भोलापुर के कहानी के का बतावंव। किताब तुंहर हाथ म हे। पढ़ के खुद देख लव। संगवारी हो ! भोलापुर गांव, जेकर कहानी ये किताब म लिखाय हे, कोन जगा हे? कोन तहसील अउ कोन जिला म हे? उहां के आबादी कतेक हे? उहां के रहवइया मन कइसन हें ? उहां का अइसन घटना घट गे कि जेकर कहानी बन गे? कहानी के कलाकार मन कइस-कइसन हें ? सबो झन विहिंचेच के आवंय कि अनगंइहां घला हें ? अबड़ अकन सवाल हे।
लेखक के गांव के नांव भोड़िया हे। मोर अनुमान रिहिस कि इही भोड़िया गांव ह बदल के भोलापुर हो गे होही। पेटला महराज, डेरहा बबा, झाड़ू गंउटिया, सुकारो दाई, नंदगहिन काकी, मंगलू राम, मरहा राम, किसन, रघ्घू , जगत, संपत, मुसवा विfहंचे के रहवइया होहीं। फेर लेखक-कवि के मन के बात ल भला कोई जान सके हें ? कोन्हों समझ सके हें ?
भोलापुर गांव हमरे तुंहर गांव जइसन हे फेर बड़ा विलक्षण घला हे। सड़क के किनारे बसे हे। छानी ले दे के दु सौ होही। फेर जइसे-जइसे किताब के पत्ता पलटत जाबे, वोकर विस्तार होवत जाथे। कभू लगथे कि भोलापुर म पूरा छत्तीसगढ़ ह आ के समावत जावत हे, समा गे हे, त कभू लगथे कि भोलापुर गांव ह खुद फैलत-फैलत अतका फैल गे हे कि वो ह पूरा छत्तीसगढ़ म व्याप्त हो गे हे। फेर तो ये कहानी मन केवल भोलचपुर के नई रहि जाय, पूरा छत्तीसगढ़ के कहानी हो जाथे। कहानी मन खाली भोलचपुरिहा मन के कहानी नइ रहि जाय, पूरा छत्तीसगढ़िया मन के कहानी हो जाथे। भाषा के अपन गुण अउ सामर्थ्य होथे। बता देथे कि बोलइया ह कहां के रहवासी आय। वोकर नीयत का हे।
कुबेर के कहानी कहे के भाषा अउ शैली धला दूसर कथाकार मन से अलग हे। ये कहानी संग्रह के खास बात ये हे कि एकर सबो कहानी मन के सूत्र ल जोड़ देबे त येमा उपन्यास के घला मजा आ जाथे। व्यंग्य के अइसन बघार हे कि स्वाद के का पूछना। बहुत झन साहित्यकार मन बहुत दिन से छत्तीसगढ़ी कहानी लिखत हें फेर ये कहानी मन उन सब ले अलग हें।
कुबेर ककरो परंपरा के कहानीकार नोहे, इंखर खुद के अपन परंपरा हे।
26 सितंबर 2010
सुरेश ‘सर्वेद’
साधु चाल, तुलसीपुर, राजनांदगांव
किताब के आघू भाग सरलग …..