कुतर-कुतर के खाथस मुसवा,
काबर ऊधम मचाथस मुसवा।
चीं-चीं, चूँ-चूँ गाथस काबर तैं,
बिलई ले घबराथस काबर तैं ।
काबर करथस तैं हर कबाड़ा,
अब तो नइ बाँचे तोरो हाड़ा।
बिला मा रहिथस तैं छिप के,
हिम्मत हे तब देख निकल के।
कान पकड़ के नचाहूँ तोला,
अड़बड़ सबक सिखाहूँ तोला।
बलदाऊ राम साहू