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पितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : भगवती चरण सेन

नेरुवा दिही छांड के बेपारी मन आइन,
छत्तीसगढ़ के गांव गांव मं सब्बो झन छाईन
लडब्द् परेवा असन अपन बंस ला बढाईन।
कहि के ककाा, बबा, ममा, चोंगी ला पिया के।
घर मां खुसर के हमर पेट ला मर दिहीन …।
चांदी के सुंता, बारी फूल कंस कहां गए ?
हाड़ा असन दिखत हावे, तोर मांस कहां गे
सबो होंगे बरोबाद, सईतनै कहां गे प
खाता मं नांव लिख के , तोला खा के बइठ गे
छुट्टे रहिबे कहि के , तोला लगा मं दाल मिहीनम्म्म !!

भगवती चरण सेन

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