डोंगरी गुंगवावत हावय,कोरिया फूल महमहावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। भुंईया पहिरे हरियर लुगरा बादर दिखय करिया करिया। मन मतंग होके बेंगवा छत्तीस राग गावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। किसनहा के मन हरसागे। धनहा डोली म धान बोवागे। रोपा,बियासी के बुता म रमके लइहा मतावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। गली -खोर सब चिखला माते। नान्हे नान्हे जम्मो लइका नाचे। नदिया-नरवा,ढोंडगा म बइहा धार बोहावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। रीझे यादव टेंगनाबासा(छुरा)
Read MoreCategory: कविता
छत्तीसगढ़िया कहाबो, छत्तीसगढ़ी बोलबो अउ चल संगी पढ़े ला
छत्तीसगढ़िया कहाबो अपन महतारी भाखा ल गोठियाबो, छत्तीसगढ़िया कहाबो,संगी छत्तीसगढ़िया कहाबो। लहू म भर के भाखा के आगी,छत्तीसगढ़ी ल गोठियाबो। छत्तीसगढ़िया अब हम कहाबो, छत्तीसगढ़िया कहाबो। अमर शहीद पुरखा के आंधी ल, अपन करेजा म जराबो। बलदानी वीरनारायण जइसे, छत्तीसगढ़ के लईका कहाबो। अपन माटी अपन मया ल, छत्तीसगढ़ महतारी बर लुटाबो। छत्तीसगढ़िया कहाबो भईया, छत्तीसगढ़िया कहाबो। बघवा असन दहाड़ के,छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाबो। अपन महतारी भाखा ल जगाबो। महतारी भाखा ल जगाबो। छत्तीसगढ़ के माटी के, करजा ल अब छुटाबो। छत्तीसगढ़िया कहबो संगी छत्तीसगढ़िया कहाबो। छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा, ल…
Read Moreबेटी के सुरता
सोचथंव जब मन म, त ये आंखी भर जाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। का पानी, का झड़ी,बारहों महिना करथे काम। का चइत, का बइसाख, तभो ले नइ लागय घाम। धर के कटोरा, जब गली-गली भीख मांगथे। तब मोला,वो बेटी के सुरता आथे।। बेटा ह पछवागे, बेटी ह अघवागे। देस के रक्छा करे बर, बेटी आघु आगे। नीयत के खोटा दरिंदा मन, जब वोला सिकार बनाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। घर दुवार छोड़, जब बेटी जाथे ससुरार। बस एक दहेज खातिर, बेटी ल देथे मार।…
Read Moreमाटी हा महमहागे रे
गरजत घुमड़त, ये असाढ़ आगे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ रक्सेल के बादर अऊ बदरी करियागे, पांत पांत बगुला मन सुघ्घर उड़ियागे। कोयली मन खोलका म चुप्पे तिरियागे, रूख-रई जंगल के आसा बंधागे।। भडरी कस मेचका मन, टरटराये रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे ॥ थारी सही खेत हे, पटागे खंचका-डबरा, रात भर जाग बुधु, फेंकिस खातू कचरा। कांदा बूटा कोड़ डारिन, नइये गोंटा खपरा, मनसा हा खेत रेंगिस, धरके धंउरा कबरा॥ कुसुवा-टिकला के घांटी, घनघनागे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ गुरमटिया सुरमटिया माकड़ो अऊ…
Read Moreपांच चार डरिया
१. अनचिन्हार ल अपन झन बना, अपन ल तैं तमासा झन बना। अपन हर तो अपने होथे जी, अपन ल कभु दिल ले झन भगा।। २. ढ़ोगी मन बहकावत आय हे, बिस्वास ल जलावत आय हे। दागत हे जिनगी के भाग ला- गुरु-चेला ला बढ़ावत आय हे।। ३ जिनगी ह एक कीमती खजाना ये, खरचा करे के पहिली कमाना हे। जेन सांनति ल खोजत हच बाहिर- मन के भीतर वोला सजाना हे।। ४. बहत नदी खोजथे -पार के ठांव, घाम खोजथे-ठंडा-ठंडा छांव। सुख.दुख ल जेन बने समझथे- वो रेंगइया के…
