हीरा सोनाखान के

छत्तीसगढ़ी साहित्य के पद्य लेखन मा उत्कृष्ट लेखन के कमी हवय, छन्द लेखन म तो बिल्कुल नगण्य। येकर भरपाई – हीरा सोनाखान के (खंडकाव्य) करत हवय । ये खण्डकाव्य ला पढ़ेंव एक घव मा मन नइ माढ़ीस ता दुबारा-तिबारा पढ़ डारेंव। पंडित सुंदरलाल शर्मा के दानलीला के एक लंबा अंतराल मा खण्ड काव्य आइस जेन पूरा व्याकरण सम्मत अउ विधान सम्मत हवय। बीच-बीच मा खण्डकाव्य के इक्का दुक्का किताब जरूर आइस फेर व्याकरण अउ विधान म पूरा खरा नइ उतरिस । मितान जी के ये खण्डकाव्य विधान सम्मत अउ व्याकरण…

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दिनेश चौहान के आलेख – कबीर जयंती बर विशेष : जन-मन म बसे कबीर

हिन्दी साहित्य के अकास म आज ले लगभग सवा छै सौ साल पहिली एक अइसे नक्षत्र के उदय होय रिहिस जेला हमन कबीरदास के नाँव ले जानथन। कबीरदास जी कवि ले बढ़के एक समाज सुधारक रिहिन। जउन सोझ-सोझ अउ खर भाखा म बात केहे के बावजूद हिन्दू अउ मुसलमान दुनो के बीच समान रूप म लोकप्रिय होइन अउ आजतक ले हवँय। ऊँखर पूरा जीवन विवाद के चादर म लपटाय मिलथे। कबीरदास जी के माता-पिता अउ जनम के बारे म निश्चित ढंग ले कुछ कहना संभव नइ हे। कोनो कहिथे के…

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खेती किसानी

बादर गरजे बिजली चमके , गिरय झमाझम पानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। खातू कचरा फेंकय सबझन , नाँगर ला सिरजाये । काँटा खूँटी साफ करय सब , मेड़ पार बनवाये ।। चूहत रहिथे परछी अब्बड़ , छावय खपरा छानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। बड़े बिहनिया बासी धर के , चैतु खेत मा जाथे । मिहनत करथे सबो परानी , तब बासी ला खाथे ।। मिहनत के फल मिलथे संगी , हावय बादर दानी । सबके मन…

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सुरता मा जुन्ना कुरिया

पच्चीस बच्छर बीत गे हावय। हमर आठ खोली के घर के नक्सा नइ बदलिस। चारो मुड़ा खोली अउ बीच मा द्वार। एक खोली ले बाड़ी डहर जाय के रद्दा। पच्चीस बच्छर पहिली कुवाँर कातिक मा ये नवा घर ला नत्ता गोत्ता संग मिलके सिरजाय रहिन। संगे संग मोर बिहाव करेबर टूरी खोजेबर बात चलात रहिन। मोरो लगन फरियाय रहय। माघ महिना मा घर सिरजगे। फागुन महिना के आखिर मा वो परिवार मिलगे जौन अपन बेटी देयबर तियार होगे। चइत मा चुमा चाटी,पेज पसिया, पइसा धरई होगे। बइसाख नम्मी मा भाँवर…

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मोर छत्तीसगढ़ महतारी

जिहां खिले-फुले धान, सुग्घर खेत अउ खलिहान। देवी-देवता के हे तीर्थ धाम, कहिथे ग इहां के किसान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…….! दुख पीरा के हमर दुर करइया, हरय हमर छत्तीसगढ़ मइया। हरियर-हरियर हे दाई के अंगना, कहिथे ग इंहा के लइका अउ सियान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…..! माटी ल माथा म लगाके देखबे, चन्दन – बंदन ल भुला जाबे। गुलाब कस सुंगंध दिही, कहिथे ग इहां के मजदूरमन। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान……! सुत उठ के करथंव प्रणाम, इही मोर दाई-ददा अउ भगवान। जेखर करंव…

