1. झन ले ये गॉंव के नाव जेखर गुन ल हमन गावन, जेखर महिमा हमन सुनावन, वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा, जेला देख के हम इतरावन, कहत रहेन षहर ले बने गॉंव, बाबू एखर झन ले नाव, दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय, उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय, थोरकिन म झगरा होवत हें, दूसर मन बर्राय सोवत हें, अनपढ़ मन होशियार हें, साक्षर मन गॅंवार हें, लइका मन हें अतका सुग्घर, दिन भर खावंय मिक्चर, दिन के तो पढ़े ल नई जावंय, रात के देखयं पिक्चर, गॉंव बिगड़इया मनखे के,…
Read MoreCategory: कविता
कबिता : नवा साल म
सुकवि बुधराम यादव के रचना “डोकरा भइन कबीर ” (डॉ अजय पाठक के मूल कृति “बूढ़े हुए कबीर” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक ठन बड़ सुघर रचना- नवा साल म सपना तुंहर पूरा होवय, नवा साल म ! देस दुवारी म सुरुज बिकास बरसावय संझा सुख सपना के मंगल गीत सुनावय अक्षत रोली दीया अउ चंदन, लेहे थाल म! कल्प रुख म नवा पात मन सब्बर दिन उल्होवंय सकल मनोरथ फल सिरजे बर भुइंया उरबर होवय फूल फुले होवंय रुखुवा के सब डगाल म! लइकन मन के चेहरा म मुसकान ह छावय अउ सरलगहा नवा सरग के…
Read Moreकबिता : नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा बधाई
नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा बधाई पाना – डारा के फुलगी म ओकमे झुलना झूलत सीत ल गोरसी भरे दंदकत डोकरी के आनी-बानी गीत ल संगी जंवरिहा अउ अलकरहा हीत-मीत ल सुख़-दुःख म पोटारे रोवईया मया पिरीत ल … नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा बधाई जंगल के रुख-राई, बेंदरा, भालू , बिघवा ल चतुरा कोलिहा ल अउ कोटरी निमगा सिधवा ल फूल के मछेव ल, डारा के मेकरा ल पानी के मछरी अउ बिला के केकरा ल … नवा बछर के गाड़ा -गाड़ा बधाई पानी-बादर, घाम-पियास, म कमावत बनिहार ल रोजी-रोटी बर निकले…
Read Moreग़ज़ल : सुकवि बुधराम यादव
सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ कहुं फरिया जहय झन निठल्ला बइठ अइसन – माड़ी कोहनी जोर के तोर उद्दीम के करे – बंजर घलव हरिया जहय देस अऊ का राज कइठन – जात अऊ जम्मो धरम सुमत अऊ बिसवास के बिन –…
Read Moreजिनगी के बेताल – सुकवि बुधराम यादव
“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी के बेताल एक सवाल के जुवाब पाके अउ फेर करय सवाल विक्रम के वो खाँध म बइठे जिनगी के बेताल ! पूछय विक्रम भला बता तो अइसन काबर होथे ? अंधवा जुग म आँखी वाला जब देखव तब रोथें सूरुज निकलय पापी के घर दर -दर मारे फिरय पुन्न घर जाँगर टोर नीयत वाले के काबर हाल बिहाल ? राजा अपन राज धरम ले करंय नहीं अब…
Read Moreगाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )
जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख दरवाजा म लिखाये हावय पंचयती राज जिहाँ चतवारे खातिर चतुरा मन नई आवत हांवय बाज उहाँ गुरतुर भाखा सपना हो गय सब काँव -काँव नारियावत हें देखते देखत अब गाँव गियाँ सब सहर कती ओरियावत हें ! कलपत कोयली बिलपत मैना मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें ! -बुधराम यादव
Read Moreहम जम्मो हरामजादा आन… (डॉ.मुकेश कुमार के हिन्दी कविता के अनुवाद)
पुरखा मन के किरिया खा के कहत हंव के हम जम्मो झन हरामजादा आन आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुगल, फिरंगी द्रविड़, आदिवासी, गिरिजन, सुर-असुर कोन जनि काखर काखर रकत बोहावत हावय हमर नस मन म उही संघरा रकत ले संचारित होवत हावय हमर काया हॉं हमन जम्मो बेर्रा आन पंच तत्व मन ल गवाही मान के कहत हंव- के हम जम्मो हरामजादा आन! गंगा, जमुना, ब्रम्हपुत्र, कबेरी ले लेके वोल्गा, नील, दलजा, फरात अउ थेम्स तक अनगिनत नदियन के पानी हलोर मारथे हमर नारी मन म ओखरे मन ले बने…
Read Moreकविता संग्रह : रउनिया जड़काला के
रचनाकार चोवाराम वर्मा ‘बादल’ कवि परिचय नाम श्री चोवाराम वर्मा “ बादल “ पिता स्व. श्री देवfसंग वर्मा जन्मतिथि 21मई सन् 1961 जन्म स्थान ग्राम कुकराचुंदा, जिला – बलौदाबाजार,छ.ग. शिक्षा एम.ए. हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र साहित्य सृजन 1984 से निरंतर विधा काव्य,कहानी,एकांकी भाषा हिन्दी,छत्तीसगढ़ी प्रकाशित कृतियां रउनिया जड़काला के अप्रकाशित कहानी संग्रह हिन्दी अप्रकाशित एकांकी संग्रह हिन्दी अप्रकाशित काव्य संग्रह हिन्दी सम्प्रति व्याख्याता, उच्च. माध्य. विद्यालय केसदा जिला – बलौदाबाजार (छ.ग.) मो.नं. – 9926195747 कोन मेर का हे 1- गनपति गनेश 2- गुरू वंदना 3- गुनत रइथौं न 4- वाह…
Read Moreमनोज कुमार श्रीवास्तव के गियारा कविता
1. झन ले ये गॉंव के नाव जेखर गुन ल हमन गावन, जेखर महिमा हमन सुनावन, वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा, जेला देख के हम इतरावन, कहत रहेन शहर ले बने गॉंव , बाबू एखर झन ले नाव, दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय, उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय, थोरकिन म झगरा होवत हें, दूसर मन बर्राय सोवत हें, अनपढ़ मन होशियार हें, साक्षर मन गॅंवार हें, लइका मन हें अतका सुग्घर, दिन भर खावंय मिक्चर, दिन के तो पढ़े ल नई जावंय, रात के देखयं पिक्चर, गॉंव बिगड़इया मनखे…
Read Moreमेरी क्रिसमस
बुधिया बीहिनिया ले हक बकाये हे कालि रात ओकर झोपड़ा में लागथे सांता क्लाज़ आये हे साडी साँटी औ कम्बल चुरी मुंदरी औ सेंडल घर भर में कुढाय हे गेंदू कहिस बही नितो समान ल देख के झन झकझका अब ता हर रात आहि सांता कका चुनाव तिहार ले खुलगे हे क़िसमत बोट के डालत ले रही रोजेच तेरी मेरी क्रिसमस अनुभव शर्मा
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