अब्बड़ सुहाथे मोला बासी

गरमी म तो गरम भात हा, खाये बर नि भाय। चटनी संग बटकी म बासी, सिरतो गजब सुहाय। हमर राज के विरासत ये, अउ सबला येहा सुहाथे। ये गरमी म तन के संग म, मन हा घलो जुड़ाथे। मिले न बासी ते दिन तो, लागे अब्बड़ उदासी। सिरतो कहत हावौं संगवारी, अब्बड़ सुहाथे मोला बासी।। बइला जोड़ी धरे नगरिहा अपन खेत म जाथे। बासी खा के जुड़ छांव म तन ल अपन जुड़ाथे। किसम किसम के अन्न उगा के, जग के करथे पालन। परिवार अउ जग के खातिर, इखर बितथे…

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बियंग : लहू

लोकतंत्र के हालत बहुतेच खराब होवत रहय। खटिया म परे परे पचे बर धर लिस। सरकारी हसपताल म ये खोली ले ओ खोली, ये जगा ले वो जगा किंजारिन फेर बने होबेच नी करय। सरकारी ले छोंड़ाके पराइवेट हसपताल म इलाज कराये के, काकरो तिर न हिम्मत रहय, न पइसा, न समय, न देखरेख करे बर मनखे। बपरा लोकतंत्र हा लहू के कमी ले जूझत हसपताल के एक कोंटा म परे सरत बस्सावत रहय। तभे चुनाव के घोसना होगे। जम्मो झिन ला लोकतंत्र के सुरता आये लगिस। चरों मुड़ा म…

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गजल : दिन कइसन अच्छा

दिन कइसन अच्छा आ गे जी। मरहा खुरहा पोक्खा गे जी ।। बस्ती बस्ती उजार कुंदरा महल अटारी तना गे जी ।। पारै हाँका हाँसौ कठल के सिसका सिसका रोवा गे जी ।। पीए बर सिखो के हमला अपन सफ्फा खा गे जी।। हमला देखावै दरपन उन मुँह जिन्कर करिया गे जी ।। कोन ल इहां कहिबे का तै जम्मो अपनेच लागे जी ।। बाते भर हे उज्जर निर्मल तन मन मुँह बस्सागे जी ।। धर्मेन्द्र निर्मल 9406096346

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बंदत्त हंव तोर चरन ल

गांव के मोर कुशलाई दाई बिनती करत हंव मैं दाई सुन ले लेते मोरो गुहार ओ दुखिया मन के दुख ल हर लेथे बिपति म तै खड़ा रहिथे अंगना म तै बैठे रहिथे जिनगी सफल हो जाथिस सुघ्घर रहथिस मोरो परिवार ओ तोरे चरन के गुन गांवों ओ ये मोर मैय्या सुन लेथे मोरो अरजी सुना हे मोरो अंगना भर देथे किलकारी ओ जनम के हं मैं ह दुखिया नइये मोरो कोनो सुनैया मया के दे आसीस तै मोर मैय्या नव रात म तोर गुन ल गांहंव ओ दे दे…

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माता ला परघाबो

आवत हावय दुर्गा दाई, चलव आज परघाबो । नाचत गावत झूमत संगी, आसन मा बइठाबो ।। लकलक लकलक रूप दिखत हे, बघवा चढ़ के आये । लाली चुनरी ओढे मइया, मुचुर मुचुर मुस्काये ।। ढोल नँगाड़ा ताशा माँदर, सबझन आज बजाबो । आवत हावय दुर्गा दाई, चलव आज परघाबो ।। नव दिन बर आये हे माता, सेवा गजब बजाबो । खुश होही माता हमरो बर, आशीष ओकर पाबो ।। नव दिन मा नव रुप देखाही, श्रद्धा सुमन चढाबो । आवत हावय दुर्गा दाई, चलव आज परघाबो ।। सुघ्घर चँऊक पुराके…

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राम जन्म : सबके बिगड़े काम सँवारथे श्रीराम

