सुरता: हृदय सिंह चौहान

तरसा तरसा के, सुरता सुरता के तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस॥ जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता जिनगी मोर दुभर करे, कर डारे सुरतेच के पुरता तलफा तलफा के कलपा कलपा के तोर सुरता हर बैरी, निचट घुरा डारीस॥1॥ कचलोइहा कर डारे तंयहा, पीरीत सिपचा के अइसे जलाये रे मोला, न कोइला न राख के कुहरा कुहरा के गुंगवा गुंगवा के तोर सुरता हर बैरी, खो-खो के जरा डारीस।।2॥ अंगरी के धरत धरत, नारी मं पहुंच गये, का मोहनी खवा के रे मोला, लुटे अउ कलेचुप घूंच…

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मारबो फेर रोवन नह दन: समरथ गँवइहा

मारबो फेर रोवन नइ दन तुमन सुख पाबो कहथव कमजोरहा बुद्धि एको रच नइये परे हव भोरहा तिजोरी के कुंजी तूं हमला देहे हव तुंहर सुख ल होवन नइ दन मारबो फेर……… बिन पुछे तुंहला सुनावत हन हाल रेडियो इसटेसन ला करब थोरक खियाल का खरचा करे कतेक खरचा करे हिसाब म हम गलती होवन नइ दन मारबो फेर……… रहिस खरचा के इमानदारी तो रसीद मन साखी हवय पारी के पारी येक बात हय बड़े अफसर बड़े सेठ इ मन के गवाही होवन नइ दन मारबो फेर………. कुर्सी जाय के…

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परेवा गीत: बाबूलाल सिरीया दुर्लभ

उड़िया जा परेवा तंय, ले के संदेस, मोर पिया के देस पामगढ़ जाबे फेर सवरीनारायन, अंगना म लागे हवय आमा के पेड़। गर्रा-धूंका अस तंय जाबे, अऊ ओसने आ जाबे, रूख-राई के छंइहा म झन कोनो मेर सुरताबे। झनिच बिलमबे कोनो मेर न, झन करवे कहूँ अबेर। उड़िया जा परेवा तयं॥ चील- कँउवा-बाज हें अब्बड़ साव-चेती जाबे, सिकारी मन के माया जाल म जाके झन झोरसाबे। मोर दया-मया तंय संग ले जा, तोर होही रखवार। उड़िया जा. ॥ महनंदिया म पानी मिलही, चंडीगढ़ म चारा, तरिया तीर म ऊंखर महल…

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अन्न कुंवारी के जवानी: मन्नीलाल कटकवार

अन्न कुंवारी के जवानी सब ल आशीष देत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे। असाढ़ महिना चरण पखारै, सावन तोर गुन गाव । भादों महिना लगर-लगर के, तोला खूब नहवावै। कुवांर महिना कोर गांथ के, तोला खूब समरावे। कातिक अंक अंग म तोर, सोनहा गहना पहिरावै । तोर जवानी देख सरग के, रंभा होगे अचेत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे॥ उमर जवानी के मस्ती म, कसमकसात हे चोली। ऐती ओती गिरगिर के, बइहर संग करै ठिठौली। बीच खेत ले करगा राणी,…

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मोरो कोरा ल भर दे: मन्नीलाल कटकवार

हे राम! गजब मैं पापी, फोकट जनमेंव दुनियाँ म। कतका दिन होगे आए, नइए लइका कोरा म॥ जौन मोर ले पीछू आइन, उन हो गय हें लइकोरी। कोरा म पाके लइका, कुलकत हे जाँवर-जोड़ी ॥ सब धन-दौलत हे घर म, कोठी म धान हे जुन्ना। मोर दुखिया मन नइ मानै, एक ठन बिन घर हे सुन्ना॥ मोर सास-ननंद खिसियाथे, बोलियाथे पारा-टोला। छाती फाटे अस करथे, ठड़॒गी कइथें जब मोला॥ सब कइयथें तेला सहिथौ, छाती म पथरा धर के। मुँहले भाखा नइ बोलॉव, मरजाद रखे बर घर के। अंतस म सुलगे…

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बृजलाल प्रसाद शुक्ल के सवैया

