पबरित हावे राजिम नगरी, पदमावती कहाये! बीच नदिया मा कुलेश्वर बइठे, तोरे महीमा गाये!! महानदी अउ पइरी सोंढ़हू, कल-कल धारा बोहाय! तीनो नदिया के मिलन होगे, तिरवेनी संगम कहाय!! ब्रम्हा बिष्णु अउ सिव संकर, सरग उपर ले सिस नवाये! बेलाही घाट म लोमश रिसि, सुग्घर धुनी रमाय!! राजिव लोचन तोर कोरा म बइठे, सुग्घर रूप सजाय! राजिम के दुलौरिन करमा दाई, तोर कोरा मा माँथ नवाय!! राम लखन अउ सीया जानकी, तोर दरस करे बर आय! वीर सपुत बजरंगबली, तोरे चँवर डोलाय!! तोरे चरण म कलम धरके, गोकुल महिमा बखाने!…
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बसंत रितु आगे
बसंत रितु आगे मन म पियार जगागे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे सरसों , अरसी के फूल महमहावत हे देख तो संगवारी कैसे बर – पीपर ह फुनगियागे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे पिंयर – पिंयर सरसों खेत म लहकत हे भदरी म परसा ह कैसे चमकत हे अमली ह गेदरागे बोइर ह पकपकागे आमा मउर ह महमहावत हे नीम ह फुनगियावत हे रितु राज बसंत आगे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे कोयली ह कुहकत हे मीठ बोली बोलत हे सखी ! रे देख…
Read Moreदादा मुन्ना दास समाज ल दिखाईस नावा रसदा
रायगढ़ जिला के सारंगढ़ विकास खंड के पश्चिम दिसा म सारंगढ़ ल 16 किलोमीटर धुरिया म गांव कोसीर बसे आय। जिन्हा मां कुशलाई दाई के पुरखा के मंदिर हावे अंचल म ग्राम्य देवी के रूप म पूजे जाथे। इंहा के जतको गुन गान करी कम आय। समाज म अलग अलग धरम जाति पांति के लोगन मन के निवास होथे अउ अपन अपन धरम करम ले पहिचाने जाथे फेर कोनो महान हो जाथे त कोनो ग्यानी – धयानि अउ दानी इसनेहे एक नाम कोसीर गांव के हावय जेखर नाम ल आज…
Read Moreराजिम मेला
राजिम मेला आगे संगी, घूमे ल सब जाबो। राजीव लोचन के दर्शन करके, जल चढ़ा के आबो। अब्बड़ भीड़ हाबे संगी, राजिम के मेला में। जगा जगा चाट पकौड़ी, लगे हे ठेला में। किसम किसम के माला मुंदरी सबोझन बिसाबोन। नान नान लइका मन बर, ओखरा लाई लाबोन। बड़े बड़े झूला लगे हे, लइका मन ह झूलत हे। ब्रेक डांस अऊ आकाश म, बइठे बइठे घूमत हे।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़) Priyadewangan1997@gmail.com
Read Moreमानस मा प्रयाग
तीर्थराज प्रयाग मा कुंभ मेला चलत हावय।एक महिना तक ये मेला चलथे। छत्तीसगढ़ मा एक पाख के पुन्नी मेला होथय। ये बखत यहू हा प्रयाग हो जाथय। तुलसीदास बाबा हा तीर्थराज प्रयाग के महत्तम ला रामचरित मानस मा बने परिहाके बताय हे।मानस के रचना करत शुरुआत मा जब बाबा तुलसी वंदना करधँय तब साधु संत के वंदना अउ उँखर गुनगान करथँय।संत मन के समाज हा कल्याणकारी असीस देवइया अउ आनंद देवइया होथँय।संसार मा जौन जगा साधु संत सकलाथँय उही जगा मा सक्षात् तीर्थराज प्रयागराज हा खुदे आ जाथय। इही ला…
Read Moreपावन धरती राजिम ला जोहार
पैरी सोढ़ू के धार, महानदी के फुहार पावन धरती राजिम ला बारंबार जोहार माघी पुन्नी के मेला भरागे किसम किसम के मनखे सकलागे दुख पीरा सबके बिसरागे अउ आगे जीवन मा उजियार पावन धरती राजिम ला बारंबार जोहार। तीन नदी के संगम हे जिहां बिराजे कुलेश्वर नाथ हमर राज के हे परयाग जागत राहय राजीवलोचन नाम धन धन भाग छत्तीसगढ़ के बाढ़त राहय एखर परताप पावन धरती राजिम ला बारंबार जोहार। पुन्नी पुनवास के मउसम आगे हमर परयाग मा मेला भरागे नवा सुरूज के दरसन पाके जाड़ शीत हा घलो…
Read Moreवंदे मातरम
देश हमर हे सबले प्यारा, एकर मान बढ़ाना हे। भेदभाव ला छोड़ो संगी, सबला आघू आना हे।। आजादी ला पाये खातिर, कतको जान गँवाये हे। देश भक्त मन आघू आइस, तब आजादी आये हे।। नइ झुकन देन हमर तिरंगा, लहर लहर लहराना हे। भारत माँ के रक्षा खातिर, सीमा मा अब जाना हे।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com
Read Moreछत्तीसगढ़ी हाईकुु संग्रह – निर्मल हाईकुु
रचना कोनो बिधा के होवय रचयिता के अपन विचार होथे। मैं चाहथौं के मोर मन के बात लोगन तीर सोझे सोझ पहुंचय। चाहे उनला बदरा लागय के पोठ। लोगन कहिथे के भूमिका लेखक के छाप हँ किताब ऊपर परथे। अइसन छापा ले कम से कम ए किताब ल बचाके राखे के उदीम करे हौं। कोनो भी रचनाकार जेन देखथे, सुनथे, अनभो करथे उही ल लिखथे। एकर मतलब मनखे के अलावा बहुत अकन जीव जिनावर अऊ परिस्थिति घलो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रचना लेखन म प्रेरित करके यथायोग्य अपन अपन योगदान दिये रहिथे। मैं…
Read Moreखिलखिलाती राग वासंती
खिलखिलाक़े लहके खिलखिलाक़े चहके खिलखिलाक़े महके खिलखिलाक़े बहके खिलखिलाती राग वासंती आगे खिलखिलाती सरसों महकती टेसू मदमस्त भँवरे सुरीली कोयली फागुन के महीना अंगना म पहुना बर पीपर म मैना बैठे हे गोरी के गाल हाथ म रंग गुलाल पनघट म पनिहारिन सज – संवर के बेलबेलावत हे पानी भरे के बहाना म सखी – संगवारी संग पिया के सुध म सोरियावत हे मने मन अपन जिनगी के पीरा ल बिसरावत हे खिलखिलाक़े राग वासंती आगे पिंजरा ले मैना आँखी ले काजर हाथ ले कंगन मुँह ले मीठ बोली गावत…
Read Moreपरीक्षा
परीक्षा के दिन आगे जी , लइका मन पढ़त हे, अव्वल नंबर आही कहिके , मेहनत अबड़ करत हे। बड़े बिहनिया सुत उठ के , पुस्तक कापी ल धरत हे, मन लगाके पढ़त लिखत। जिंनगी ल गढ़त हे।। पढ़ लिख के विद्वान बनही, रात दिन मेहनत करके। दाई ददा के सेवा करही, सपना पूरा करके।। प्रिया देवांगन ” प्रियू” पंडरिया जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़ ) Priyadewangan1997@gmail.com
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