संगी के बिहाव

दोस्ती म हमर पराण रिहिस हे, जुन्ना अब संगवारी होगे। तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे। बाबू के घर म खेले कूदे, तै दाई के करस बड़ संसो। सुन्ना होगे भाई के अंगना, जिहाँ कटिस तोर बरसों।। अपन घर ह पराया अऊ, पर के घर अपन दुवारी होगे। तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।। तोर आंखी म आँसू आतिस, त मोर छाती ह कलप जाये। जबै तैहा खुश होतै पगली, तभै मोला खुशी मिल पाये।। बिहाव होए ले‌ संगी तोर, दिल के…

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मरनी भात

मरे मा खवाये संगी मरनी भात ये नो हे संगी सही बात जियत ले खवाये नहीं जिंयईया ला मरे के बाद खवाये बरा सोहारी अउ लाडू़ भात छट्ठी मा खवा के लाडू़ भात बताये अपन खुषी के बात फेर मरनी मा खवा के लाडू़ भात का बताना चाहत हस तिहि जान ? ये नो हे संगी सही बात मरे मा खवाये संगी मरनी भात मरनी घर के मन पडे़ हे अपन दुख मा ओ मन ला खुद के खाय के नई हे सुध हा का खाहू ओकर धर के भात…

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मोरो बिहा कर दे

गाँव में सरपंच घर ओकर बड़े लईका के बिहाव में तेल हरदी चढ़त रहीस हे, सगा सोदर सब आय घर अंगना गदबदावत रिहीस फेर ओकर छोटे बाबू श्यामू ह दिमाग के थोरकिन कमजोरहा रिहीस पच्चीस साल के होगे रिहीस तभो ले नानकुन लईका मन असन जिद करत रिहीस I ओहा बिहाव के मायने का होते उहूँ नीं जानत रिहीस, तभो ले अपन बड़े भैय्या ल देखके ओकरे असन मोरो बिहा करव कईके अपन दाई ल काहत रहय I सहीच में मंद बुद्धि के मनखे ले देखबे अउ ओकर गोठ ल…

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आमा के चटनी

आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे, दू कंऊरा भात ह जादा खवाथे । काँचा काँचा आमा ल लोढहा म कुचरथे, लसुन धनिया डार के मिरचा ल बुरकथे। चटनी ल देख के लार ह चुचवाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बोरे बासी संग में चाट चाट के खाथे, बासी ल खा के हिरदय ह जुड़ाथे , खाथे जे बासी चटनी अब्बड़ मजा पाथे , आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बगीचा में फरे हे लट लट ले आमा , टूरा मन देखत हे धरों कामा कामा । छुप…

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मजदूर

जांगर टोर मेहनत करथे, माथ पसीना ओगराथे । मेहनत ले जे डरे नहीं, उही मजदूर कहाथे । बड़े बिहनिया सुत उठके, बासी धर के जाथे । दिन भर बुता काम करके, संझा बेरा घर आथे । बड़े बड़े वो महल अटारी, दूसर बर बनाथे । खुद के घर टूटे फूटे हे , झोपड़ी मा समय बिताथे । रात दिन जब एक करथे, तब रोजी वो पाथे । मेहनत ले जा डरे नहीं, उही मजदूर कहाथे । पानी बरसा घाम पियास, बारो महीना कमाथे । धरती दाई के सेवा करके, सुघ्घर…

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पुतरी पुतरा के बिहाव

पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे, आशीष दे बर आहू जी। भेजत हाँवव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।। छाये हावय मड़वा डारा, बाजा अब्बड़ बाजत हे। छोटे बड़े सबो लइका मन, कूद कूद के नाचत हे।। तँहू मन हा आके सुघ्घर, भड़ौनी गीत ल गाहू जी। भेजत हावँव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।। तेल हरदी हा चढ़त हावय, मँऊर घलो सौंपावत हे। बरा सोंहारी पपची लाड़ू, सेव बूंदी बनावत हे।। बइठे हावय पंगत में सब, माई पिल्ला सब आहू जी। भेजत हावँव नेवता सब…

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अकती बिहाव

मड़वा गड़ाबो अँगना मा, सुग्घर छाबो हरियर डारा। नेवता देबो बिहाव के, गाँव सहर आरा पारा।। सुग्घर लगन हावे अकती के, चलो चुलमाटी जाबो। शीतला दाई के अँगना ले, सुग्घर चुलमाटी लाबो।। सात तेल चघाके सुग्घर, मायन माँदी खवाबो। सुग्घर सजाबो दूल्हा राजा, बाजा सँग बराती जाबो।। कोनो नाचही बनके अप्सरा, कोनो घोड़ा नचाही। सुग्घर बजाके मोहरी बाजा, सुग्घर बराती परघाही।। पंडित करही मंत्र उच्चारण, मंगल बिहाव रचाही। सात बचन ला निभाहू कहिके, सातो वचन सुनाही।। धरम टिकावन होही सुग्घर, पियँर चउँर रंगाय। दाई टिकत हे अचहर-पचहर, ददा टिके धेनू…

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कलिंदर

बारी में फरे हाबे सुघ्घर, लाल लाल कलिन्दर। बबा ह रखवारी करत, खात हावय जी बंदर।। लाल लाल दिखत हे, अब्बड़ मीठ हाबे। बाजार मे जाबे त, बीसा के तेहा लाबे।। एक चानी खाबे त, अब्बड़ खान भाथे। नइ खावँव कहिबे त, मन हा ललचाथे।। चानी चानी खाबे त, सुघ्घर मन ह लागथे। सोनू मोनू जादा खाथे, बारी डाहर भागथे।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़) Priyadewangan1997@gmail.com

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मैगी के जमाना

जब ले आहे मैगी संगी, कुछु नइ सुहावत हे। भात बासी ला छोड़ के, मैगी ला सब खावत हे।। दू मिनट की मैगी कहिके, उही ला बनावत हे। माई पिल्ला सबो झन, मिल बाँट के खावत हे।। सब लइका ला प्यारा हावय, एकरे गुन ल गावत हे । स्कूल हो चाहे पिकनिक हो, मैगी धर के जावत हे।। लइका हो चाहे सियान, सबला मैगी सुहावत हे । कोनो कोती जावत हे, पहिली मैगी बनावत हे।। कोनो आलू प्याज डार के, त कोनो सुक्खा बनावत हे। कोनो सूप बनावत त, कोनो…

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माथा के पसीना

रुकना नही हे थमना नही हे पांव के भोमरा ल देखना नही है मन्ज़िल अगोरत हे रस्ता तोर सुरताना नही हे,घबराना नही है धीरे धीरे चल के कछुवा खरहा ल हरवाइस हे, सोवत रहिगे केछुवा बपुरा अड़बड़ पछताइस हे।। अभी मिलिस असफलता तोला हिम्मत से तै काम कर। उदम कर कमर कस के मत बैठ तैं हार कर।। तोला अगोरे उजियारी बिहिनिया मेहनत के बून्द गंवा ले, कल होही जगमग रथिया तोर जिनगी ल सँवार ले।। ठान ले छत्तीसगढ़ के मनखे मन ले कभू मत हारो जी बून्द बून्द ले…

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