दुलरवा रहिथन दई अऊ बबा के, जब तक रहिथन घर म। जिनगी चलथे कतका मेहनत म, समझथन आके सहर म।। चलाये बर अपन जिनगी ल, चपरासी तको बने बर परथे। का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। इंजीनियरिंग, डॉक्टरी करथे सबो, गाड़ा-गाड़ा पईसा ल देके। पसीना के कमई लगाके ददा के, कागज के डिग्री ला लेथे।। जम्मो ठन डिग्री ल लेके तको, टपरी घलो खोले बर परथे। का करबे “राज” ल नौकरी बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। लिख पढ़ के लईका मन ईहाॅ, बेरोजगारी म…
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मोला करजा चाही
पाछू बच्छर दू बच्छर ले करजा के अतेक गोठ चलत हे कि सुन-सुन के कान पिरागे हे।फलाना के करजा,ढेकाना के करजा।अमका खरचा करे बर करजा।ढमका खरचा बर करजा।राज के करजा।सरकार के करजा।किसान के करजा।मितान के करजा। दुकान के करजा। हंफरासी लागगे करजा के गोठ सुनके।दू साल पहिली एक झन हवई जहाज वाला ह करजा खाके बिदेस भागे हे ते लहुटे के नांव नी लेवत हे।एक झन तगडा चौकीदार तको बैठे हे।फेर को जनी का मंतर जानथे वो करजा खानेवाला मन कि वो कतका बेर बुचकथे कोनो थाहा नी पाय।एती चौकीदार…
Read Moreमोंगरा (छत्तीसगढ़ी उपन्यास) शिवशंकर शुक्ल
भूमिका – छत्तीसगढ़ के समाज-परिवार का अंकन मोंगरा एक सफल उपन्यास कृति है जिसमें छत्तीसगढ़ का पारिवारिक एवं सामाजिक जीवुन-रूप अंकित है। आंचलिक उपन्यासकार के लिए आवश्यक होता है कि वह अपनी कृति को उस अंचल विशेष के जीवन से इस पऱकार संयोजित-समन्वित करे जिसे पढ़ कर एक अपरिचित व्यक्ति भी वहां के जन-जीवन के बारे में जान सके। आंचलिक जीवन, प्राकृतिक दृश्यावली, रीति-रिवाज, बोली आदि के स्वरूप उपन्यास में देखे जा सकते हैं। इस दृष्टि से मोंगरा एक सफल उपन्यास है। मोंगरा में एक गरीब किसान का पारिवारिक जीवन…
Read Moreदियना के अंजोर (छत्तीसगढ़ी के पहली उपन्यास) शिवशंकर शुक्ल
सर्वाधिकार – लेखकाधीन आवरण – रविशंकर शर्मा प्रथम संस्करण – 1964 द्वितीय संस्करण – 2007 मूल्य – 100 रु. प्रकाशक वैभव प्रकाशन सागर प्रिंटर्स के पास, अमीनपारा चौक, पुरानी बस्ती, रायपुर (छत्तीसगढ़) दूरभाष – (0771) 2262338, मो. 94253-58748 DIYNA KE ANJOR BY : SHIVSHANKAR SHUKLA शुभकामना – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी वर्तमान युग सचमुच छत्तीसगढ़ के लिए भी नवजागरण काल हो गया है, छत्तीसगढ़ में नव-प्रतिभा का उन्मेष देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। साहित्य के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ के तरुण साहित्यकार अपनी रचना-शक्ति का अच्छा परिचय दे रहे…
Read Moreगढ़बो नवा छत्तीसगढ़
हमर छत्तीसगढ़ ल बने अठारह बछर पुर गे अउ अब उन्नीसवाँ बछर घलोक लगने वाला हे, अउ येही नवा बछर म हमर छत्तीसगढ़ राज म नवा सरकार के गठन घलोक होये हे येही नवा सरकार बने ले सब्बो छत्तीसगढ़िया मन के आस ह नवा सरकार ले बाढ़ गे हे की नवा सरकार ह छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन बर कुछु नवा करही जइसे नवा सरकार के परमुख गोठ हे “गढ़बो नवा छत्तसीगढ़” येही गोठ ल धर के सरकार ह छत्तीसगढ़ अउ छत्तीगढिया बर काम बुता करहि त सब्बो छत्तीसगढ़िया मनखे के…
