहय के दुसर के दुख ला देख। संगवारी हो ये दुनिया में भांति-भांति के मनखे हे। कोनो मन दुसर के दुख ला नई देखे सकय त कोनो मन दुसर के सुख ला नई देखे सकय यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय। तइहा के मनखे मन के मन में जम्मों जीव-जन्तु…

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