Read Moreबरसा के दिन
टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे। घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे। आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे। बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे । घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे। बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे । घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे। घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना…
Read Moreबादर के कन्डीसन
छत म मेहा बइठे रेहेव, तभेच दिमाक मोर ठनकिस। तुरतेच दिमाक ह मोर तीर, एकठन सवाल ल पटकिस।। कि बादर ह बरसे निहि, काबर ये हा ठड़े हवय। कोनो सराप दे दे हवय, धून सिकला म जड़े हवय।। कब गिरहि पानी कहि के, खेत म किसान खड़े हवय। एति-ओति निहि ओखर आँखि, बादर म गड़े हवय।। किसान मन ह बस ऐखरेच बर तरसत हवय। कि काबर ये साल बादर नी बरसत हवय।। ए साल किसान मन पानी ल सोरियावत हवय। इहिच ल सोरिया के ऊखर मुँहू सुपसुपावत हवय।। तरिया, नरवा,…
Read Moreदाई के होगे हलाकानी
दाई के होगे हलाकानी रदरद रदरद गिरत हे पानी, दाई के होगे हे हलाकानी। घेरी बेरी देखे उतर के अँगना में, माड़ी भर बोहात हे गली में पानी। लकड़ी ह फिलगे छेना ह फिलगे, चूलहा में तको ओरवाती ह चुहगे। रांधव रंधना कईसे बड़ परशानी, दाई खिसयाय का बताव कहानी। झनन झनन झींगुरें चिल्लाये, टरर टरर मेचका नरियाये। सरफर सरफर मछरी चढ़त जाये, बिला ले केकरा झाकय फेर खुसर जाय। रदरद रदरद गिरत हे पानी, बरत नईये आगी बताव का कहानी। दाई के होवत हे हलाकानी, माड़ी भर बोहात हे…
Read Moreपतंजलि के योग दर्शन, बाल्मिकी मूल रामायण, ईशावास्योपनिषद : अनुवाद
छत्तीसगढी कवित्त मं मुनि पतंजलि के योग दर्शन अउ समझईस बाल्मिकी मूल रामायण रचयिता डॉ हर्षवर्धन तिवारी पूर्व कुलपति प्रकाशक श्री राम-सत्य लोकहित ट्रस्ट ज्ञान परिसर पो.आ. रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर ( छ.ग.), मो. 09977304050 अनुक्रमणिका भाग-एक छत्तीसगढी कवित्त मं मुनि पतंजलि के योग दर्शन अउ समझईस 7-84 भाग-दो बाल्मिकी मूल रामायण 85-104 भाग-तीन ईशावास्योपनिषद 105-110 त्याग का अध्यात्म । जगत गुरू स्वामी विवेकानन्द का आध्यात्मिक खोज तथा मानवता और विश्व धर्म 115–126 परिशिष्ट श्री राम सत्य लोकहित ट्रस्ट की कार्य शृंखला 1996-2014 पतंजलि के योगसूत्र ह आध्यात्म साधना के मंत्र…
Read Moreमोर गाँव के बिहाव
नेवता हे आव चले आव मोर गाँव के होवथे बिहाव। घूम घूम के बादर ह गुदुम बजाथे मेचका भिंदोल मिल दफड़ा बजाथे रूख राई हरमुनिया कस सरसराथे झिंगुरा मन मोहरी ल सुर म मिलाथे टिटही मंगावथे टीमकी ल लाव।।1।। असढ़िया हीरो होण्डा स्प्लेण्डर म चढ़थे मटमटहा ढोड़िहा अबड़ डांस करथे भरमाहा पीटपीटी बाई के पाछू घुमथे घुरघुरहा मुढ़ेरी बिला ले गुनथे चोरहा सरदंगिया डोमी खोजै दांव।।2।। बाम्हन चिरई मन बने हे सुहासीन अंगना परछी भर चोरबीर चोरबीर नाचीन कौंआ चुलमाटी दंतेला बलाथे झुरमुट ले बनकुकरी भड़ौनी गाथे झूमै कुकरी कुकरा…
Read More