चिन्हारी- नरवा-गरूवा-घुरवा-बारी

देस होय चाहे राज्य ओखर पहिचान उहां के संसकरिति ले होथे। सुंदर अउ सुघ्घर संसकरिति ले ही  उहां के पहिचान दूरिहा दूरिहा मा बगरथे।  अइसने हमर छत्तीसगढ़ राज के संसकरिति के परभाव हा घलो हमर देस म अलगे हे। इहां के आदिवासी संसकरिति के साथ-साथ इहां के जीवन यापन, लोकगीत संगीत हा इहां के परमुख विसेसता आय। फेर ऐखर अलावा भुंइया ले जुरे संसकरिति के रूप म गांव अंचल के दैनिक जीवन के सब्बों क्रियाकलाप  घलो जमीनी संसकरिति आय। जेला आज बचाय के जरूरत हे। काबर ए हा समय के…

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

1. जब भट्टी मा आथे मनखे। जीयत ओ मर जाथे मनखे। अब गाँव उजर गे शहर खातिर, का खाथे का बँचाथे मनखे। लालच के चारा ला देख के, मछरी कस फँस जाथे मनखे। समय निकलथे जब हाथ ले, माथा पीट पछताथे मनखे। अपन दुख काकर संग बाँटे, पीरा ला भुलियाथे मनखे। भुलियाथे=सांत्वना देता है 2. मनखे ला धकिया ले दाऊ। पुन तैं गजब कमा ले दाऊ। धरती मा तो रतन गड़े हे, अपनो धन गड़िया ले दाऊ। छत्तीसगढ़िया सिधवा हावै, उनला तैं भरमा ले दाऊ। जेकर भाग म बिपत लिखे…

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छत्‍तीसगढ़ के वेलेंटाईन : झिटकू-मिटकी

लोक कथा म कहूँ प्रेमी-प्रेमिका मन के बरनन नइ होही त वो कथा नीरस माने जाथे। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाका मन म जहां लोरिक-चंदा के कथा प्रचलित हे, वइसनहे बस्तर म झिटकू-मिटकी के प्रेम कथा कई बछर ले ग्रामीण परवेश म रचे-बसे हे। पीढ़ी दर पीढ़ी इंकर कथा बस्तर के वादी म गूंजत रहे हे। बस्तरवासी इनला ल धन के देवी-देवता के रूप म कई बछर ले पूजत आवत हें। इंकर मूर्ति मन ल गांव वाले मन अपन देव गुड़ी म बइठारथें, उन्हें इहां अवइया सैलानी मन झिटकू-मिटकी के प्रतिमा…

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कविता – चिड़िया रानी

चिड़िया रानी बड़ी सयानी , दिनभर पीती पानी। दाना लाती अपना खाती, बच्चों को संग खिलाती । चिड़िया रानी चिड़िया रानी —-।। सुबह सुबह से , चींव चींव करके। सबको सपनों से जगाती, चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।। आसमान की सैर करती, बाग बगीचों में घूमा करती। रंग बिरंगी फूल देखकर , मीठी मीठी गीत सुनाती । चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।। बच्चों को उड़ना सिखाती, घर घर के आंगन को जाती। चींव चींव कर सबको बुलाती, चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।। दाना लाती पत्ते लाती, तिनका तिनका करके। पेड़ों…

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यमराज ला होगे मुस्किल

भगवान भोलेनाथ कर विष्णु जी हा एक दिन पहुँचिस अउ महादेव ला कहिस-हे त्रयम्बकेश्वर! एक विनती करेबर आय हँव।महादेव कहिस- काय बात आय चक्रधर! आज आप बहुतेच अनमनहा दिखत हव।अइसे कोन बूता आय जौन ला आप नइ कर सकव।विष्णु जी कहिस- का बताँव महराज! ये यमराज हा उतलंग नापत हे। जतका हमर भगत हे, सब ला रपोट बहार के उपर लावत जात हे। नियम कानून के पालन नइ करत हे। हमन नियम बनाय रहेन कि जौन मन देबी देवता के भगत हवे ओमन ला यमराज हा हाथ झन लगाही।फेर वो…

