कविता : अब भइगे !

अब भइगे बंदुक ल छोड दव बस्तर के माटी ल झंन रंगव महतारी के कोरा सुना होगे आॅखी ले आंसु बोहवत हे छोटे बहिनी राखी ल थारी म सजाये हे नान नान लईका मन रस्दा देखत हें नावा बोहासिन के मांग ह सुना होगे पडोसी के बबा गुनत हे अपन नाती देख रोअत हे तुमन ल लाज निलागे मुरख हव निचट कोनो अपन भाई ल छुप के मारथे का काबर उदिम मचाये हव बस्तर के माटी ल काबर बदनामी म डारे हव अब भइगे बंदुक ल छोड दव बस्तर के…

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मया के होरी

आवव संगी खेलबो सुग्हर होली, एके जगा जुरिया के करबो हँसी ठिठोली। कोनो ल लगाबो लाली कोनो ल पीला, पिरित के रंग होथे गहिर नीला। एसो के होरी म जुड़ा ले संगी, अपनेच हिरदे के पीरा ल। न ककरो घर बिरान रहय, न कोनो लईका अनाथ होवय। मया के होली पिरित के होली, इही हमर पहिचान रहय। मनखे मनखे मिलके गुलाब बनव , कोनो कतको पियय अईसने शराब बनव। ककरो बर पाँव बनन, त ककरो बर छाँव। फेक दे अध्ररा के आगी ल, जेन सुलगा के रखे हे अतेकन नाव।…

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होली आवत हे

आगे बसंत संगी,आमा मऊरावत हे बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे । कुहू कुहू कोयली ह,बगीचा में कुहकत हे। फूले हे सुघ्घर फूल, भंवरा रस चुहकत हे। आनी बानी के फूल मन,अब्बड़ ममहावत हे। बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे। लइका मन जुर मिल के, छेना लकड़ी लावत हे। अंडा के डांग ल,होली में गड़ियावत हे। नाचत हे मगन होके, फाग गीत गावत हे। बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे। डोरी ल लमाके सबो, रसता ल छेंकत हे। कोन आवत जावत तेला, सपट के देखत हे। भुलक…

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सुघ्घर लागथे मड़ई

ओरी ओर सजथे , बजार भर दुकान , टिकली फीता फुंदरी , रंग रंग के समान । भीड़ भाड़ लेनदेन , करे लइका अऊ सियान , जोड़ी जांवर , चेलिक मोटियारी मितान । गुलगुल भजिया , मुरकू , बम्बई मिठई , खावत गंठियावत , अंचरा म खई । ललचा देथे मनला , चुनचुनावत कड़हई , उम्हिया जथे मनखे , देखे बर मड़ई ॥ धोवा चाऊंर नरियर , दूबी सुपारी , चड़हा के मनावथे , अपन माटी महतारी । दफड़ा किड़किड़ी अऊ घुमरत निसान , मनजीरा सुर मिलाथे , मोहरी संग…

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कविता : मन के मोर अंगना म

सखी रे ! बसंत आगे मन के मोर अंगना म कोयल भुलागे अपन बोली बर-पीपर के पान बुडगागे अबीर धरे धरे हाथ ल गंवागे पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे कब आही मोर मयारू सपना मोर अबिरथा होगे गुरतुर गोठ अब सुहावे नही पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे दरपन मोला भावे नही कंकन के अवाज काजर अउ fबंदिया सुहावे नही सखी रे ! बसंत आगे जिनगी मोर अबिरथा होगे पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे लक्ष्मी नारायण लहरे साहिल युवा साहित्यकार पत्रकार कोसीर सारंगढ

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बेटी ल झन मारव : विजेंद्र वर्मा अनजान

बेटी हमर जान ये अऊ बेटी हमर शान, सीखव ओकर से सीख अऊ करव ओकर मान, बेटी ल काबर कोख में मारथव रे शैतान I किलकारी ल गुंजन दव अऊ भरन दव उड़ान, धरती म अवतरण दव करव तुमन गुमान, बेटी ल काबर कोख में मारथव रे शैतान I बेटी पढ़ावव,बेटी बढावव,अऊ बढावव ओकर गियान, पांव में बेड़ी बांधके मत करव ओकर अपमान बेटी ल काबर कोख में मारथव रे शैतान I सपना मा जईसे ओकर पाख लगे करव अईसन काम, ओला सहेजव,संवारव संगी तभे होही कलियान, बेटी ल काबर…

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पद्मश्री डॉ॰ मुकुटधर पाण्डेय के कविता

प्रशस्ति सरगूजा के रामगिरी हे मस्तक मुकुट सँवारै, महानदी ह निर्मल जल मा जेकर चरन पखारै। राजिम औ सिवरीनारायण छेत्र जहां छबि पावै, ओ छत्तिसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै। है हयवंसी राजा मन के रतनपूर रजधानी, गाइस कवि गेपाल राम परताप सुअमरित बानी। जहाँ वीर गोपालराय काकरो करै नइ संका, जेकर नाम के जग जाहिर डिल्ली मा बाजिस डंका। मंदिर देउहर ठठर ठउठर आजा ले खड़े निसानी, कारीगरी गजब के जेमा मूरती आनी बानी। ए पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ सिवाला, दान धरम अठ बल…

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कविता : कहॉं लुकाये मोर मईया

कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ कोने गांव – नगर डगर में मईया, कोने शहर में मईया जस ल तोर मन म गुनगुनाथौं हिरदे म सुमिरन करथौं कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ रायगढ बुढी माई गयेंव चन्र्यपुर चन्र्रहासनी ओ सारंगढ समलाई गयेंव कोसीर कुशलाई ओ अडभार के अष्टभुजी गयेंव रतनपुर महमाई ओ तोला खोज डारेंव ओ कहॉं लुकाये मोर मईया कोने गांव – नगर डगर में मईया, कोने शहर में मईया तोर चरन के धुर्रा – माटी माथ म लगायें मन मोर तरगे जिनगी मोर…

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लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल’ के कविता

माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान ए कविता ले मिलते जुलत एक कविता सीजी स्‍वर म प्रकाशित हे फेर ये कविता ह ओ कविता ले अलग हे ते खातिर से ये कविता ल कवि के गिलौली के संग छापे जात हे – संपादक माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा खेत – खलिहान के मितान जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान नागर बैला हे तोर संग संगवारी हाँथ म तुतारी मुड़ म पागा खान्द म नागर फभे हे तोला सुग्घर हावे तोर…

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बसंत के बहार

सुघ्घर ममहावत हे आमा के मऊर जेमे बोले कोयलिया कुहूर कुहूर । गावत हे कोयली अऊ नाचत हे मोर, सुघ्घर बगीचा के फूल देखके ओरे ओर। झूम झूम के गावत हे नोनी मन गाना, गाना के राग में टूरा ल देवत ताना । बच्छर भर होगे हे देखे नइहों तोला, कहां आथस जाथस बतावस नहीं मोला । कुहू कुहू बोले कोयलिया ह राग में, बैठे हों पिया आही कहिके आस में । बाजत हे नंगाड़ा अऊ गावत हे फाग, आज काकरो मन ह नइहे उदास । बसंती के रंग में…

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