बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। तात तात आगी असन हवा बोहावत हे कोयली मइना सुआ परेवा नइ गुनगुनावत हे छानही खपरा भिथिया भूंइया जमो गुंगंवावत हे कुकरी बोकरी गरवा बइला बछरू नरियावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। गली खोल गांव सहर घर सिनिवावत हे नल नहर नदिया समुंदर तरिया सुखावत हे बिहनिया मझनिया रथिया ले लइका चिल्लावत हे कूलर पंखा एसी फिरिज सबला भावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। सुरूज देव अपन ताकत ल सबला बतावत हे घर के बाहिर भीतरी म…
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कविता : छत्तीसगढ़ तोर नाव म
भटकत लहकत परदेसिया मन, थिराय हावंय तोर छांव म। मया पिरीत बंधाय हावंय, छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥ नजर भर दिखथे, सब्बो डहर, हरियर हरियर, तोर कोरा। जवान अऊ किसान बेटा ला – बढाय बर, करथस अगोरा॥ ऋंगी, अंगिरा, मुचकुंद रिसी के – जप तप के तैं भुंइया। तैं तो मया के समुंदर कहिथें तोला, धान – कटोरा॥ उघरा नंगरा खेले कूदे – राम किरिस्न तोर गांव म। मया पिरीत बंधाय हावंय छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥ अरपा –पैरी, खारून, सोढू सुखा, जोंक, महानदी बोहाथे। तोर छाती म, दूध के धार…
Read Moreकविता – सब चीज नंदावत हे
चींव चींव करके छानही में चिरइया गाना गावाथे | आनी बानी के मशीन आय ले सब चीज नंदावत हे || धनकुट्टी मिल के आय ले ढेंकी ह नंदागे घरर घरर जांता चले अब कोन्टा में फेंकागे गली गली में बोर होगे तरिया नदिया अटागे | घर घर में नल आगे कुंवा ह नंदागे | पेड़ ल कटइया सबो हे कोनो नइ लगावत हे आनी बानी के मशीन आय ले सब चीज नंदावत हे || टेकटर के आय ले कोनो नांगर नइ जोतत हे गाय बइला ल पोसेल छोड़के कुकुर ल…
Read Moreकविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन
जुर मिल के काम करके हम नवा रसता बनाबोन | नियाव धरम ल मानके संगी समाज ल आघू बढ़ाबोन || नइ होवन देन हमन अपन रिति रिवाज के अपमान समय के साथ चलके संगी बढ़ाबोन एकर मान | सबके साथ नियाव करबो अन्याय होवन नइ देवन राजा रंक सब एक समान हे कोनो के जान नइ लेवन | सुख दुख जम्मो में सबके काम हमन आबोन जेकर घर काम परही ओकर घर हमन जाबोन | इही समाज में रहना हमला इही समाज में जीना हे सब ल अपन समझ के…
Read Moreकविता: बराती
गांव गांव में बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा | सूट बूट में सजे हे आज दूल्हा राजा | मन ह पुलकत हाबे जाबोन बरात | अब्बड़ मजा आही खाबोन लड्डू अऊ भात | बरतिया के रहिथे टेस अड़बड़ भारी | पीये हे दारु अऊ देवत हे गारी | कूद कूद के बजनिया मन बाजा बजावत हे | ओले ओले के धुन मे टूरा मन नाचत हे | घाम के मारे सब बेंदरा कस ललियावत हे | एती वोती देख के आंखी मटकावत हे | पहिने हे चशमा अऊ बांधे हे…
Read Moreकबिता: वाह रे मोर गाँधी बबा के नोट
वाह रे मोर गाँधी बबा के नोट, जम्मो भारत मा तोरेच गोठ। तोर नोट के बीना कुछ बुता नई होवे, जम्मो भारत मा तोरेच शोर उड़े। 5,10,20,50,100,500,1000 के नोट मा फोटो चिपके, कुछु समान ले नोट मा तोर फोटो देख समान देवे। वाह रे मुण्डा बबा तोर नोट के कमाल, तोर नोट के खातिर होवत हे गोलमाल। तोर फोटो छपे नोट रखे ले मान,सम्मान ईज्जत बड़े, तोर नोट ला देखा के बड़े बड़े काम करा ले। बबा तोर नोट बड़ कमाल के हे, तोर फोटो चिपके नोट ला देमा सबो…
Read Moreकविता: फूट
वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट बजार में जात्ते साठ आदमी मन लेथे सबला लूट | मन भर खाले तेंहा फूट खा के झन बोलबे झूठ फोकट में खाना हे त आजा उतार के अपन दूनों बूट वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट | लट लट ले फरे हे एसो फूट राखत रहिथे समारु ह पी के दू घूंट चोरी करथे तेला तो देथे गारी छूट मिरचा अऊ लिमऊ ल बांधे हों मारे झन कोनो मूठ जतका खाना हे खाले तेंहा फूट…
Read Moreकबिता : घाम जनावत हे
बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। तात तात आगी असन हवा बोहावत हे कोयली मइना सुआ परेवा नइ गुनगुनावत हे छानही खपरा भिथिया भूंइया जमो गुंगुवावत हे कुकरी बोकरी गरवा बइला बछरू नरियावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। गली खोल गांव सहर घर सिनिवावत हे नल नहर नदिया समुंदर तरिया सुखावत हे बिहनिया मझनिया रथिया ले लइका चिल्लावत हे कूलर पंखा एसी फिरिज सबला भावत हे बितगे जाड़ आगे गरमी घाम जनावत हे। सुरूज देव अपन ताकत ल सबला बतावत हे घर के बाहिर भीतरी म…
Read Moreकबिता: पइधे गाय कछारे जाय
भेजेन करके, गजब भरोसा । पतरी परही, तीन परोसा । खरतरिहा जब कुरसी पाइन, जनता ल ठेंगवा चंटवाइन । हाना नोहे, सिरतोन आय, पइधे गाय, कछारे जाय ॥ ऊप्पर ले, बड़ दिखथे सिधवा, अंतस ले घघोले बघवा । निचट निझमहा, बेरा पाके, मुंहूं पोंछथें, चुकता खा के । तइहा ले टकरहा आय, पइधे गाय कछारे जाय ॥ गर म टेम्पा, घंटी बांधव, चेतलग रहि के बखरी राखव । रूंधना टोरिस हरहा गरूवा, घर के घला, बना दिस हरूवा । हरही संग, कपिला बउराय । हाना नोहे, सिरतोन आय, पइधे गाय,…
Read Moreसुनिल शर्मा “नील” के दू कबिता : कइसे कटही जेठ के गरमी अउ हर घड़ी होत हे दामिनी,अरुणा हा शिकार
कइसे कटही जेठ के गरमी लकलक-लकलक सुरूज बरत हे उगलत हवय अंगरा बड़ेेफजर ले घाम उवत हे जरत हवय बड़ भोंभरा पानी बर हहाकार मचे हे जम्मो जीव परानी म कईसे कटही जेठ के गरमी दुनिया हे परशानी म तरिया-डबरी म पानी नइहे नदिया घलो अटागेहे पारा के पारा चढ़गेहे ,रुख-राई मन अइलागेहे मनखे घरघुसरा होगेहे अपन कुरिया- छानी म नई देखे हे कभु कोनो अइसन गरमी जिनगानी म पनही घलो चट-चटजरथे,कूलर-पंखा फेल हवय देह उसने असन लागथे कुदरत तोर का खेल हवय पछीना पानी असन ओगरथे आगी के झलकानी…
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