जावन दे तैं घर छोड़ दे नोनी अब तो मोला जावन दे तैं घर। छेरी-पटरू लुलवावत होही बिन चारा-पानी के कब तक हम गोठियायवत रहिबोन कहनी अपन जवानी के । अभी उमर कचलोईहा हावय मिलबोन आगू बछर। खेत-खार बारी-बखरी के करना हे तइयारी बईठाँगूर, कमचोरहा कही के देथे दाई हर गारी। मिहनत कर के चढ़बोन नसैनी तब जाबोन उप्पर । हरहिन्छा जीनगी जीये बर जतन करे बर परही सोच बिचार के काम करे मा मन के दुविधा टरही । बिन नेत के छवावय नही छानी के खदर । 2. सावन…
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मुसुवा के मूँड़ पीरा
मुसुवा कहय अपन प्रिय स्वामी गनेश ले। कब मिलही मुक्ति प्रभु कलजुग के कलेश ले।। बारा हाल होही अब गियारा दिन के तिहार मा, बइठाही घुरुवा कचरा नाली के तीरतार मा, बिकट बस्साही छपके रबो मुँह नाक ला। माटी मिलाही प्रभु हमर दूनों के धाक ला। आनी-बानी के गाना ला डी.जे. मा बजाही। जोरदरहा अवाज सुन-सुन हमर माथा पिराही। जवनहा लइकामन रंगे रहीं भक्ति के रंग। पंडाल भीतरी पीही खाहीं, करहीं उतलंग। सेवा के नाँव मा मेवा ये मन पोठ खाहीं, नइ बाँचही तहाँ ले मोर नाम बद्दी धराहीं। गणेश…
Read Moreव्यंग्य : बड़का कोन
सरग म खाली बइठे बइठे गांधी जी बोरियावत रहय, ओतके बेर उही गली म, एक झिन जनता निकलिस। टाइम पास करे बर, गांधीजी हा ओकर तिर गोठियाये बर पहुंचके जनता के पयलगी करिस। गांधी जी ला पांव परत देखिस त, बपरा जनता हा अकबकाके लजागे अऊ किथे – तैं काकरो पांव पैलगी झिन करे कर बबा ….. अच्छा नी लगे। वइसे भी तोर ले बड़का कन्हो मनखे निये हमर देस म, तोला ककरो पांव नी परना चाही। गांधी किथे – तोर जय होय जनता जी। भारत म तोर से बड़का…
Read Moreछत्तीसगढ़ी ग़ज़ल
झन फँसबे माया के जाल, सब के हावै एके हाल। कतको तैं पुन कमाले, एक दिन अही तोरो काल। कौनो इहाँ नइ बाँचे हे, बड़का हावै जम के गाल। धन-दौलत पूछत हे कौन, जाना हे बन के कंगाल। कौन देखे हे सरग-नरक, पूछौ तुम मन नवा सवाल। अंत समे मा पूछ ही कौन, कतका हावै तोर कर माल। ‘बरस‘ कहत हे सोझ-सोझ, नइ हे तुँहर कौनो लेवाल। जम=यम,कतका=कितना, लेवाल=खरीददार, सोझ-सोझ=सीधा-सीधा, तँहर=तुम्हारे। –बलदाऊ राम साहू
Read Moreछत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : कइसे मा दिन बढ़िया आही
कइसे मा दिन बढ़िया आही। कइसे रतिहा अब पहाही। गाए बर ओला आय नहीं, कइसे ओ हर ताल मिलाही। बिन सोचे काम जउन हर करही, ओ हर पाछू बड़ पछताही। अब तो मनखे रक्सा बनगे, मनखे के जस कौन ह गाही। साधु के संग जउन हर करही, ओ मनखे हर सरग म जाही। पखरा पूजे म क होवत हे, मन पूजौ जिनगी तर जाही। ‘बरस’ बात ला सुन लाबे तैं, आज नहीं तब काली जाही। रतिहा =रात, पखरा पत्थर, काली=कल। –बलदाऊ राम साहू
Read Moreछत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : सत्ता धारी
जउन हर सत्ता धारी हे। उही मन तो बैपारी हे। जिनकर डमरु बजात हावै, सही मा ओ ह मदारी हे। बिरथा बात मुँहू म आथे, उही ला कहिथे गारी हे। जउन हर पी माते हावै उनकर घर म कलारी हे। दुरपती ला सरबस हारिन, उही मन सच म जुवारी हे। कलारी=शराब की दुकान –बलदाऊ राम साहू
Read Moreछत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : मितानी
इही ल कहिथे मितानी संगी बनथे जउन ह छानी संगी। दुख के घड़ी म आँसू पोंछय ओकर गजब कहानी संगी। अनीत-रद्दा म जब हम रेंगन कहिथे करु-करु बानी संगी। झन राहय टुटहा कुरिया फेर राहय गजब सुभिमानी संगी। जिनगी म कतको बिपत आये करय झन ओ नदानी संगी। बलदाऊ राम साहू 9407650458
Read Moreनवगीत : गाँव हवे
तरिया-नरवा, घाट-घटौदा, सुग्घर बर के छाँव हवे हाँसत-कुलकत दिखथे मनखे अइसन सुग्घर गाँव हवे। खेत-खार हे हरियर-हरियर सुग्घर बखरी-बारी हे लइका मन हे फूल सरीखे घर-द्वार कियाँरी हे। मिहनत करे गजब किसान चिखला बुड़े पाँव हवे। हँसी-ठिठोली हम जोली संग गाये गीत ददरिया कौनो दिखथे गोरा-नारा कौनो दिखथे करिया। सुख-दुख हावै गंगा-जमुना मया-पिरित ठाँव-ठाँव हवे। जात-धरम के भेद भुला के सब संग मीत-मितानी हे सरमरस बन के जीना-मरना गाँव के सुग्घर कहानी हे। बड़े बिहनिया चिरई ह गाथे अउ कँऊवा के काँव हवे। –बलदाऊ राम साहू
Read Moreचतुर्भुज सिरक्कटी धाम
गुरू पूर्णिमा के परब मा, सुग्घर भराथे मेला। चलो संगी चलो मितान, जाबो सब माइ पिला।। महा ग्यानी ब्रम्हचारी गुरू, भुनेश्वरी शरण के अस्थान हे। पइरी नदी के घाट मा सुग्घर, सिरक्कटी धाम महान हे।। छप्पन भोग सुग्घर पकवान, सब भगत मन हाँ पाबोन। आनी बानी के साग भाजी के, खुला गजब के खाबोन।। रिषि मुनि सब साधु मन के, सिरक्कटी मा हावे डेरा। गईया बछरू के करथे जतन, देथे सब झन पानी पेरा।। जउन जाथे सिरक्कटी धाम, सब झन के पिरा भगाथे। निर्धन, बाँझन सबो झन, मन भर के…
Read Moreमोला मइके देखे के साध लागय : रामरतन सारथी
मोला मइके देखे के साध लागय … लुगरा ले दे, धनी मोर बर लुगरा ले दे हो । आजे काली मं आवत होही दाई ददा भेजे भइया हा । सुघ्घर बन के जावंव संग संग, आजे करम मोर जागे ॥ रंगे बिरंगा आंछी देख के मोटहा अउर खटउहां । गोडे मुड़ी ले रूंंघ वाला, देखें ते हा सहराये ॥ लइका लोगन बर धरबो खजानी, अइरसा अउ धरबो लाडू। पावंव पोटारंव चूमा लेके सब के, देहूँ ओला जइसे मांगे।। -रामरतन सारथी चंदैनी गोंदा के लोकप्रिय प्रसिद्ध गीत
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