Read Moreनवा बछर के मुबारक हवै
जम्मो झन हा सोरियावत हवै, नवा बछर हा आवत हवै। कते दिन, अऊ कदिहा जाबो, इहिच ला गोठियावत हवै।। जम्मो नौकरिहा मन हा घलो, परवार संग घूमेबर जावत हवै। दूरिहा-दूरिहा ले सकला के सबो, नवा बछर मनावत हवै।। इस्कूल के लईका मन हा, पिकनिक जाये बर पिलानिंग बनावत हवै। उखर संग म मेडम-गुरूजी मन ह, जाये बर घलो मुचमुचावत हवै।। गुरूजी मन पिकनिक बर लइका ल, सुरकछा के उदिम बतावत हवै। बने-बने पिकनिक मनावौ मोर संगी, नवा बछर ह आवत हवै।। नवा बछर के बेरा म भठ्ठी म, दारू के…
Read Moreआल्हा छंद – नवा बछर के स्वागत करलन
बिते बछर के करन बिदाई,दे के दया मया संदेश। नवा बछर के स्वागत करलन,त्याग अहं इरखा मद द्वेष। आज मनुष्य हाथ ले डारिस,विश्व ज्ञान विज्ञान समेट। नवा बछर मा हमू खुसर जन,खोल उही दुनिया के गेट। हंसी खुशी मा हर दिन बीतय,हर दिन होवय परब तिहार। सदा हमर बानी ले झलकय,सदाचरण उत्तम व्यवहार। अंतस मा झन फोरा पारन,हिरदे मा झन देवन घाँव। मिले बखत हे चार रोज के,रहलन दया मया के छाँव। पूर्वाग्रह के चश्मा हेरन,अंतस मा सम भाव जगान। पूर्वाग्रह के कारण संगी,मानवता हावय परसान। छोड़ अलाली के संगत…
Read Moreनान्हे कहिनी : नवा बछर के बधाई
नवा साल के नवा बिहनिया राहय अउ सुग्घर घाम के आनंद लेवत “अंजनी” पेपर पढ़त राहय। ओतके बेरा दरवाजा के घंटी ह बाजथे। “अंजनी” पेपर ल कुरसी म रख के दउड़त दरवाजा ल खोलथे।”अंजनी” जी काय हालचाल कइसे हस ? “अंजनी” (सोचत-सोचत)”जी ठीक हँव।” फेर मँय आप मन ल चिनहत नइ हँव ? अइ…..अतका जलदी भुला गेव ? मँय “नीलिमा” तोर कांलेज वाले संगवारी। वोह…..! अरे…..”नीलिमा” तँय। तँय तो अतका बदल गेस की चिनहाबे नइ करत हस।ले आवा भीतर म बइठव। अउ सुनावा काय काम बूता चलत हे आजकल। ये…
Read Moreबलदाऊ राम साहू के छत्तीसगढ़ी गज़ल
1 झन कर हिसाब तैं, कौनो के पियार के । मया के लेन-देन नो हे बइपार के । मन के मंदिरवा मा लगे हे मूरत ह, कर ले इबादत, राख तैं सँवार के । मन के बात ला, मन मा तैं राख झन, बला लेते कहिथौं, तैं गोहार पार के। दिन ह पहागे अउ होगे मुँधियार अब, देख लेतेस तैं हर मोला निहार के। ‘बरस’ के कहना ल मान लेतेस गोई, काबर तैं सोचथस कान हे दिवार के । 2 तरकस ले निकल गे तीर, कइसे धरन मन मा धीर।।…
Read Moreजाड़ के महीना
आ गे जाड के महीना , हाथ गोड जुडावत हे । कमरा ओढ के बबा ह , गोरसी ल दगावत हे । पानी ल छुत्ते साठ , हाथ ह झिनझिनावत हे । मुहूं म डारते साठ , दांत ह किनकिनावत हे । तेल फुल चुपर के , लइका ल सपटावत हे । कतको दवई करबे तब ले , नाक ह बोहावत हे । नावा बहुरिया घेरी बेरी , किरिम ल लगावत हे । पाउडर ल लगा लगाके , चेहरा ल चमकावत हे । गाल मुहूँ चटकत हावय , बोरोप्लस लगावत…
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