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बसंत उपर एक छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

आ गे बंसत कोयली गात घलो नइ हे। संगी के गोठ अब , सुहात घलो नइ हे। सेमर न फूले हे, न परसा ह डहकत हे, आमा के माऊर हर, भात घलो नइ हे। हाथ मा हाथ धर, रेंगे जउन मोर संग, का होगे ओला, बिजरात घलो नइ हे। मनखे ले मनखे दुरिहावत हावै संगी, मीत अउ मितान आत-जात घलो नइ हे। अड़बड़ सुग्घर हे ‘पर’ गाँव के टूरी हर, भौजी हर काबर, अब लुहात घलो नइ हे। –बलदाऊ राम साहू

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बसंत पंचमी के तिहार

बसंत रितु ल सब रितु के राजा कहे जाथे। काबर के बसंत रितु के मौसम बहुत सुहाना होथे। ए समय न जादा जाड़ राहे न जादा गरमी। ए रितु में बाग बगीचा सब डाहर आनी बानी के फूल फूले रहिथे अउ महर महर ममहावत रहिथे। खेत में सरसों के फूल ह सोना कस चमकत रहिथे। गेहूं के बाली ह लहरावत रहिथे। आमा के पेड़ में मउर ह निकल जथे। चारों डाहर तितली मन उड़ावत रहिथे। कोयल ह कुहू कुहू बोलत रहिथे। नर नारी के मन ह डोलत रहिथे। ए सब…

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कविता- बसंत बहार

बसंत बहार छागे सुग्घर, कोइली गीत गावत हे। अमरइया के डारा सुग्घर, लहर-लहर लहरावत हे।। चिरइ चिरगुन चींव-चींव करके, सुग्घर चहकी लगावत हे। कउँवा करत हे काँव-काँव, तितुर राग बगरावत हे।। सरसों के सोनहा फुल फुलगे, अरसी हा लहलहावत हे। सुरूज मुखी हा चारो कोती, सुग्घर अँजोर बगरावत हे।। फुल बगियाँ मा फुल फुलगे, सतरंगी रंग बगरावत हे, मलनियाँ रानी मगन होके, मने मन मुसकावत हे।। आमा अमरइया मउँरगे सुग्घर, डारा पाना हरियावत हे। रूख राइ हा नाचत सुग्घर, पुरवइया अँचरा डोलावत हे।। वीना धरे हे सारदा माई, सातो सुर…

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कविता – महतारी भाखा

छत्तीसगढ़िया अब सब्बो झन आघु अवव, महतारी भाखा ल जगाये बर जाबो। गांव-गांव म किंजर के छत्तीसगढ़ के गोठ-गोठियाबो, सब्बो के करेजा म छत्तीसगढ़ी भाखा ल जगाबो। छत्तीसगढ़ महतारी के मया ल सब्बो कोती बगराबो, संगी -संगवारी संग छत्तीसगढ़ी म गोठियाबो। महतारी के अब करजा ल चुकाबो, छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियाबो। छत्तीसगढ़ी भाखा-बोली के मीठ मया, सब्बो छत्तीसगढ़िया अउ परदेसिया मनखे ल बताबो। महतारी भाखा ल जगाबो संगी, अवव हमर महतारी भाखा ल जगाबो। अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़ मो.न:- 7722906664

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

1 कर दे घोषना एक राम जी। पाँचों साल आराम राम जी। दावत खा ले का के हे चिंता। हमरे तोला सलाम राम जी। हावै बड़का जी तोर भाग ह, पढ़ ले तैं हर, कलाम राम जी। आने के काम म टाँग अड़ाना, हावै बस तोर काम राम जी। चारी – चुगली ह महामंत्र हे, सुबह हो या हो शाम राम जी। 2 नँगरा मन हर पुचपुचाही , तब का होही? अगुवा मन जब मुँहलुकाही, तब का होही? पनियर-पातर खा के हम हर जिनगी जिथन, धरती हर बंजर हो जाही,…

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