जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे… Read More
वा रे मनखे रूख रई नदिया नरवा सबो ल खा डरे रूपिया- पैसा धन-दोगानी, चांदी-सोना सबो ल पा डरे जीव-जंतु,… Read More
कविता, झन ले ये गाँव के नाव, ठलहा बर गोठ, हद करथे बिलई, बिजली, चटकारा, बस्तरिहा, अंतस के पीरा, संस्कृति, तोला छत्तीसगढी, आथे!, फेसन, कतका सुग्घर बिदा, गणेश मढाओ योजना, बेटा के बलवा, बाई… Read More
हरियर-हरियर खेत खार, सुग्घर अब लहरावत हे। किसान के मन मा खुशी छागे, अब हरेली तिहार आवत हे।। खेत खार… Read More
तयं काबर रिसाये रे बादर तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती, अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I नदियाँ, नरवा, तरिया… Read More
सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे। सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।। हंसी… Read More
आज अंधियारी म बितगे भले, त अवइया उज्जर कल बनव। सांगर मोंगर देहें पांव हे, त कोनो निरबल के बल… Read More