आज संझौती बेरा म बुता ले लहुट के आयेंव त हमर सिरीमति ह अनमनहा बैठे राहय।ओला अइसन दसा म देखके मे डर्रागेंव।सोचेंव आज फेर का होगे?काकरो संग बातिक बाता होगे धुन एकर मइके के कोनो बिपतवाला गोठ सुन परिस का। में ह पूछेंव-कस ओ!आज अतेक चुप काबर बैठे हस? ओहा किहिस -कुछु नीहे गा!अउ अपन बुता काम म बिलमगे।जें खायके बाद ओहा बुता काम ले रीता होइस त फेर पूछेंव-कुछु तो बात हे खिल्लू के दाई!बता न मोला! मोर गोठ ल सुनके ओकर आंखी ले आंसू निथरगे।ओहा बताइस-तें ह हमर…
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बसंत पंचमी अउ ओखर महिमा
बसंत पंचमी हमर हिंदूमन के तिहार म ले एक बिसेस तिहार हे। ये दिन गियान के देबी दाई माता सरस्वती के आराधाना करे जाथे। भारत अउ नेपाल जेहा पहिली हिंदू देस रहसि, म बछर भर ल छै भाग म बांटे गे हे। येमा बसंत रितु सबसे सुखद रितु हे। जब परकिरिती म सबो कती नवसिरिजन अउ उल्लास के वातावरण होथे। खेत म सोना के रूप म सरसों के फूल चमके लगते। गेंहूॅं अउ जौ म बाली आ जाथे। आमा के रूख म बउर लग जाथे अउ उपर ले कोेयली के…
Read Moreरीतु बसंत के अवई ह अंतस में मदरस घोरथे
हमर भुईयां के मौसम के बखान मैंहा काय करव येकर बखान तो धरती, अगास, आगी, पानी, हवा सबो गोठियात हे। छै भाग में बाटे हाबय जेमे एक मोसम के नाव हे बसंत, जेकर आय ले मनखे, पशु पक्षी, पेड़ पऊधा अऊ परकिरती सबो परानी म अतेक उछाह भर जथे जेकर कोनों सीमा नईये। माघ के महीना चारों कोती जेती आँख गड़ाबे हरियरे हरियर, जाड़ के भागे के दिन अऊ घाम में थोरको नरमी त कहू जादा समे घाम ल तापे त घाम के चमचमई। पलाश के पेड़ ल देखबे त…
Read Moreनान्हे कहिनी : नोनी
आज राधा अउ जानकी नल म पानी भरत खानी एक दूसर संग गोठियावत राहय। राधा ह जानकी ल पूछथे-‘हव बहिनी! सुने हंव तोर बर नवा सगा आय रिहिस किके।’ जानकी ह बताथे-“हव रे! आय तो रिहिन हे!” ‘त तोर का बिचार हे?’ “मोर का बिचार रही बहिनी! दाई-ददा जेकर अंगरी धरा दिही ओकर संग चल देहूं। आखिर उंकर मुड के बोझा तो बनगे हंव” ‘पाछू घनी धोखा खाय हस रे! सोच समझ के निरनय लेबे।’-राधा किथे। “मोर निरनय ल कब कोन सुने हे रे! पाछू समे में ह अउ पढहूं…
Read Moreबसंत आगे रे संगवारी
घाम म ह जनावत हे पुरवाही पवन सुरूर-सुरूर बहत हे अमराई ह सुघ्घर मह महावत हे बिहिनिहा के बेरा म चिराई-चुरगुन मन मुचमुचावत हे बर-पीपर घलो खिलखिलावत हे महुआ, अउ टेसू म गुमान आगे बसंत आगे रे संगवारी कोयली ह कुहकत हे संरसों ह घलो महकत हे सुरूर-सुरूर पवन पुरवाही भरत हे मोर अंगना म संगवारी बसंत आगे जेती देखव तेति हरिहर लागे खेत-खार के रुख-राई मन भरमाथे फागुन बन के आगे पहुना अंगना म हे उछल मंगल मड़वा सज के संगवारी के बसंत आगे अंगना म रंग-गुलाल खेबोन बसंत…
Read Moreमोर ददा ला तनखा कब मिलही
