गिरिवर दास वैष्णव के गीत

सत्तावन के सत्यानाश किस्सा आप लोगन ला, एक सुनावत हौ भाई। अट्टारह सौ सन्‍्तावन के, साल हमर बड़ दुखदाई। बादसाह बिन राज हमर, भारत मां वो दिन होवत रहिस। अपन नीचता से पठान मन, अपन राज ला खोवत रहिस। इन ला सबो किसिम से, नालायक अंगरेज समझ लेईन। तब विलायती चीज लान, सुन्दर-सुन्दर इन ला देहन। करिस खुशामद खूब रात दिन, इन ला ठग के मिला लेइस। और जमीन लेके थोड़े से, कीमत ला चौगुन देइस। कपड़ा लत्ता रंग रंग के, घड़ी-घड़ी दे ललचाइस। तब बेटा से बाप अऊ, भाई…

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उठौ उठौ छत्तीसगढ़ लाल- बंशीधर पाण्डे के गीत

उठौ उठौ छत्तीसगढ़ लाल अपन जगा के देखो हाल मोरध्वज कंस राजा महा रहिस सत्तपन धारी जहां नृप कल्याण साय के सुन्दर रहिस गोपल्ला वीर धुरन्धर जे दिल्ली में नाम कमाइस छत्तीसगढ़ बलवीर देखाइस कवि गोपाल चंद्र प्रहलाद रहिन जहां कविता अल्हाद ते छत्तीसगढ़ ला सब लोग हांसत है तब ताली ठोंक आगू जूता पाछू बात तब आवै छत्तीसगढ़ हाथ ऐसे हाना जोरे हावै छत्तीसगढ़ ला बोरे हावै। हे छत्तीसगढ़िया भाई मन अपन जगा के निनन्‍्दा ऐसन सुनके जब हम चुप हो जावो तो का फेर हम मनुज कहाबो। बंशीधर…

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छत्तीसगढ़ के हम बनिहार: सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ’

मालिक ठाकुर मन के अब तक, बहुत सहेन हम अत्याचार आज गाज बन जावो जम्मो छत्तीसगढ़ के हम बनिहार। बरसत पानी मां हम जवान,खेत चलावन नांगर घर-घुसरा ये मन निसदित के, हमन पेरन जांगर हमर पांव उसना भोमरा मां, बन जाथे जस बबरा तभो ले गुर्रावे बघवा कस, सांप हवैं चितकबरा। इनकर कोठी भरन धान से, दाना दाना बर हम लाचार (आज) इनकर बढ़िया चिकन चांदन, घर ल हमीं ऊंचावन झारन पोछन लीपन बहारन, दर्पन जस चमकावन इनकार घर पहार जैसे है, हमर हवै छितका कुरिया ये मन सोचे सेज…

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चँदेनी के माँग में फागुन: पुरुषोत्तम अनासक्त

चँदेनी के माँग में फागुन बसै। तब चेहरा में पावों लाल-लाल फूल॥ हवा में कोन जनी का बात हे महमहावत हे दिन, महमहावत रात हे, चँदेनी के माँग में फागुन बसै। तब चेहरा में पावों परसा के फूल॥ उतरे हे सपना के रंग। जैसे भावत हे बादर के संग, चँदेनी के मिलकी में फागुन उतरै, तब चेहरा में पावों मोंगरा के फूल॥ बिजली, सम्हर के दिया-बाती बरै पुतरी के आँखी में काजर परे चँदेनी के अँचरा में फागुन उतरै । तब चेहरा में पावों आमा के मउर॥ चँदा के जीभ,…

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देख रे आंखी, सुन रे कान: भगवती लाल सेन

बोले मं परही चटकन तान, देख रे आँखी सुन रे कान। दही के भोरहा कपसा खायेन। गजब साल ले धोखा पायेन। गोठ गढ़ायेन, बहुत ओसायेन। तेखरे सेती आज भोसायेन। सीधा गिन के मिले खाय बर, खोजे कोनो डारा-पान। जनम के चोरहा बनिन पुजारी। सतवादी बर जेल दुआरी। सिरतोन होगे आज लबारी। करलई के दिन, झन कर चारी। बड़ गोहार पारे सेवा के, भीतरी खायं करेजा चान। कहिथे महंगी, होही सस्ती। हाँसत गाँव के हो ही बस्ती। अब गरीब के हो ही हस्ती। हर जवान में हो ही मस्ती। थोरको नइये…

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छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह: धरती सबके महतारी -डॉ. बलदेव

