अनुवाद : आखिरी पत्ता (The Last Leaf)

मूल रचना – The Last Leaf लेखक – ओ हेनरी अनुवादक – कुबेर वाशिंगटन स्‍क्‍वायर के पश्‍चिम म एक ठन नानचुक बस्‍ती हे जेकर गली मन बेढंग तरीका ले, येती ले ओती घूम-घूम के, एक दूसर ल छोटे-छोटे पट्टी म काटत निकले हे, जउन (पट्टी) मन ह ‘प्‍लेसिज’ (पारा या टोला) कहलाथे। ये जम्‍मों ‘प्‍लेसिज’ मन ह अजीब कोण वाले अउ चक्‍करदार हें। एके ठन गली ह खुद ल दू-तीन घांव ले काटे-काटे हे। एक घांव एक झन कलाकार ह अनमोल कल्‍पना करके अपन ये गली मन के खोज करे…

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कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम

सनेही महराज सब नौकरी के दिन पूरा करके गांव म जाके खेती-पाती करे लागिस। ये महाराज ले ओकर महराजिन हर चार आंगुर आघू रहिस। बिहनिया कहूं चाह पियत म राउत आ जातिस। तब अपन चाह पिआई ल छोड़के ओकर बर चाह बनाके दे लेतिस तब फेर अपन पितिस। अइसने घर भंड़वा करइय्या रउताइन के चेत राखतिस। कुछ खाय-पिये के रोटी- पीठा बनातिस तेमा समझ जावो सब कमिया पोंड़हार के बांटा रहिबे करतिस। पारा परोंस के मन कोनो अथान, कोनो मही, कोनो साग सालन मांगे बर आये रहितिन। सबला मया करके…

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भाषान्‍तर : बुलबुल अउ गुलाब (मूल रचना – आस्कर वाइल्ड. अनुवाद – कुबेर )

छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म अनुवाद के परम्‍परा ‘कामेडी आफ इरर’ के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ले चालू होए हावय तउन हा धीरे बांधे आज तक ले चलत हावय. छत्‍तीसगढ़ी म अनुवाद साहित्‍य उपर काम कमें होए हावय तेखर सेती अनुवाद रचना मन के कमी हावय. दूसर भाखा के साहित्‍य के जब हमर छत्‍तीसगढ़ भाखा म अनुवाद होही तभे हमन दूसर भाखा के साहित्‍य अउ संस्‍कृति ला बने सहिन समझ पाबोन. येखर ले दूसर भाखा के साहित्‍य के रूप रचना अउ अंतस के संदेसा ला हमन जानबोन अउ अपन भाखा के रचना उन्‍नति खातिर…

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देखावा

अकरसहा पानी गिरे लगिस। रामधन फिकर- मगन होगे। ओला समझ नई आवत रिहीस के अब का करे? जेन बइला गाड़ी म ओ बइठे रिहीस ओमा चाउर भराय रहय। ओहर फंसे ओ जघा रिहीस जिहां दुरिहा – दुरिहा ले कोन्हों गांव दिखत नई रिहीस। कोन्हों गांव के तीर म फंसे रिहीतिस त ऊंहा थिरवाव कर सकत रिहीस। छइहां देख के चाऊंर ल भींगे ले बचा सकत रिहीस पर इहां तो दुरिहा – दुरिहा ल सिरिफ खेते – खेत रिहीस। बइला मन गाड़ा ल खींचना चाहत रिहीन पर पानी के बूंद बड़े…

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मनहरन भइया

खेत के मेढ़ म पांव धरते ही मनहरण के गुस्सा सातवां आसमान म चढ़गे। खेत के धान फसल उनला बैरी जइसन लगे लगीस। खेत म जिहां – जिहां ओकर नजर दउड़िस, ओकर गुस्सा बाढ़ते गीस। ओहर बखुलागे – सब ल जला देहूं। साले मोला बिजरावत हवै। सच म कहे जाय त मनहरन ये सब्द गुस्सा के कारन कही दीस। मनहरन किसान रिहीस अउ ओकर मुख्य काम खेती – किसानी के रिहीस। खेती ओकर जीये खाये के साधन रिहीस अउ कोई अपन रोजी – रोटी बर गुस्साही ? पर मनहरन ल…

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नियाव के जीत

– बात – बात म लड़े बर तियार, अरे हमला का करना हे ? परदेशिया मंगलू के बारी ल टोरे के कोठार म कब्जा करे। गुणवंती के ताना ल सुन के सुमेर तरमरागे। किहिस – तुम्हरे मन के अइसनेच सोच – बिचार हमला जिंहा के तिंहा ठाढ़े रखे हवै। परदेश ले आथे अउ जम्मों गाँव म अपन राज चलावन लागथे। – तुम्हर एक अकेला के करय ले कुछू होना जाना नहीं। फोकट म अपन लहू ल जरावत रहिथौ। जम्मों गाँव के मुँहू सियाये हे तब तुम काबर अपन मुंहॅू ल…

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लेखकीय मन के बात

पंचतंत्र अउ हितोपदेश म ज्ञान के भण्डार भरे हे। कथा के जरिया; बिलकुल लोककथा के रूप म; विभिन्न पशु -पक्षी के अटघा (माध्यम ले) तरह-तरह के विशय आधारित ज्ञान ल व्यवहारिक ढंग ले प्रस्तुत करे गे हे; ज्ञान के ज्ञान, शिक्षा के शिक्षा , अउ मनोरंजन के मनोरंजन। एक कथा अइसन हे, – चार भाई रहंय। तीनों बड़े भाई मन गुरू के आश्रम म जा के खूब पढ़िन-लिखिन। ज्ञान-विज्ञान, धर्म-अध्यात्म, संगीत आदि सोलहों कला, इतिहास, ज्योतिष, यंत्र-तंत्र-मंत्र आदि सबके ज्ञान प्राप्त करिन। तीनों भाई मन किताबी ज्ञान म तो प्रवीण…

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भूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ

आज या वर्तमान आधुनिकता के अर्थ में अंगीकृत है। आज जो है वह ‘अतीत-कल’ का अगला चरण है और जो ‘भविष्‍य-कल’ में ‘अतीत-कल’ बन जायेगा, इसलिए आज का अस्तित्व समसामयिक संदर्भों तक सीमित है। परंपरा का अगला चरण आधुनिकता है लेकिन यही रूढ़ हो जाता है तब युग के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाता। जब हम दाहिना चरण बढ़ाते हैं तब वह आधुनिकता या विकास का सूचक है। बायाँ चरण परंपरा का प्रतीक है, लेकिन जब पुनः बायाँ चरण बढ़ाते हैं तब यह आधुनिकता को अंगीकार करती है और…

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कहा नहीं

चंपा ल आठ बजे काम म जाना हे; वोकर पहिली घर के चौंका-बर्तन करना हे, बहरइ-लिपई करना हे, नहाना-धोना हे अउ येकरो पहिली नवा बाबू के घर जा के चौंका-बरतन करना हे। अँगठा के टीप ले छिनी अँगठी के गांठ मन ल गिन के समय के हिसाब लगाइस; एक घंटा बाबू घर लगही, एक घंटा खुद के घर म लगही, घंटा भर नहाय खाय अउ तैयार होय म लगही; बाप रे! तीन घंटा, तब तो पाँच बजे मुँधेरहच् ले उठे बर पड़ही; बेर तो छै बजे उवत होही? आज पहिली…

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