ठेंसा

जान चिन्हार: सूत्रधार, सिरचन, बेटा, दाई, नोनी, बड़की भौजी, मंैझली भौजी, काकी, मानू दिरिस्य:1 सूत्रधारः- खेती बारी के समे, गांॅव के किसान सिरचन के गिनती नी करे, लोग ओला बेकार नीही बेगार समझथे, इकरे बर सिरचन ला डोली खेत के बूता करे बर बलाय नी आंय, का होही ओला बलाके? दूसर कमियामन डोली जा के एक तिहाई काम कर लीही, ता फेर सिरचन राय रांॅपा हलात दिखही, पार मा तौल तौल के पांय रखत, धीरे धीरे, मुफत मा मजूरी दे बर होही, ता अउ बात हावय।——- आज सिरचन ला मुफतखोर,…

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मंगल पांडे के बलिदान : 8 अप्रैल बलिदान-दिवस

अंगरेज मन ल हमर देस ले भगाए बर अउ देसवासी मन ल स्‍वतंत्र कराए बर चले लम्बा संग्राम के बिगुल बजइया पहिली क्रान्तिवीर मंगल पांडे के जनम 30 जनवरी, 1831 के दिन उत्तर प्रदेश के बलिया कोति के गांव नगवा म होय रहिस। कुछ मनखे मन इंकर जनम उत्‍तर प्रदेश के साकेत जिला के गांव सहरपुर म अउ जन्मतिथि 19 जुलाई, 1927 घलोक मानथें। मेछा के रेख फूटतेच इमन सेना म भर्ती हो गये रहिन। वो बखत सैनिक छावनी मन म गुलामी के विरुद्ध आगी सुलगत रहिस। अंग्रेज मन जानत…

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बाबू जगजीवनराम अऊ सामाजिक समरसता : 5 अप्रैल जन्म-दिवस

हिन्दू समाज के निर्धन अऊ वंचित वर्ग के जऊन मनखे मन ह उपेक्षा सहिके घलोक अपन मनोबल ऊंचा रखिन, ओमां बिहार के चन्दवा गांव म पांच अप्रैल, 1906 के दिन जनमे बाबू जगजीवनराम के नाम उल्लेखनीय हे। ऊंखर पिता श्री शोभीराम ह कुछ मतभेद के सेती सेना के नौकरी छोड़ दे रहिस। उंखर माता श्रीमती बसन्ती देवी ह गरीबी के बीच घलव अपन लइका मन ल स्वाभिमान ले जीना सिखाइस। लइकई म बाबू जगजीवनराम के स्‍कूल म हिन्दू, मुसलमान अउ दलित हिन्दु मन बर पानी के अलग-अलग घड़ा रखे जात…

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पूस के रात : प्रेमचंद के कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद

हल्कू हा आके अपन सुवारी ले कहीस- “सहना हा आए हे,लान जउन रुपिया राखे हन, वोला दे दँव। कइसनो करके ए घेंच तो छुटय।” मुन्नी बाहरत रहीस। पाछू लहुट के बोलिस- तीन रुपिया भर तो हावय, एहू ला दे देबे ता कमरा कहाँ ले आही? माँघ-पूस के रातखार मा कइसे कटही? वोला कही दे, फसल होय मा रुपिया देबो। अभी नहीं। हल्कू चिटिक कून असमंजस मा परे ठाढ़े रहीगे। पूस मुँड़ उपर आगे,कमरा के बिन खार मा वोहा रात कन कइसनो करके नइ सुत सकय। फेर सहना नइच मानय,धमकी-चमकी लगाही,गारी-गल्ला…

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अपन-अपन समझ

जब मेहा अपन चार बछर के बेटा रामसरूप ला बने तउल के देखथंव, त जान परथे के वोमे भोलापन अउ सुनदरई नई रहि गे, जउन दू बछर पहिली रिहिस हे। वो अइसे लागथे जाना-माना अपने गुस्सेलहा बानी म लाल आंखी मोला देखावत हे। वोकर ये हालत ला देख के मोर करेजा कांप जथे अउ मोला अपन वो बचन के सुरता आ जथे जउन दू बछर पहिली मरन सैय्या म परे वोकर महतारी ल दे रेहेंव। मनखे अतेक सुवारथी अउ अपन इंद्री के गुलाम हे के अपन फरज ला कोनो बखत…

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सुरुज किरन छरियाए हे

तैंहर उचिजाबे गा, सुरुज किरन छरियाए हे। अब नइये बेरा हर, सुत के पहाये के अब नइये बेरा अंटियाये के अब नइये बेरा हर ऊँघाये सुरताये के आये हे बेरा हर कमाये के आँखी धो लेबे गा, चिरगुन मन पाँखी फरकाये हे। झन तैं बिलमबे उतारे बर नांगर ला जऊने खोंचाये हे काँड मन मां झन तैं बिलमबे धरे बर तुतारी ला जऊने धराये हे बरवंट मां तैंहर धरि लेबे गा, खुमरी ला, बादर अंधिंयारे हे। लकर लकर रेंग देबे खेत कोती तैंहर भुइया तोर रद्दा ला जोहत हे बइलन…

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जय जय हो धरती मइया

जय जय हो धरती मइया। तोरेच बल में गरजत हावन खात खेलत बहिनी भइया। जय जय हो धरती मइया ॥ बजुर बरोबर बडे़ माथ में छाती अडा़ हिमालय गंगा जमुना निरमल धारा, सबके जीव जुडावय विन्ध्य सतपुडा बने करधनी कनिहा गजब सुहावय महानदी कृष्णा कावेरी गोदावरी मन भावय ब्रम्हपुत्र नर्मदा ताप्ती ठंव ठंव नांव जगावय चारों खूंट मां चार धाम के घर घर दरस देवइया। उत्ती बुड़ती घाट बिराजे उटकमंड अऊ आबू अरब अऊर बंगाल समुंदर खडे हे आजू बाजू सतलज झेलम अऊ चिनाब के सिंधु मनोहर राजू बाग बगइचा,…

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दूसरइया बिहाव

जब मेहा अपन चार बछर के बेटा रामसरूप ला बने तउल के देखथंव, त जान परथे के वोमे भोलापन अउ सुनदरई नई रहि गे, जउन दू बछर पहिली रिहिस हे। वो अइसे लागथे जाना-माना अपने गुस्सेलहा बानी म लाल आंखी मोला देखावत हे। वोकर ये हालत ला देख के मोर करेजा कांप जथे अउ मोला अपन वो बचन के सुरता आ जथे जउन दू बछर पहिली मरन सैय्या म परे वोकर महतारी ल दे रेहेंव। मनखे अतेक सुवारथी अउ अपन इंद्री के गुलाम हे के अपन फरज ला कोनो बखत बेरा म…

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छत्‍तीसगढ़ी कवित्‍त म मुनि पतंजलि के योग दर्शन औ समझाईस : डॉ.हर्षवर्धन तिवारी

डॉ.हर्षवर्धन तिवारी के अनुवाद करे छत्‍तीसगढ़ी कवित्‍त म मुनि पतंजलि के योग दर्शन औ समझाईस सेव करें और आफलाईन पढ़ें

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दूध म दनगारा परगे…

(पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की हिन्दी कविता *दूध में दरार पड़ गई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले) लहू कइसे सादा होगे भेद म अभेद खो गे बंटगें शहीद, गीत कटगे करेजा म कटार धंसगे दूध म दनगारा परगे… मयारू माटी म येला पढ़व इंहा..

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