पहुना: ग.सी. पल्‍लीवार

पहुना आगे, पहुना आगे
अब्बड़ लरा जरा हो
देखत होहू उनखर मन के

टुकना मोटरी मोटरा हो…..
कनवा कका, खोरवी काकी
चिपरा आँखी के उनखन नाती
रामू के ददा, लीला के दाई
बहिनी के भांटो मेछर्रा हो-

ननद मन ला हांसेला कहिदे
चटर चटर बोले ला कहिदे
तिलरी खिनवा करधन सूता
भइगे उत्ताधुर्रा हो-

रांधे के बेरा म मूड पिराये
आगी के आधघू म देंह जुड़ावे
देखत सुनत महूं बुढ़ागेंव
इनखन मन के नखरा हो-

भइया खाही जिमी कांदा
भौजी खोजे खेकसी खेकसा
कोनो पूछहिं ठेठरी खुरमी
बाचैं नहीं बरा हो-

पाना डारा राहेर काड़ी
चिलफा बोकला कांटा कांटी
बारे खातिर तेल नइये
नइये एक ठिन छेना हो-

चांऊर नइये, दार सिरागे
तेल गंवागे नून रिसागे
हरदी मिर्चा कहाँ लुकागे
नइये चना मुर्रा हो-

हड़िया मत ला टमर डारेंव
बरी बिजौरी नई में पाएंव
कर्जा करके गुर ला लानेंव
ओहूं ला लेंगे मुसवा हो-

सुनले सुनले नोनी के ददा
झन दे मोला रुपिया पइसा
सोना चांदी नइ लागे गा
हड़िया मन गा रिता हो-

ग.सी. पल्‍लीवार

छत्‍तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्‍यकार Chhattisgarhi language writers and litterateurs G.C.Palliwar

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