दस बच्छर के नीतिन अउ एक महिना बड़े ओकर कका के बेटी टिया अँगना मा खेलत रहिस। दूनो मा कोन जनी काय सरत लगिस तब टिया हा कहे लगिस मेहा हार जहूँ ता मोर पइसा ला मोर पापा ला तनखा मिलही तब देहँव। नीतिन समझ नइ सकिस कि ओकर कका हा कहाँ ले तनखा पाथय,कोन ओला तनखा देथय। ओहा ओतका बेरा तो खेल लिहिस फेर ओखर मन मा बइठ गे कि हमर ददा ला तनखा कब मिलथे। संझा नीतिन अपन ददा मोहन के रद्दा देखत रहय।खेत ले रापा ला खाँद…
Read Moreग़ज़ल छत्तीसगढ़ी
भैया रे, तै हर नाता, अब हमर ले जोड लेबे, जिनगी के रद्दा उलटा हे, सँझकेरहा मोड़ लेबे। पहती सुकवा देखत हावै, सुरुज अब उगइया हे, अँधियारी संग तै मितानी, झप ले अउ छोड़ देबे। बिन छेका-रोका हम पर घर आबोन-जाबो जी, बड़का मन ल करे पैलगी, कहिबोन बबा गोड़ देबे। कइसनो राहय सरकार इहाँ, हमला का करना हे, समरसता लाये बर संगी, जम्मो डिपरा कोड़ देबे। कौनो परोसी निंदा करथे, अपने घर में आ के, मन हर कहिथे भाई संग, तैं ह नाता तोड़ देबे। बलदाऊ राम साहू संझकेरहा=शीघ्रतापूर्वक,…
Read Moreअवइया चुनाव के नावा घोसना पत्र
जबले अवइया चुनाव के सुगबुगाहट होय हे तबले, राजनीतिक पारटी के करनधार मनके मन म उबुक चुबुक माते हे। घोसना पत्र हा चुनाव जिताथे, इही बात हा , सबो के मन म बइठगे रहय। चुनाव जीते बर जुन्ना घोसना पत्र सायदे कभू काम आथे तेला, जम्मो जानत रहय। तेकर सेती, नावा घोसना पत्र कइसे बनाय जाय तेकर बर, भारी मनथन चलत रहय। एक ठिन राजनीतिक दल के परमुख हा किथे – हमर करजा माफी के छत्तीसगढ़िया माडल सबले बने हाबे, उही ला पूरा देस म लागू कर देथन, अपने अपन…
Read Moreलोकतंत्र के आत्मकथा
न हाथ न गोड़, न मुड़ी न कान। अइसे दिखत हे, कोन जनी कब छूट जही परान। सिरिफ हिरदे धड़कत हे। गरीब के झोफड़ी म हे तेकर सेती जीयत हे। उही रद्दा म रेंगत बेरा, उदुप ले नजर परगे, बिचित्र परानी ऊप्पर। जाने के इकछा जागिरीत होगे। बिन मुहू के परानी ल गोठियावत देखेंव, सुकुरदुम होगेंव। सोंचे लागेंव, कोन होही एहा ? एकर अइसे हालत कइसे होइस , अऊ एहा कइसे जियत हे ? तभे हांसे लागिस ओहा। अऊ केहे लागिस, तेंहा अइसे सोंचत हावस बाबू, जानो मानो मोला कभू…
Read Moreअमित के कुण्डलिया ~ 26 जनवरी
001~ तिरंगा झंड़ा धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय। तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय। बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी। देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी। गुनव अमित के गोठ, कभू झन आय अड़ंगा। जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा। 002~ भारत भुँइयाँ भारत हा हवय, सिरतों सरग समान। सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान। होथे नवा बिहान, फुलय सब भाखा बोली। किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली। गुनव अमित के गोठ, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ। सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुँइयाँ।…
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