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लघु कथा – दरूहा

सुकलू ह तीस बछर के रहिस हे अउ ओकर टुरा मंगलू ह आठ बछर के रहिस हे,सुकलू ह आठ-पन्दरा दिन मं दारू पीयय,मंगलू करन गिलास अउ पानी ल मंगाववय त मंगलू ह झल्ला के काहय कि ददा मोला बिक्कट घुस्सा आथे तोर बर,तय दारू काबर पीथस गो,छोड़ देना।सुकलू ह काहय,दारू पीये ले थकासी ह भागथे रे,तेकर सेती पीथंव,मय ह दरूहा थोेड़े हरंव,कभू-कभू सुर ह लमथे त पी लेथंव,सियान सरीक मना करत हस मोला,जा भाग तय हर भंउरा-बाटी ल खेले बर,मोला पीयन धक। दिन ह बिसरत गिस अउ मंगलू ह तेरह…

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जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर

जिनगी अबिरथा होगे रे संगवारी सुना घर – अंगना भात के अंधना सुखागे जबले तै छोड़े मोर घर -अंगना छेरी – पठरू ,घर कुरिया खेती – खार खोल – दुवार कछु नई सुहावे तोर बोली ,भाखा गुनासी आथे का मोर ले होगे गलती कैसे मुरछ देहे मया ल सात भाँवर मड़वा किंजरेंन मया के गठरी म बंध गेन नान – नान, नोनी – बाबू मया चोहना ल कैसे भुलागे जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर ….. काबर तै मोला भुलागे जिनगी ल अबिरथा बनादे लहुट आ अब मोर जिनगी…

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का जनी कब तक रही पानी सगा

का जनी कब तक रही पानी सगा कब तलक हे साँस जिनगानी सगा आज हाहाकार हे जल बूँद बर ये हरय कल के भविसवाणी सगा बन सकय दू चार रुखराई लगा रोज मिलही छाँव सुखदाई हवा आज का पर्यावरण के माँग हे हव खुदे ज्ञानी गुणी ध्यानी सगा सोखता गड्ढा बना जल सोत कर मेड़ धर परती धरा ला बोंत कर तोर सुख सपना सबे हरिया जही हो जही बंजर धरा धानी सगा तोर से कुछ होय कर कोशिश तहूँ कुछ नही ता नेक कर ले विश तहूँ प्रार्थना सुनही…

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बिरहा के आगी

जान – चिन्हार 1ः- रत्नाकर – एकठन कबि 2ः- किसन – परम आत्मा 3ः- उधव – किसन के सखा 4ः- राधा – किसन के सखी 5ः- ललिता – राधा की सखी 6:- अनुराधा – राधा की सखी दिरिस्य: 1 रत्नाकर – गोपीमन अउ किसन के बिरह के पीरा के कथा अकथनीय हावय। अथहा हावय, जेला नापा नी जा सकाय। ओ बियथा के बरनन ला चतुर अउ बने कबि ला कहत नी बनय। मैंहर तो आम आदमी हावंव। जइसने बरज के गोपी मनला संदेस दे बर उधव ला समझाय लागिस, वइसने…

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गरमी के दिन आगे

गरमी के दिन आगे संगी , मचगे हाहाकार । तरिया नदियाँ सबो सुखागे , टुटगे पानी धार ।। चिरई चिरगुन भटकत अब्बड़ , खोजत हावय छाँव । डारा पाना जम्मो झरगे , काँहा पावँव ठाँव ।। तीपत अब्बड़ धरती दाई , जरथे चटचट पाँव । बिन पनही के कइसे रेंगव , जावँव कइसे गाँव ।। बूँद बूँद पानी बर तरसे , कइसे बुझही प्यास । जगा जगा मा बोर खना के , करदिस सत्यानास ।। बोर कुवाँ जम्मो सुख गेहे , धर के बइठे माथ । तँही बचाबे प्राण सबो…

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