एक गांव म किसिम किसिम के मनखे रहय। कन्हो करिया कन्हो गोरिया, कन्हो अमीर कन्हो गरीब, कन्हो निरबल कन्हो बलवान, कन्हो चरित्रवान कन्हो चरित्रहीन, कन्हो दयालु कन्हो निरदई, कन्हो अऊ काहीं …। सबला अपन अपन कनडीसन उपर गरब रहय। मऊका मउका म, गोरिया हा करिया उपर जबरन भारी परे बर धरय त, अमीर हा गरीब उपर … कभू बलवान हा निरबल ला जबरन डरवावय त, चतित्रहीन हा चरित्रवान के छीछालेदर कर देवय। निरदई के आगू म दयालु हा घुटना टेके बर मजबूर रहय। उही गांव म अइसे कतको परानी रहय,…
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गोरी के सुरता
सुरता आथे तोर वो गोरी, रही रही के मोला रोवाथे। का मया के जादू डारे, नैना ला तँय हा मिलाके।। रतिहा मा नींद आय नहीं, तोरेच सुरता हा आथे। अन पानी सुहाय नहीं, देह मा पीरा समाथे।। संगी संगवारी भाय नहीं, बइहा कस जिवरा जनाथे। चँदा कस तोर रूप गोरी, सुरुज पियासे मर जाथे।। खनर-खनर तोर चूरी खनके, छम-छम बाजे तोर पइरी। कब आबे मोर अँगना मा, तँय बता देना ओ गोरी।। गोकुल राम साहू धुरसा-राजिम (घटारानी) जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़) मों.9009047156
Read Moreबसंत ऋतु
आगे बसंत ऋतु ह संगी , सबके मन ह डोलत हे। पेड़ में बइठे कोयल ह, कुहु कुहु कहिके बोलत हे। बाग बगीचा हरियर दिखत, सुघ्घर फूल ह फूलत हे। पेड़ म बांधे हावय झूला, लइका मन ह झूलत हे। मउर धरे हे आमा में , महर महर ममहावत हे, फूल फूले हे फूलवारी में सबके मन ल भावत हे। हवा चलत हे अब्बड़ संगी डारा मन ह झूमत हे, खेत खार ह हरियर दिखत, लइका मन ह घूमत हे। चना मटर के दिन आये हे, लइका मन ह जावत…
Read Moreसरगुजिहा गीत- रूख ला लगाए डारबो
माथ जरे झिन मझिनहां कर घामा, छांहा बर रूख ला लगाए डारबो। रूखर दिखे झिन परिया-पहार हरियर बर रूख ला लगाए डारबो। फूल देथे-फर देथे अउर देथे छाया। काठ कोरो देथे बगरा देथे अपन माया।। बड़खा साधु कस हवे जी मितान, एहिच बर रूख ला लगाए डारबो। आमा कर हठुली घलो मउहा कर मदगी घलो। जमती कर ठेठी तले पाकर कर फुनगी।। नान कुन गांछी ला जोगावन सयान तेकरे से घोरना घोराए डारबो। जंगल कर रूख जमों बरखा ला बलाथे। भुइयां ला दाब राखेल बोहाए झिन बचाथे।। बगरा पतई हर…
Read Moreसरगुजिहा गीत- दिन कर फेर
देखा रे भाई कइसन दिन कर फेर। रात कभों दुख ले के आथे कभों उगत है बेर।। तीन लोक कर जे स्वामी गा राज-पाट सब छोड़िन। भाग बली गा उघरा पावें बन ले नाता जोड़िन। संग चलिन सीता माता गा है कइसन अन्धेर।। देखा रे भाई ……………….. जे सिरजिस संसार कहत हैं केंवटा पार उतारे। गंगा पर करे बर जोहें भवसागर जे तारे। जेकर बस में चांद सुरूज गा कहथें होत अबेर।। देखा रे भाई …………… काया-माया जेकर बस गो जे धरती ला धारे। सोन मिरग कर पाछू कूदिन बिन…
Read Moreसरगुजिहा गीत – गोई रे
