सोनहा समे हे सावन सम्मारी, भजय भगद हो भोला भण्डारी। सोनहा समे हे सावन सम्मारी, भजय भगद हो भोला भण्डारी।।…….. नीलकंठ तोर रूप निराला, साँप-डेरू के पहिरे तैं माला। जटा मा गंगा,.माथ मा हे चंदा, अंगरक्खा तोर बघवा छाला।। भूत,परेत, नंदी हे संगवारी। सोनहा समे हे सावन सम्मारी।।१ भजय भगत हो भोला भण्डारी।।……….. कैलासपती तैं अंतरयामी, तीन लोक के तैं हर सुवामी। सिचरन संग सकती साजे, देबी देवता के तैं देव धामी।। जगत म जबर तैं जटाधारी। भजय भगत हो भोला भण्डारी।।२ सोनहा समे हे सावन सम्मारी।।…………. सिवसंकर बड़ बरदानी,…
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दारु के निसा
अगोरा करथे बारह बज्जी के मंदिर कस भीड़ सकलाय रहिथे गांव गांव के दारूभट्ठी म दारु बर लाईन लगाय रहिथे सियान जवान निसा म मोहाय चेपटी पउंव्वा चघाय रहिथे कोट कोट ले पीके दारू मंद मताउंना म पगलाय रहिथे कोनो चिखला अउ कोनो डबरा म टुन्न ले पीके परे रहिथे अपन तन के हियाव नईहे उपराहा अउ धरे रहिथे पीए बर पईसा मांग-मांगके घर दुवार ल गिरवी धरत हे खाय बर चाउंर दाना नईहे धान चाउंर बेचके पीयत हे कतरो मनखे दवा टानिक सरि एकरे भरोसा म जीयत हे नसा…
Read Moreकविता संग्रह : छत्तीसगढ़ ल बंदव
मिलन मलरिहा के कविता संग्रह छत्तीसगढ़ ल बंदव अऊ बंदव इहाँ किसान ल भईया… धनहा कटोरा भरे न…… ए गा सियनहा…. छत्तीसगढ माटी हे सोना के उपजईया महानदी दाई छलकावत हावय मया सबे कोती बोहावत हावय न, संगे अरपा…. धनहा कटोरा भरे न…..
Read Moreसावन झूला
सावन महीना आ गे संगी , चलव झूला झुलबो । सखी सहेली सबो संगी, एके जगा मा मिलबो । अब्बड़ मजा आही बहिनी , जब झूला मा झुलबो । जाबो अमरइया के तीर मा , एके जगा सब मिलबो । मंदिर जाबो सबो झन हा , शिव भोला ल मनाबो । दूध दही अउ नरियर भेला, मन श्रद्धा से चढाबो । औघड़ दानी शिव भोला हे , सब ला देथे वरदान । नियम पूर्वक श्रद्धा से, करथे जे ओकर मान । सावन के सोमवारी मा , रहिबो हम उपवास ।…
Read Moreशिव भोला ल मनाबोन
चल संगी भोला ल मनाबोन , बेलपान अऊ नरियर भेला ल चढाबोन । चल संगी भोला ल मनाबोन । नदियाँ नहाबोन अऊ दीया जलाबोन । धोवा धोवा चाँउर शिव भोला मा चढाबोन । हावय अब्बड़ भीड़ भाड़, हमू लाइन लगाबोन । चल संगी भोला ल मनाबोन …………….. भोले बाबा के जी , महिमा हे भारी । पूजा करत हे , सबो नर नारी । होवत हे आरती, हमू घंटी बजाबोन । चल संगी भोला ल मनाबोन ……………… औघड़ दानी हावय , अब्बड़ शिव भोला । जे मांगबे तेला , दे…
Read Moreआगे हरेली तिहार
आगे हरियर हरेली तिहार उल्हा उल्हा पाना हरियाथे राउत खोचय लीम डारा डेराउठी मुहाटी म खोचाथे राउतईन दाई ह सुग्हर हथना माईकोठी कुरिया म बनाथे सुपा-सुपा सेर चाउंर धान सिधो सिधो ठाकुराइन देवाथे गहुं पिसान के गोल-गोल गाय गरुंवा बर लोंदी सानथे कांदा कुसा अउ जड़ी बूटी बरदिहा मन करले लानथे अंडा पान के लगाके पशुधन गरूंवा ल खवाथे कभु बिमारी झन आवय देवी देवता ल मनाथे नांगर कोप्पर गैती रापा हंसिया बसला सबो धोवाथे रंग-रंगोली तुलसी चउंरा ल चउंर पिसान के पुर पुराथे ओईरसा अंगना के तिरे तिर भांठा…
Read Moreतोला देखत रहिथवं
तोला मैंय देखत रहिथंव “माया”, दिन अउ रात मैंय तोला देखत रहिथंव!! पुन्नी के चंदा कस तोर चेहरा चमके वो, गोंदा के फुल ह तोर खोपा म महके वो!! तैंय मोर चंदा चकोर असन दिखत हस, अउ भौउंरा कस महक ल मोर लेवत हस!! तोर माथा के टिकली बिजली असन चमके वो, गर के तोर माला हीरा असन चमके वो!! तोला मैंय देखत रहिथंव “माया”, दिन अउ रात मैंय तोला देखत रहिथंव!! सोनु नेताम”माया” रुद्री नवागांव धमतरी
Read Moreकिसानी अपन करथो
सुत उठ बडे बिहनिया करम अपन करथो भुइंया के लागा छुटे बर म्हिनत मेहा करथो खुन पसिना ले सिच के धरती हरियर करथो मे किसान अव संगी किसानी अपन करथो जग ला देथो खाए बर मे घमण्ड चिटको नइ तो करो नइ रहाव ऐसो अराम मे महिनत करथो इमान ले छल नइ हे मोर मे नइ हे कपट महिनत हाबे मोर धरम भगवान नो हरो धरती के मइनखे मे हा हरो जानो मोर महिनत ला बस अतनि दया करो बासी पेज खा के जिनगी अपन जि थो किसान अव संगी…
Read Moreसावन आगे
सावन आगे संगी मन भावन आगे। मन ल रिझाये बर फेर सावन आगे। चारो मुड़ा फेर करिया बदरा ह छा गे, हरियर-हरियर लुगरा म भुईया ह रंगा गे। सावन आगे संगी, फेर सावन आगे। रिमझिम-रिमझिम बरसत हे बादर , सब्बो मनखे के जीव ह जुड़ा गे। सुक्खा के अब दिन पहागे, सब्बो जगहा करिया बादर छा गे। सावन आगे संगी सुग्घर सावन आगे, मन ल मोहाय बर, अब सावन आगे। फुहर-फुहर बरसत हे बदरा, फेर सब के मन ल भिगोत हे। सावन के संग अब, मनखे के मन ल मोह…
Read Moreगाँव गाँव आज शहर लागे
गाँव म गरीब जनता खातिर चलाये जात योजना मन उपर आधारित गाँव गाँव आज शहर लागे, चकचक ले चारो डहर लागे ! फूलत हे फूल मोंगरा विकास के, ओलकी कोलकी महर महर लागे ! जगावत हे भाग अमृत बनके , जे गरीबी हमला जहर लागे ! संसो दुरियागे देख नवा घरौंदा, खदर जेमा ढांके हर बछर लागे ! काया पलटत जमाना हे ललित, सांगर मोंगर होगे जे दुबर लागे! रद्दा गढ़त अब बिन संगवारी के, रेंगत अकेल्ला जिंहा डर डर लागे ! घात सुग्घर निखरत रूप भूंइया ला, देखव बने…
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