गांव-गांव पंचइती, खुलगे बांचे खुल जाही। अइसन सबे गांव हर ओकर, भीतर झटकुन आही।। गांव-गांव पंच चुनाही, भले आदमी चुनिहा। जेहर सबला एक इमान से, थाम्हे घर कस थुनिहा।। गांव के बढ़ती खातिर अब, लंजावर कमती होही। ओतके मिलही सफा बात ये, जउन हर जतका बोंही।। जतके गुर ततके मिठास कस, जउन काम जुरहीं। मिल के काम सबो छुछिंद हो, एक मती हो कुरहीं।। बनही, बात, बतंगड़ कमती- धीरे-धीरे होही। अलग चिन्हाऊ हो जाही जे, फोकट कोनो ला बिटोही।। पंच के पदवी पबरित हे, ये परमेश्वर के आसन। जे पद…
Read MoreAuthor: tamancha
चरगोड़िया – छत्तीसगढी़ मुक्तक
(1) भइया नवा जमाना आगे । हमरे करनी हमला खागे । चल थाना म रपट लिखाबो हमर मान मरजाद गँवागे ।। (2) कइसन होगे हमर करम ? कहाँ लुकागे हमर धरम? मोटियारी मन ला नई लागै फुलपेंट म लाज सरम ।। (3) धान होगे बदरा, मितान होगे लवरा, नदिया के पानी घलो, होत हवै डबरा। ओरछा के पानी हा, बरेंडी कोती जात हवै कतकोन नेता मन, होगें चितकबरा ।। (4) करम देस के फाटत हे । अउ जनता ला काटत हे । राजनीति आरक्षन के हमर देस ल बाँटत हे…
Read Moreडॉक्टर दानी के बानी
आजकल पढैया लैक मन बर ज़रूरी होगे हवय ट्यूसन, कारकि अब सिक्षा के क्षेत्र मा घलो बढ गेहे कांपिटिसन, हम तो अलवा जलवा गुटका ला पढ के पास होय रेहेन, वो समय तो कक्षा म चिलम चढा के आवय सिक्षक मन्, अब के स्कूल डिसीप्लीन ला बड़ महत्व देथे,साथे साथ, हर बछर उमन फ़ीस ला बढावत जावत हवय दनादन, अउ उही मन कहिथे कि नंबर पाना है तो ट्यूसन पढव, हमर से ट्यूसन पढहू तभे परीक्षा म पा सकहू नंबर वन। पर इंखर ट्यूसन फ़ीस हा स्कूल के फ़ीस से…
Read Moreफुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक….
(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही थी….) फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक खेलत हे नोनी फुदुक-फुदुक…. बिन कपड़ा बिन सेटर के जाड़ ल बिजरावत हे। कौड़ा-गोरसी घलो ल, एहर ठेंगा देखावत हे। बिन संसो बिन फिकर के, कुलकत हे ये गुदुक-गुदुक…… कभू गिरथे,…
Read Moreमे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हवव
आज करिया कोट के महिमा ला बतावत हववं, मे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हववं, ए दारिक तोर फ़ैसला जरूर करवा दू हूं कहिथे, पर मोर नाम आथे तो रोघहा हा घर मा रहिथे, मोर से हर पेसी मा वो दु सौ रुपया पेसगी लेथे,, अउ कोरट बाबू मन संग सन्झा कुन चेपटी पीथे, बिहनिया उकील हा साहब के कुकुर ला घुमाथे, अउ मंझनिया ओखर डौकी बर साग भाझी लाथे , बिरोधी हा भगा गेहे,रात दिन के पेसी से हार के, तभो ले केस ला धरे हे मोर…
Read More