छत्तीसगढ़ी लोकाचार परंपरा म गोदना के अब्बड़ महत्म हे, येला छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी संस्कृति सामाजिक-आर्थिक, धार्मिक सब्बो म बढ़ ख्याति मिले हे, अउ ये पीरा देवइया परंपरा ल सब्बो छत्तीसगढ़िया आदिवासी मनखे मन आजो बड़ खुशी अउ जिम्मेदारी ले निभात आत हे, काबर की गोदना गोदवाना कोनो आसान बात नोहे, गोदना गोदाये के सौउख कराईया मनखे मन ल अब्बड़ पीरा सहेन करे ल लागथे। काबर के गोदना ल गोदे बर देवारिन दाई मन सूजी ल कोचक के मास म होब के गोदना ल गोदथे, जेकर से मनखे के मरत तक…
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करसी के ठण्डा पानी
गरमी के मउसम अउ सुरूज नरायन अंगरा बरोबर तिपत हे। गरमी बरसात अउ ठण्डा के मउसम एक के पाछु एक आथे एहा जुग जुग ले चलत हे। फेर आजकल के मउसम बदले के समय हा घलो परिवरतन हो गे हे। आधुनिकता, उदयोग अउ बाढ़त परदूसन ले मउसम म घलो बदलाव होवत जावत हे। ऐ बदलाव के करइया हम मनखे मन आन। हमर राज म घलो तीनों ठन मउसम के अब्बड़ महत्व हे। बरसात फेर ठण्डा अउ ठण्डा के पाछु गरमी के मउसम आथे। ठण्डा तक तो नदी नरवा अउ कुवां…
Read Moreमैगी के जमाना
जब ले आहे मैगी संगी, कुछु नइ सुहावत हे। भात बासी ला छोड़ के, मैगी ला सब खावत हे।। दू मिनट की मैगी कहिके, उही ला बनावत हे। माई पिल्ला सबो झन, मिल बाँट के खावत हे।। सब लइका ला प्यारा हावय, एकरे गुन ल गावत हे । स्कूल हो चाहे पिकनिक हो, मैगी धर के जावत हे।। लइका हो चाहे सियान, सबला मैगी सुहावत हे । कोनो कोती जावत हे, पहिली मैगी बनावत हे।। कोनो आलू प्याज डार के, त कोनो सुक्खा बनावत हे। कोनो सूप बनावत त, कोनो…
Read Moreबीता भर पेट
तुम बइठे हव मजा उड़ावत, गूगल इंटरनेट के। हम किंजरत हन बेवस्था मा, ए बीता भर पेट के। साक्षात्कार बुलाथव जाथे, बेटा हा हर साल के। खाली जेब कहाँ उत्तर दय, साहब तुँहर सवाल के। यू मे गो कहि देथव सँउहे, पाछू मुँह मुरकेट के। हम किंजरत हन बेवस्था मा, ए बीता भर पेट के। रोजगार के अवसर आथे, मरीचिका के भेस मा। बेटा भूखन लाँघन उखरा, शामिल होथे रेस मा। फड्डल नाँव लिखाथे ऊपर,हमर नाँव ला मेट के। हम किंजरत हन बेवस्था मा,ए बीता भर पेट के। समाचार टी.वी.पेपर…
Read Moreमाथा के पसीना
रुकना नही हे थमना नही हे पांव के भोमरा ल देखना नही है मन्ज़िल अगोरत हे रस्ता तोर सुरताना नही हे,घबराना नही है धीरे धीरे चल के कछुवा खरहा ल हरवाइस हे, सोवत रहिगे केछुवा बपुरा अड़बड़ पछताइस हे।। अभी मिलिस असफलता तोला हिम्मत से तै काम कर। उदम कर कमर कस के मत बैठ तैं हार कर।। तोला अगोरे उजियारी बिहिनिया मेहनत के बून्द गंवा ले, कल होही जगमग रथिया तोर जिनगी ल सँवार ले।। ठान ले छत्तीसगढ़ के मनखे मन ले कभू मत हारो जी बून्द बून्द ले…
