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व्यंग्य

गोल्लर ल गरुवा सम्मान

जबले अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ल शांति के नोबल पुरस्कार मिले हे, तबले जम्मो किसम के मान-सम्मान अउ पुरस्कार ल चना- फूटेना बरोबर बांटे के रिवाज हमारे इहां चलगे हे। अइसे बात घलोक नइ हे के पहिली अइसन नइ होवत रिहीसे। पहिली घलोक अइसन होवत रिहीसे। जेन मनखे ल अपन सम्मान करवाना होवय वोहा […]

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गीत

हांसत हे सोनहा धान के बाली ह

पींवरा लुगरा पहिरे धरती हांसत हे, सोनहा धान के बाली ह। पींवरा पींवरा खेतखार दिखत हे, कुलकत हे अन्नपूर्णा महरानी ह॥ गांव-गांव म मात गे हे धान लुअई, खेतखार म मनखे गजगजावत हे। सुकालु, दुकालू, बुधियारिन, मन्टोरा संगी जहुरिया संग धान लुए बर जांवत हे॥ का लइका का सियान? मात गे हे जवानी ह। हांसत […]

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व्यंग्य

भईसा गाड़ा के चलान

संगवारी हो चलान सबद सुन के कतकोन मनखे मन के जीव हर कांपे लागथे। फेर वाह रे, आर.टी.ओ. ऑफिस (रोगहा टेसिहा ऑफिस) तोर तो न शुरु, न अन्त हे, तोर महिमा बड़ अनन्त हे। नानपन ले बडक़ापन अऊ सरी उम्मर मोटर, फटफटी चलावत आत हन, फेर कोनहो टिरेफिक के सादा झबरू टामी मन, आज ले […]

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गीत

मिर्चा भजिया खाये हे पेट गडगडाये हे

बस मे कब ले ठाढे हँव बइठे बर जघा दे दे ले दे खुसर पाये हँव निकले बर जघा दे दे भीड मे चपकाये हँव सांस भर हवा दे दे मैं हर सांस लेवत हँव तैं कतक धकेलत हस भीड मे चपकाये हँव सांस भर हवा दे दे छेरी पठरु कर डारे मनखे ला अस […]

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समीच्‍छा

नीम चघे करेला- ‘कड़ुवाहट संग हांसी’

पुस्तक समीक्छा विट्ठलराम साहू जी के बियंग संग्रह ‘नीम चघे करेला’ गुदगुदी पइदा करथे। विट्ठल जी के अपन भूमिका म लिखे हावय के अपन घर के गोठ, समाज के ऊंच-नीच, अनियाव, रूढ़िवादी विचार, अड़हापन ल सुरता करके ये किताब ल लिखेगे हावय। सही आय। जम्मो लेख मन घर अउ तीर तार के आय। अधिकतर लेख […]

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गोठ बात

आज जरूरत हे सत के

कोनो भी चीज के जब अति होथे त ओह फुट जाथे। कर्मकांड, पाखंड के अति ह, जनम दिस सत ल। येला बगराय बर, सतबर जागरिति लाय बर कबीर ह अलख जगइस। उही कड़ी म निर्गुण ब्रह्म के सुग्घर ममहाती हवा के झोंका अइस। ये हवा ल पठोवत रहिन गुरु घासीदास सत्यनाम या फेर सतनाम के […]

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गीत

रामेश्वर वैष्णव के कबिता आडियो

(राजनीतिज्ञो ने जो पशुता के क्षेत्र मे उन्नति की है उससे सारे पशु आतंकित है) पिछू पिछू जाथे तेला छटारा पेलाथे गा आघू म जो जाथे तेला ढूसे ला कुदाथे गा पूछी टांग के कूदय मोर लाल बछवा मोर लालू बछवा जब जब वो बुजा हा गेरुआ ले छुटे हे तब तब कखरो गा मुड […]

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कविता

माटी बन्दना – बंधु राजेश्वर राव खरे

(इस कविता का हिन्दी अनुवाद  आरंभ में देखें) माटी के हमर घर-कुरिया माटी हमर खेती-खार हे जय हो महतारी माटी महतारी तोला हमर जय जोहार हे। माटी मं सबके उपजन-बाढन माटी मं जिनगानी माटी जनम-करम के संगी माटी हावय अनपानी माटी सबके तन-मन के सिंगार हे। माटी के बनथे नंदिया बईला माटी के जांता-पोरा माटी […]

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कविता

बसंत म बिरह – छत्तीसगढी कविता आडियो

संगी मन बर बसंत के बेरा मा एक अडबड सुन्दर छत्तीसगढी आडियो इहा लगावत हावव, सुनव अउ बासंती बयार म झुमव. पसन्द आवय त टिपिया के असीस देवव. ये कबिता के हिन्दी भावानुवाद मोर हिन्दी ब्लाग आरंभ ले पढ सकत हव. जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे पहिली तैं फुदुक फुदुक कूदे डारा […]

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गोठ बात

छत्तीसगढ़ी भासा : उपेक्छा अउ अपेक्छा (एक कालजयी आलेख)

    हमर ये समय ल, जेमा हम जीयत हन जमों ला भुला जाय (स्मृति भंग) के समय कहे जा रहे हे। ए समय के मझ म बइठ के मैं सोचत हॅव के भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपन आज ल हमर काल बर सौंपे के बात कहत रहिन तउन ह छत्तीसगढ़ के तात्कालीन साहित्यकार मन […]