अरे गोई झमकत पानी भरल जवानी ऊपर करिया रात गोई रे, ऊपर करिया रात।। भेदी पइरी बोले बइरी मानत नह है बात गोरी रे, मानत नइ है बात। आंखी में आंजे हों जेला कर डारिस गा घात गोई रे, कर डारिस गा घात। दे के पीरा लूटिस हीरा बइठे हों पछतात गोई रे, बइठे हों पछतात। पानी बिन मछरी अस चोला है आंखी झरियात गोई रे, है आंखी झरियात मरत पियासे हैं संगी मन हैं देखत बरसात गोई रे, है देखत बरसात। लागत है हिरदे सुरता में जइसे टूटल पात…
Read Moreभंवरा तोर मन के नोहे: बद्री विशाल परमानंद
परगे किनारी मा चिन्हारी, ये लुगरा तोर मन के नोहे लागे हाबे नैना मा कटारी, ये कजरा तोर मन के नोहे लडठका ह लउकत हे दांतन मा तोर मीठ बोलना बजा देते मादर ला तोर लइसे लागे तोर खोपा मा गोई गुंझियागे हे करिया बादर ह वो इंद्रराजा आगे धनुषधारी, ये फुंदरा तोर मन के नोहे….. कोन बन मा बंसरी बजाये मोहना सुरता समागे सूरसुधिया जकर बकर होगे रे लकर धकर होगे रे कइसे परावत हे रधिया जइसे भगेली कोनी नारी, ये झगरा तोर मन के नोहे….. नाचत हे रधिया…
Read Moreनरसिंह दास के सिव के बरात
आइगे बरात गांव तोरे भोला बबा जी के, देखे जाबो चला गिंया संगी ल जगावारे। डारो टोपी धोती पांव पैजामा कसिगर, गल बंधा अंग कुरता लगावरे॥ हेरा पनही दौड़त बनही कहे नरसिंह दास, एक बार हुहां करिसबें कहूँ धावारे। पहुंच गये सुक्खा भये देखि भूत-प्रेत, कहे नहीं बांचन दाई बबा प्राण ले भगाव रे॥ कोऊ भूत चढ़े गदहा म कोऊ, कूकूर म चढ़े कोऊ-कोऊ कोल्हिया म चढ़िआवत। कोऊ बिगवा म चढ़ि कोउ बघवा म चढ़ि कोउ घुघवा म चढ़ि हांक उड़ावत॥ सर्र-सर्र सांप करे गर-गर्र बाघ करे, हांव हांव कुत्ता…
Read Moreमेदिनी प्रसाद पाण्डेय के गीत
नो हो कछेरी ए हर नो है कछैरी, हाकिम मन बैठे बैठे खेलत है गरी ए हर नो है कछैरी……… चला भाई भाग चली प्राण ला धरी विधि के विधान में सुखाये पोखरी। ए हर नो है कछैरी……. दफा सार सौ बीस बूले खोल डगरी भरत हवे पेट कोई जी इ की मरी। ए हर नो है कछैरी…….. कतकी दुःख के धन कमाके, टीकट में भरी रिसराढ़ में मुरुख बन के नालिस करी। ए हर नो है कछैरी.. दीवानी फौजदारी अर्जी दावा मुलफरकात सम्मन्स वारंट डिग्री कुर्की अवधट घाट। ए…
Read Moreधनी धरमदास के सात छत्तीसगढ़ी पद
(1) पिया बिन मोहे नीक न लागै गाँव। चलत चलत मोर चरन दुखित भे, आँखिन पर गै धूर। आगे चलौ पंथ नहिं सूझै, पाछे परै न पॉव। ससुरे जावँ पिया नहिं चीन्है, नैहर जात लजावै। इहाँ मोर गाँव, उहाँ मोर पाही, बीच अमरपुर धाम ॥ धरमदास बिनवे कर जोरी, तहाँ गाँव ना ठाँव ॥ (2) साहेब बूड़त नाव अब मोरी काम क्रोध के लहर उठत हे, मोह-पवन झकझोरी | लोभ मोरे हिरदे घुमरत हे, सागर वार न पारी ॥ कपट के भँवर परे हे बहुते, वों में बेड़ा अटके |…
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