Read Moreबियंग: ये दुनिया की रस्म है, इसे मुहब्बत न समझ लेना
मेंहा सोंचव के तुलसीदास घला बिचित्र मनखे आय। उटपुटांग, “ भय बिनु होई न प्रीति “, लिख के निकलगे। कन्हो काकरो ले, डर्रा के, परेम करही गा तेमा …… ? लिखने वाला लिख दिस अऊ अमर घला होगे। मेहा बिसलेसन म लग गेंव। सुसइटी म चऊंर बर, लइन लगे रहय। पछीना ले तरबतर मनखे मन, गरमी के मारे, तहल बितल होवत रहय। सुसइटी के सेल्समेन, खाये के बेरा होगे कहिके, सटर ला गिरावत रहय, तइसने म खक्खू भइया पहुंचगे। गिरत सटर अपने अपन उठगे, खक्खू भइया के चऊंर तऊलागे, पइसा…
Read Moreगरमी के भाजी
गुरतुर हे इहां के भाजी ह , बड़ सुघ्घर हे लागय। अम्मट लागथे अमारी हा, सोनू खा के भागय।। किसम किसम के भाजी पाला , हमर देश मा आथे। सोनू मोनू दूनो भाई , खोज खोज के लाथे।। लाल लाल हे सुघ्घर भाजी , अब्बड़ खून बढाथे । चैतू समारु खाथे रोजे , सेहत अपन बनाथे ।। बड़ उलहाये हवय खेत मा , चना लाखड़ी भाजी । गुरतुर लागय दूनो हा जी , रांधे सुघ्घर भौजी।। आये हवय बोहार भाजी , गली गली चिल्लाये। अमली डार दाई ह रांधे ,…
Read Moreनवरात्रि मनाबो
चलो संगी आज नवरात्रि मनाबो , मिलजुल के माता रानी ला सजाबो । विराजे हाबे हमर घर दुर्गा दाई हा—— चलो संगी आज नवरात्रि मनाबो।। फूल पान से सुघ्घर आसन ल सजाबो, लाली लाली चुनरी माता रानी ल ओढाबो। सोलह श्रृंगार करबो दुर्गा माता के—— चलो संगी आज नवरात्रि मनाबो।। मंदिर म सुघ्घर नवजोत जलाबो, माता रानी ला आसन बइठाबो। सेवा गाबो दुर्गा माता के ——– चलो संगी आज नवरात्रि मनाबो।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़) Priyadewangan1997@gmail.com
Read Moreजस गीत – काली खप्परवाली
काली खप्परवाली आगे ,काली खप्परवाली लप लप लप जीभ लमावत, रूप धरे विकराली सब दानव ल मरत देख के, शुम्भ निषुम्भ गुस्सागे चंड मुंड कहाँ हौ कहिके , जल्दी तीर म बलाए जावव पकड़ के तुम दुर्गा ल , लावव मोर आगू म साम दाम अउ दंड भेद से , ले आहू काबू म सीधा सीधा नइ आही त , बाल पकड़ के खीचैं नइच मानही तुरते ओकर , लहू बोहाहू लाली शेर उपर बइठे हे माता , अउ मुच मुच मुसकावय ओतके बेरा चंड मुंड हॅ , सेना लेके…
Read Moreधुरसा-मुरमुरा के झरझरा दाई
जिला मुख्यालय गरियाबंद से लगभग 60-65 किलोमीटर के दुरिहा में बसे नानकुन गाँव धुरसा-मुरमुरा,ये गाँव जंगल के तीर मा बसे हे।अउ इही गाँव के डोंगरी में दाई झरझरा अपन सुग्घर रूप ला साज के डोंगरी भीतर डेरा लगाके बइठे हे।जेनला लोगन मन दाई झरझरा रानी के नाव से मानथे।अउ डोंगरी के तीर मा बसे जम्मों गाँव के मनखे मन जुरीया के दाई के पुजा पाठ करथे।अउ लोगन मन के मानना हे की ये दाई झरझरा रानी हा दाई जतमाई के परथम रूप आय।ये क्षेत्र के लोगन मन मानथे की दाई…
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