चारो मुड़ा हाहाकर मचावत, नाहक गे तपत गरमी, अउ असाढ़ आगे। किसान, मजदूर, बैपारी, नेता,मंतरी,अधिकारी,करमचारी… सबके नजर टिके हे बादर म। छाए हे जाम जस करिया-करिया, भयंकर घनघोर बादर, अउ वोही बादर म, नानक पोल ले जगहा बनावत, जामत बीजा जुगुत झाँकत हे, समरिद्धी। केजवा राम साहू ”तेजनाथ” बरदुली, कबीरधाम (छ. ग.)
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पं. खेमेस्वर पुरी गोस्वामी के दस ठन कविता
1. चुनाव के बेरा अऊ नेता जइसे–जइसे चुनाव लकठियावत हे फिजा के आलम बदलत जावत हे मिडिया वाले घलो कवरेज देखावत हे ऐखर मतलब मोरो समझ में आवत हे कल तक जो नेता पुछत नई रिहिस साथ म प्रचार करवाये बय वो आज गरीब किसान ल घलो अपन माई- बाप बतावत हे जइसे–जइसे चुनाव लकठियावत हे फिजा के आलम बदलत जावत हे। कल तक जेन नेता दबंगई ले बात-बात म उछालय लोगन के इज्जत बाजार म वो आज अपन इज्जत बचाय के सेति आँसू के गंगा बोहावत हे। अऊ ते…
Read Moreछत्तीसगढ़ी व्यंग्य कविता
1 मोर तीर मोर स्कूल के लइका मन पूछिस गुरुजी पहले के बाबा अउ अब के बाबा म काय काय अंतर हे। मय कहेव बेटा “पहिली के बाबा मन सत्याचारी होवय, निराहारी रहय ब्रह्मचारी और चमत्कारी होवय। और अब के बाबा मन मिथ्याचारी, मेवाहारी, शिष्याधारी आश्रमधारी होथे पहिली कबीरदास, रैदास तुलसीदास होवय अब रामपाल आशा राम, रामरहीम असन बलात्कारी होथे। । 2 मंत्री जी ह पेड़ लगाइस बिहनिया बोकरा वोला खा लिस मंझनिया रात म बकरा ह बन गे मंत्री जी भोजन अइसना करिस मंत्री जी ह परियावरण सरंच्छन 3…
Read Moreनशा : कविता
नशा – नाश के जड़ होथे एला तेहा जान। पइसा – इज्जत दूनो होथे जगा – जगा अपमान।। जेहा पीथे रोज दारू दरूहा ओहा कहाथे। लोग लइका के चेत नइ करे अब्बड़ गारी खाथे।। थारी, लोटा, गहना, सुता सबो बेचा जाथे। भूखन मरथे सबो परानी तब होश में आथे।। छोड़ दे अब तो दारू – गांजा जीवन अपन सुधार। भक्ति भाव में मन लगाले कर जीवन उद्धार।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com
Read Moreखेती मोर जिंनगी
नांगर धर के चले नंगरिहा, बइला गावय गाना। ढोढिया,पीटपिटी नाचय कुदय, मेचका छेड़य ताना। रहि-रहि के मारे हे गरमी ह, तन-मन मोरो जुड़ा जाही। अब तो अइसे बरस रे बादर, भूइयां के पियास बुझा जाही। । धान बोवागे बीजहा छीतागे, कतका करिहंव तोर अगोरा ल। उन्ना होगे आ के भर दे, मोर धान के कटोरा ल। गांव गली हो जाही उज्जर, धरती घलो हरिया जाही। अब तो अइसे बरस रे बादर, भूइयां के पियास बुझा जाही। । तहुं तो थोरकुन तरस खा, पथरागे मोर जांगर ह। अब तो आ के…
Read Moreधरम बर तुकबंदी
आड़ लेके धरम के, सत्ता सुख के छांव अस्त्र धरे कोनो हाथ म, कोनो घुंघरू बांधे पांव छुरी छुपी हे हाथ मं, मुख म बसे हे राम कंहूं हजरत के नाम ले, करथें कत्लेआम भोला बचपन विश्व म, भाला धरे हे हाथ भरे जवानी आज इंखर, छोड़त हवय रे साथ कराहत हे इंसानियत, चिल्लावत चारो डहर धरम हमार मौन हे, सत्ता के नईहे ठउर कोई कहे अल्लाह बड़े, कोई कहे श्रीराम कोई कहे ईसा सही, कोई कहे सतनाम कहूं धरम के नाम म, चलत हवे बंदूक कहूं धरम के नाम…
Read Moreअब्बड़ सुग्घर मोर गांव
जिहाँ पड़की परेवना, सुवा अउ मैना, बढ़ नीक लगे, छत्तीसगढ़ी बोली बैना, कोयली ह तान छेड़े अमरइया के छांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव जिहाँ नांगर, बईला संग नंगरिहा, गवाय करमा ददरिया, आमा अमली के छईहा, चटनी संग बासी सुहाथे बढ़िया, पैरी के रुनझुन संवरेगी के पांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव डोकरी दाई के कहानी, नरवा नदिया के पानी, अब्बड़ सुग्घर इहां के जिनगानी, ठउर ठउर मिलही मितान के मितानी, कतेक ल मैंहा बतांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव। – धर्मेन्द्र डहरवाल “मितान” सोहागपुर जिला बेमेतरा
Read Moreपरकीति के पयलगी पखार लन
आवव, परकीति के पयलगी पखार लन। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन। परकीति के पयलगी पखार लन।। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।। रुख-राई फूल-फल देथे, सुख-सांति सकल सहेजे। सरी संसार सवारथ के, परमारथ असल देथे। । धरती के दुलरवा ला दुलार लन। जीयत जागत जतन जोहार लन।। परकीति के पयलगी पखार लन।। 1 रुख-राई संग संगवारी, जग बर बङ उपकारी। अन-जल के भंडार भरै, बसंदर के बने अटारी। । मत कभु टँगिया, आरी, कटार बन। घर कुरिया ल कखरो उजार झन।। धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।। 2 रुख-राई…
Read Moreबरस जा बादर, किसानी के दिन अउ योग करो
बरस जा बादर बरस जा बादर, गिर जा पानी, देखत हावन। तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन। आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे। गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे। सुक्खा हावय, खेत खार हा, कइसे बोवन। बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन। झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन। सबो किसान के, सुसी बुता दे, पाँव परत हन। किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब, नाँगर धरे किसान। खातू कचरा डारत हावय, मिल के दूनों मितान। गाड़ा कोप्पर टूटहा परे, वोला अब सिरजावे। खूंटा पटनी…
Read Moreदेखे हँव
बद ले बदतर हाल देखे हँव। काट के करत देखभाल देखे हँव। शेर भालू हाथी डरके भागे बन ले, गदहा ल ओढ़े बघवा खाल देखे हँव। काखर जिया म जघा हे पर बर बता, अपन मन ल फेकत जाल देखे हँव। जीयत जीव जंतु जरगे मरगे सरगे, बूत बैनर टुटे फुटे म बवाल देखे हँव। सेवा सत्कार करे म मरे सब सरम, चाटुकारिता म कदम ताल देखे हँव। काखर उप्पर करके भरोसा चलँव, चारो मुड़ा म पइधे दलाल देखे हँव। भाजी पाला कस होगे कुकरी मछरी, मनखे घलो ल होवत…
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