गोरी होवै या कारी होवै।
सारी तब्भो ले प्यारी होवै।
अलवा-जलवा राहय भले जी
एकठन हमर सवारी होवै।
करन बड़ाई एक दूसर के
काकरो कभू झन चारी होवै।
राहय भले घर टुटहा-फुटहा
तब्भो ले ओ फुलवारी होवै।
बेटा कड़हा – कोचरा राहय
मंदहा अउ झन जुवारी होवै।
‘बरस’ कहत हे बात जोख के,
जिनगी म कभु झन उधारी होवै।
तब्भो = तो पर भी, अलवा-जलवा= समान्य, चारी= निंदा, कड़हा-कोचरा =अनुत्पादक, मंदहा =मद्यपान सेवन करने वाला,
मन मा जब तक अहसास हावै जी।
अंतस मा सब उल्लास हावै जी।
कब तक खोजहु तुम बाहिर-बाहिर,
जम्मो तुहरेंच पास हावै जी।
सच हर हाँसत-मुसकावत हे जब
काबर मन हर उदास हावै जी।
अंतर मन ले कल लेवौ दरसन,
लकठा कासी कैलास हावै जी।
राम बसे हे तोर मन म जब तक,
‘बरस’ के मन ह उजास हावै जी।
लकठा= निकट, तुहरेंच =तुम्हारे।
रितु बंसत मा कऊँआ गाही, तब का कर लेबे।
अउ कोयल हर जीव चुराही, तब का कर लेबे।
बिन पानी के काँदी – कूसा हरियावत हावै,
परसा, सेमर ठाढ़ सुखाही, तब का कर लेबे।
विस्वास के नइ हे इहाँ कौनो लेखा-जोखा,
हितवा हर बइरी बन जाही तब का कर लेबे।
संसार के जीव मन जम्मो रद्दा मा रेंगथे।
मनखे मन राक्षस बन जाही तब का कर लेबे।
जिनगी भर तैं हाड़ा ला टोरे हस जिनकर बर,
अंत समे म उही धकियाही, तब का कर लेबे।
काँदी कुसा=घास-पुस, परसा-सेमर = पलाश और सेमल, मनखे =मनुष्य, रद्दा= रास्ता,
हाड़ा=हड्डी, समे=समय,
जिनगी के होथे रंग हजार कका।
सुख-दुख के गजब हे बइपार कका।।
बसंत आ गे हे आमा हर मऊरे हे,
सेमर अउर परसा के तिहार कका।
अरसी हर कुलकत हे सरसों हाँसत हे,
आँखी ला अपनो चिटकुन उघार कका।
आ गे फागुन गड़िया लेतेन मड़वा,
बइठे हस तैं काबर सियार कका।
जुड़ जही मया संग पिरित के डोरी हर,
हम तो बइठे हावन तइयार कका।
हाँस लेतेन तैं गोठिया लेतेन हम,
इही हर तो हमर तोर पियार कका।
सेमर=सेमल, परसा=पलाश, चिटकुन=थोड़ा, मड़वा =मंडप,सियार=सरहद, गोठिया = बात , उघार= खोल, लेतेन= कर लेते ।
मैं हर तोर बात के एतबार करेंव,
भरमे भरम मा तोर ले पियार करेंव.
चारदिन के जिनगी के का हे भरोसा,
आँखी रहिस दुई, आेला चार करेंव.
जिनगी जीये के कतको अधार हावय,
खुद ल धोखा देंव, गलती हजार करेंव.
कहि देस टूप ले, तोर कुछु काम नइ हे,
लागिस जिनगी ला मैं हर खुवार करेंव.
बात-बात मा संगी बात हर बिगड़ गे,
रिस लागिस, बानी ला अपन धार करेंव.