तुलसीदास हा रामचरित मानस लिखके,गाके अपन जिनगी ला तो सँवारिस अउ संगे संग कलियुग के राम नाम लेवाइया मन के बिगड़ी ला बना दिस।हर कल्प मा राम हा उँखर नाम लेवइया मनके उद्धार करे हे,भाग्य सँवारे हे। प्रभु राम के नाम जपत अहिल्या ला एक जुग पखरा बने बीतगे रहिस।ओकर गृहस्थी हा थोकिन गल्ती मा बिगड़ गे।राम जब ऋषि विश्वामित्र के संग जावत रहिस तब ओकर उद्धार करिस।भीलनी शबरी के जिनगी घलाव बिगड़े रहिस वहू हा अबड़ बच्छर ले राम नाम लेवत रद्दा जोहत रहिस।आखिर मा राम प्रभु उनला दरस…

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आगे परब नवरात के

आगे परब नवरात के, मंदिर देवाला सजाबो। सुग्घर लीप पोत के, कलशा मा दियना जलाबो।। ढ़ोल नंगाड़ा बजा के सुग्घर, माता रानी ला परघाबो। मंगल आरती गा के सुग्घर, माता ला आसन बइठाबो।। संझा बिहनिया करके आरती, दाई ला भोग लगाबो। दाई के चरण मा माँथ नवाके, आसीस सुग्घर पाबो।। आठ दिन अउ नवरात ले, दाई के सेवा बजाबो। किसम-किसम के माता सिंगारी, पंचमी के दिन चघाबो।। आठवाँ दिन मा हवन पूजन, मन ला शांत कराबो। नववाँ दिन नवकन्या भोजन, दसवाँ दिन मा आँसू बोहाबो।। गोकुल राम साहू धुरसा-राजिम(घटारानी) जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)…

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सिवनी (नैला) के चैत नवरातरी के संतोषी मेला

छत्तीसगढ़ म मेला ह हमर समाज संसकिरिती म रचे-बसे हावय जेखर कारन येखर हमर जीनगी म अब्बडेच़ महत्तम रखथे। माघी पून्नी ले जम्मों छत्तीसगढ़ म मेला भराये के सुरू हो जाथे। चाहे वोह राजीम के मेला हो, चाहे शिवरीनारायन के मेला, चाहे कोरबा के कंनकी मेला, चाहे कौड़िया (सीपत) के मेला, चाहे पीथमपुर (चांपा), चाहे सिवनी (नैला) जांजगीर के संतोषी मेला होवय। मेला के मतलब मोर अनुसार मेला-मिलाप एक माध्यम हावय। काबर के मेला बर गांव के छोटे से छोटे किसान से ले के बड़का किसान मन तक अपन बेटी…

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चुनाव अउ मंदहा सेवा

चुनाव तिहार के बेरा आवत देख मंदहा देवता हा अइलाय भाजी मा पानी परत हरियाय बरोबर दिखे लगथे।थोकिन अटपटहा लगही कि मेहा मंदहा ला देवता कहि परेंव फेर चुनाव के बेरा मा सबके बिगड़ी बनइया काम सिधोइया इहीच हा आय। जइसे चुनाव के लगन फरिहाथे दिन तिथी माढ़थे तब गाँव के मंदहा समूह के खुशी ला झन पूछ ,शेर बर सवा शेर हो जाथे। मंदहा ला का चाही, तीन बेर पीना शेर बरोबर जीना। अब तो कोनो संस्था , समाज, लोकतंत्र के चुनई हा बिगर मंद, मंदहा के निपट जाही…

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आगे चुनई तिहार

तैं मोला वोट भर दे दे, मैं तोला सब देहुँ.. एक माँगबे, चार देहुँ, साल में बहत्तर हजार देहुँ, खाये बर चाउर देहु, पिये बर दारू देहुँ, चौबीस घंटा बिजली देहुँ, फूल माँगबे तितली देहुँ तैं मोला वोट भर दे दे, मैं तोला सब देहुँ, रेंगे बर सड़क देहुँ, जेला कहिबे,हड़क देहुँ, रहे बर घर- दुवारी देहुँ, नरवा,गरूवा,घुरुवा,बारी देहुँ, बोए बर बीजा देहुँ, बिन पढ़े नतीजा देहुँ, भाई अउ भतीजा देहुँ, सारा अउ जीजा देहुँ, तै मोला वोट भर दे दे, मैं तोला सब देहुँ…. धीरज भर धरे रहिबे, पांच…

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