अब अंक छत्तीस ल लागे कलंक हे, कैसे छोड़ाये म ये छुटही। मुख मोरे हावे पीठ जोरे हवै, गलती गिनती के है का टुटही॥ मुखड़ा जबले गा नहीं मुड़ही, तबले गा तुम्हार घरो फुटही। फुटही घर के लूट लाभ ले हैं, तुम ला चुप-चाप सबो लुटही ॥ तोरी मोरी जोरी के जे है बात, ये छोड़े बिना संग ना छुटहीं । लिगरी ल लगाय लराई के घात, के टनटा ट रे बिन ना टुटही॥ मुंह देखी के बोली ल छांडे बिना, घर के घर भेद नहीं फुटहीं। फुटही न कभू…

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गीत: सरद के रात

तैं अँजोर करे चंदा, हीरा मोती के चंदैनी बरे धरती धोवागे निरमल अगास खोखमा फूल के होवथे विकास लानिस संदेस ला डहरचला आवशथे जीव के जुड़ावन सगा लुंहगी मारथे सपरिहा, उमड़त हे मन हा उचैनी चढ़े…… खेत के तीर तीर खंजन चराय कुलकत हे धनमत हांसय लजाय आसा विचारी के मन होगे रीता सरग ले गिर परे धरती में सीता तोला खोजत हे पपिहरा, अइसन निठुर चोला काबर बने….. चंदा संग जमुना फुगड़ी खेले झांकत हे मधुबन दरपन देखे का कहिबे दीदी सुहावन के बात मोहनी सरदा रितु के रात…

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शेषनाथ शर्मा ‘शील’ के बरवै छंद

भासा, सहज, सरस, पद, नानक छंद जइसे गुर के पागे सक्‍कर कंद सुसकत आवत होइही भइया मोर छईंहा म रंचक डोलहन लेइहा अगोर मोर नगरिहा ल लागत होइही घाम बैरी बदर ते कस होगे बाम कइसे डहर निहारौ लगथे लाज फुंदरा वाला बजनी पनही बाज बहुत पिरोहित ननकी बहिनी मोर रोई रोई खोजत होइही खोरन खोर तुलसी चौरा के देंवता सालिकराम मइके ससुर के पूरन करिहा काम मोरसुरता म भइया दुख झन पाय सुरर सुरर झन दाईं रोये हाय इहां तौ हाबै काबर दोहिन गाय ननकी बाबू बिन गोरस नई…

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लाला फूलचंद श्रीवास्तव के कौशल प्रान्त ( छत्तीसगढ़ ) के बन्दना

जै जै कौशल्या के देश धोती, पगड़ी, छाता-छितोरी, जेकर भूषा-वेश ॥ जै जै….. ॥ अर्र तता तत गीता गाइन, हलधर जी के मंत्रा पाइन। नहि अपन खाके पर ला पोसे, नहि जाये बिदेश॥ जै जै….॥ छल कपट कछु नहि जाने, ब्राह्मणविष्णु खूबिच माने। पर हित खातिर माटी होके, पकाये अपन केंस ॥ जै जै….॥ छत्तीसगढ़ के छत्तिस बोली, उमड़ जाये ले नवधा गोली। रण चण्डी चढ़ जाये खप्पर, नहि देखे अपन शेश ॥ जै जै…..॥ सत्य, अहिंसा, दया, छमा, परिपूरन कौशल माता। राम लला कोरा में खेले, दूध पूत के…

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महाकवि कपिलनाथ कश्यप के ‘रामकथा’ के कुछ अंस

कैकेयी वरदान भरतलाल के गादी सुन दुख होथे तुंहला, मांग-मांग कहके फोकट गंधवाया मोला। रोवा झिन अब कहिस कैकयी खुबिच रिसाके, अइसन लगथे लाये, मोल बिसाके ॥1॥ तपसी मन अस भेख बनाके, बन नहीं जाही राम बिहनिया। मैं महुरा खाके मर जाहंव, ले के राम अवध तूं रइया॥ 2॥ डोंगहा संवाद डोंगा मा बइठा के मैं नंदिया नहकाथंव, लइका मन ला पोसे बर मजदूरी पाथंव। बिन डोंगा के का आने धंधा मैं करिहंव, नइ जानंव मैं कूच्छू बिन मारे के मरिहवं॥1॥ तूहूं तो ये भव सागर ले पार लगाथंव, बिन…

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