जेकर हाथ मा बसुला अउ आरी हावै।
उही हमर आज बड़का सँगवारी हावै।।
धरम-ईमान के फिकर कौन इहाँ करथे,
बात-बात मा फतवा इहाँ जारी हावै।
ओ टूरा मन अड़बड़ छाँटत हावै टूरी,
राज भर के जम्मो टुरी कुवाँरी हावै।
राजपाट ला जेकर हाथ म सौंपे तुमन,
जानेव नही, बड़का उही जुवारी हावै।
कोठी म पहरा देवत हे मुसवा मन हर,
अउ दुहना कर बिलई के रखवारी हावै।
अब तो संगी गियाना नँदागे।
पहलीसहीं सहीं सियान नँदागे।
काकर मानी ल हम पियन,
बिस्वास हमर,मितान नँदागे।
कौन इहाँ जाँगर टोरत हे ,
मिहनतकस किसान नँदागे।
लबरा मन सब नेता बनगे,
सब करगा हें, धान नँदागे।
मिथिया हे सब कहना इहाँ,
मनखे के सुभिमान नँदागे।
सियान= बुजुर्ग/मुखिया, काकर मानी ल हम पियन = किस पर विश्वास करें, सहीं=की तरह, करगा = धान का प्रतिरूप पर धान नहीं,मिथिया=मिथ्या।
अब तो मुड़ मा चढ़ गोठियाथे भट्ठी के पानी हर.
विरथा होवत हावै पगला तोर भरे जवानी हर.
मुफत मा चाँऊर-गहूँ मिलत हे चिटिक गुनव विचारो,
गजब जुन्ना हावय रे ये धरती के हमर कहानी हर.
खेत-खार सब परिया होगे, अँगना सुन्ना होवत हे,
अब तो चुचुवावत दिखै नाही, माथा के पानी हर.
सुभिमान के रोटी के रे मान गजब हे दुनिया मा,
ये धरती के मान बढ़ाथे राणा के कहानी हर.
मन मा बने बिचार लाहू, तब समरसता आही रे,
सुम्मत के इतिहास लिखौ तुम, मान पाही सियानी हर.
कुकुर कस झन भुँकव तुम रे, छाती ला तनियावव झन,
सब ला फरिहा देवत हावै, ‘बरस’ के सोझे वानी हर.
मुड=सिर,गोठियाथे=बोलता हे, विरथा =व्यर्थ, सियानी=नेतृत्व, फरिहा =अलग-अलग जुन्ना=पुराना, सोझे= सीधा।
धरती ले मया नँदागे, काबर कहिथस।
घर-घर म बइरासु आ गे, काबर कहिथस।
छत्तीसगढ़ म गुरुतुर – गुरुतुर भाखा हे,
भाखा-बोली हमर परागे, काबर कहिथस।
कभु नइ टूटय मया-पिरित के डोर इहाँ,
नाता-रिस्ता सब छरियागे, काबर कहिथस।
सब के घर म देवारी के दीया बरत हे,
अँधियारी ह भीतरी आ गे, काबर कहिथस।
‘बरस’ सबो दिन एक बरोबर नइ होय जी,
जम्मो हमरे भाग नठागे, काबर कहिथस।
फूल समझ के झन सँहराहू धथुरा हे,
टमड़ के देख लौ दिल, ओकर पखरा हे।
सोच समझ के देहू तुमन बिचार अपन
कौनो करिया, धँवरा कौनो कबरा हे।
पीट-पीट के छाती जउन गोठियात हे,
झन समझहूँ दुखिया, ओमन बपुरा हे।
बात-बात मा आँसू जउन बोहात हावै,
सच कहत हौं नइ हे सिधवा, चतुरा हे।
कसम देस के खावत हे जउन मनखे मन
‘बरस’ कहत हे पक्का ओमन लबरा है।
झन सँहराहू= प्रसंशा मत करना, धथुरा=धतूरा , धँवरा=धवल, बपुरा = चालक, सिधवा= सीधा
बलदाऊ राम साहू