आज सुमत के बल मा संगी, नवा बिहनिया आइस हे अंधवा मनखे हर जइसे, फेर लाठी ल पाइस हे नवा रकम ले नवा सुरूज के अगवानी सुग्घर कर लौ नवा जोत ले जोत जगाके , मन ला उञ्जर कर लौ झूमर झूमर नाचौ करमा, छेड़ौ ददरिया तान रे धान के कलगी पागा सोहै, अब्बड़ बढ़ाए मान रे अनपुरना के भंडारा ए, कहाँ न लांघन सुर्तेय – अपन भुजा म करे भरोसा, भाग न ककरो .लुर्टय्‌ हम सहानदी के एं घाटी म कभू न कोनो प्यास मरँय रिसि-मुनि के आय तपोवन,…

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छत्तीसगढ़ी कविता के सौ साल: संपादक-डॉ. बलदेव

हमर तो ए मेर उद्देस्य एकेच ठन आय के छत्तीसगढ़ के सब्बोच अंचल के कवि मन ले थोरथार परिचय हो जाए। ए संकलन खातिर छत्तीसगढ़ी के चारों मुड़ा म संपर्क करे गय रहिस अठ कवि मन के कविता मन ल एक जगह रखे के प्रयत्न करे गइस | बहुत झिन कवि मन के रचना जेमन पत्रिका अउ किताब मन मा परकासित हे, अउ जेमन मिल सकीन ते मन ले कम से कम एकक ठिन प्रतिनिधि कविता के संकलन तियार करे गइस हे। बीस- पच्चीस साल ले हमर संगी जंवरिहा मन…

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साहित्यकार मनके धारन खंभा रिहिन डॉ. बलदेव

डॉ. बलदेव के चिन्हारी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत म सबो विधा म समान रूप ले सक्षम लेखक के रूप म होथे, फेर मैं उनला पहिली बेर एक समीक्षक के रूप म जानेंव. तब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका ‘मयारु माटी’ के प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव. उंकर पहिली रचना मोर जगा आइस, जेमा उन सियान साहित्यकार हरि ठाकुर जी के रचना संसार के लाजवाब समीक्षा लिखे रहिन हें. वोला पढ़के मैं बहुत प्रभावित होएंव. एकर पहिली मैं छत्तीसगढ़ी म अतका सुंदर समीक्षा अउ ककरो नइ पढ़े रेहेंव, तेकर सेती उनला तुरते चिट्ठी…

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छत्‍तीसगढ़ी काव्‍य के कुछ महत्‍वपूर्ण कवि: डॉ. बलदेव

हिन्दी के स्वाधीनता अऊ स्वावलम्बन सब्द मन के बीच म गाढ़ा सम्बन्ध हवय, ए दूनो सब्द के मूर्तिमान रूप पं. शुकलाल प्रसाद पाण्डेय छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के दूसर मजबूत खंभा आये जिंकर रचना कर्म के कारन गंवारू समझे जाने वाला छत्तीसगढ़ी बोली ल भासा के रूप म विकसित होय के ठोस अधार मिलिस, दिनों-दिन वोकर सम्मान म बढ़ोत्तरी होयम जमाना लगीस। आज तो जमाना बदल गय हे, हमर ये ही सुतंत्र चेता कवि मनीसी मन के रोपे बिरवा हर महाबट याने छत्तीसगढ़ी राज भासा के सरूप धारन करके फूले .फरे…

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नवा थियेटर के वरिष्ठ कलाकार अऊ रिंगनी-रवेली नाच पार्टी के जोक्‍कर उदय राम श्रीवास

छत्‍तीसगढ़ के माटी म एक ले बढ़के एक लोक कलाकार मन के जनम होए हे। ये धरती के लोक कलाकार मन देस-बिदेश म अपन कला के डंका बजाए हें, तइसनहे एक कलाकार उदय श्रीवास घलो ह रहिस। उदय श्रीवास हास्‍य अउ व्‍यत्‍पुन्‍नमि के जबर कलाकार रहिस, उमन रोवत दर्शक मन ल घलो हंसाए के सामरथ रखत रहिन। छत्‍तीसगढ़ी लोक कलाकार धन्‍नु सिन्‍हा के बताती, उदय श्रीवास मंजे कलाकार  भर नइ रहिन उमन  बेकस्टेज मे प्रस्तुति के पहिली एक-एक कलाकार मन के कपड़ा, वेश-भूषा उपर तको चेत करंय अउ अपन ले…

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