चार पहर रतिया पहाईस ताहने सूरुज नरायण ललाहूं अंजोर बगरावत निकलगे। ठाकुरदिया के नीम अउ कोसुम के टीप डंगाली म जइसे रउनिया बगरिस रात भर के जड़ाय बेंदरा मन सकलागे । मिटींग बरोबर बइठे लागिस ,उंहे बुचरवा मन ए डारा वो पाना डांहके लागिस । मोठ डांट असन ह बने सबो झिन के बिचवाड़ा म बइठगे। जरूर उंकर दल के सरपंच होही वो ढुलबेंदरा ह। जाड़ के मारे घर ले निकले के मन नइ होत रिहीस हे फेर निकल गेंव ,कोनो जड़जुड़हा झन काहय कहिके। बिना आधार नंबर लिंक करे बेंक खाता असन मोर नाक होगे हवय ,उही म अंगरी ल ए टी एम कारड कस कोचकत हुदरत रउनिया तापत बेंदरा मन ल इंच्चट देखत रेहेंव। उंकर हाथ गोड़ के डोलई ,मुहु कान के भाव भंगिमा ले अइसे लागे जानोमानो परोसी देश म मिसाइल ढिलना हे । आज कति रवाना होना हे ,काकर बारी बखरी म जाना हे।
घेरी बेरी वो मन हमरे बारी कोति देखे धरिन। मोला अब कुछ कुछ नही, बनेच शंका होय लागिस ।आज मोरे बारी के पारी हे, हमरे घर कोति उंकर फौज अवईया हे। सेमी के नार बने लाहदे हे ढेंखरा म । झोंथा झोंथा फर घलो ओरमे हे,बने पोखाय घलो हे। मन तो काहत हे – कहुं ए मन मोर बारी म पहुंच जाही त तो बिनास निश्चित हे। अउ कहुं घरवाली देख परही त बारी के संगे संग मोरो हो जाही बेंदरा बिनास।
ए बेंदरा होय के घलो फायदा गजब हे दाऊ! एक घांव जोरदरहा हूंप कहिके नरिया दे ,सबो करू कस्सा डारा पाना गुर कस मीठे मीठ। जउन रुख म चढ़े ओकरे पाना पतेरा म दोंदर भर जाथे। अउ एति मानुस चोला ल तो मीठ के सुवाद ह घलो करु लागथे। बने उंचनहा रुख म चढ़ जा सबो दिख जाथे ,कोन मेर चारा कोन मेर पानी। काकर बारी म फर फूल काकर छानी म बरी। आज काली बेंदरा मन के नेटवर्क घलो ‘ चार ग’ ( फोर जी) किसम के होगे हवय। बरी बर रखिया पउलाय नइहे, दार पिसाय नइहे, बेंदरा अगुवाके छानी म अगोरत रहिथे । कब पररा म बरी खोंट के छानी म टांगे तो कब पितरदेव कस टप ले धरके अपन लोक भागे। कभू कभू ते बरी के सुवाद अतेक भा जाथे के जउन म सुखाय रहिथे ,तउने ल लेके उड़ा जथे दुसर देश परदेश कोति। कई कई दिन तक एति हिरक के नइ देखे जानो मानो थाना कछेरी म धांध दिही। उंकर शंका बिल्कुले निराधार घलो नी होय। कहुं खेदा बिदा करत सपड़ा जही त सिरतोन म बरी चोर लिखवाके घेंच म ओरा दे जाही। अउ पुछी ल बंड़वा घलो कर दे जाही।
फेर बेंदरा मन के ए बात बने लागथे ,भेदभाव नइ जानय। काकरो बरी होय चाहे काकरो बारी। पेट भरे से मतलब। जात नइ जाने न पात नी पुछे। का धरम का मजहब। मनखे ह अइसे परानी आय जे ह बेंदरा उतियईल करत रहिथे। राम भगवान ल सीता माता के खोज करेबर संगवारी के जरुरत परिस ,रावन संग लड़े बर दल बल सैनिक सिपहिया के जरुरत परिस तउन समय म इही बेंदरा मन उंकर संगत म कोनो बीर कोनो महाबीर बनगे। जेहा इतिहास म अमर होके आज भगवान बनगे। उही जमाना ले इंकर उपर हिन्दू होय के सील मोहर लगे हवय । एमन ल बिना मांगे हिन्दू होय के परमान पत्र मिले हवय। आज इंहा तो हिन्दू होय बर का का ल फोटू खींच के देखाय ल परत हे। कते कान म हिन्दू मन जनेऊ लपेटथे तउन ल परमानित करे जात हे। माने जउन मनखे जनेउ पहिने हे उही ह हिन्दू आय । बांकी सब ………!
जतेक झिन हिन्दू धरम ल मनईया हे ओकर आधा तो बिना जनेऊ के घुमत हे बेंदरा बरोबर। उही बेंदरा जउन राम के पाछु पाछु हूंप हूंप करत बड़े बड़े पहाड़ ल बोही बोही के फेंक दीन। पानी भीतरी पथरा के राजमारग बना डारिन। जे राम के किरपा ले छिन भर म दुख ,खुशी म बदल जाथे। दुच्छा झोली म खचा खच धन दोगानी भरा जाथे। एक दिन म महल तियार हो जाथे ! ओकर आशिरवाद ले मनखे मेछरावत हे । अइसे लागथे आज ए देश के मनखे सिरीफ फायदाच मारे बर बने हे। राम के नाव लेके जतका बटोरना हे ,बटोर लव। राम जब तक घर ले बाहिर रहिही ,बेदरा भालू ,ढेला पथरा सबो के कल्यान होवत रहिही। जे दिन महल भीतरी खुसर जही राम ह उही दिन ले बेंदरागिरी देखे बर नोहर हो जाही।
बेंदरा पुरान के बनईया मन बताथे- आज के ए मनखे घलो बेंदरच के पोथी पीढ़ी आय। हमर पुरखा मन घलो बेंदरा रिहीन हे तउने पाय के आज के मनखे सुभाव ह बेंदरच कस लागथे। एकर धन त वोकर दौलत। एकर दूवारी त वोकर सुवारी । ललचाहा…. कहिंके ….!
ए दे तुंहर संग गोठियात गोठियात बेरा के पता नी चलिस। ए ददा ..! कब ले ढेंखरा म यहा दे बइठे हे , हो हो ….., हा हा ……, नी बांचे रे ………..!
मोरो होइस आज बेंदरा बिनास!
ललित नागेश
बहेराभांठा( छुरा)
493996
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