कहानी : लालू अऊ कालू

लाल कुकुर ह बर पेड़ के छांव में बइठे राहे।ओतके बेरा एक ठन करिया कुकुर ह लुडुंग – लाडंग पुछी ल हलावत आवत रिहिस। ओला देख के लाल कुकुर ह आवाज दिस। ऐ कालू कहां जाथस ? आ थोकिन बइठ ले ताहन जाबे। ओकर आवाज ल सुन के कालू ह तीर में आइस अऊ कहिथे — काये यार लालू काबर बलाथस। लालू ह कहिथे – आ थोकिन बइठ ले कहिथों यार। कहां लकर – धकर जात हस। कोनो पारटी – वारटी हे का ? कालू ह कहिथे – कहां के…

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नानकिन किस्सा : प्याऊ

गाँव के गरीब किसान के लइका सुजल बी ए के परीक्षा ला प्रथम श्रेणी ले पास कर डारिस। गाँव के गुरुजी हा ओला यूपीएससी के परीक्षा देवाय के सुझाव देइस। परीक्षा के फारम भरेबर ओला बड़े शहर मा जायबर परिस। सुजल बिहनिया ले सायकिल मा सड़क तीर के गाँव आइस अउ साइकिल ला उहींचे छोड़ बस मा बइठ के शहर आ गे। फारम लेवत, भरके डाकघर मा जमा करावत ओला अड़बड़ बेरा होगे।मंझनिया के अढ़ई बजगे रहय। ओला घर घलावलहुटना रहिस।फारम भरे के सुध मा पानी तक पीये के समय…

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लघुकथा – नौकरी के आस

राजेश अऊ मनोज दूनों पक्का दोस्त रिहिसे। दूनों कोई पहिली कक्षा से बारहवीं कक्षा तक एके साथ पढ़ीस लिखीस अऊ बड़े बाढ़हीस। दूनों झन के दोस्ती ह गांव भर में परसिद्ध रिहिसे। कहुंचो भी आना जाना राहे दूनों कोई एक दूसर के बिना नइ जावय। राजेश ह गरीब राहय त कई बार मनोज ह ओकर सहायता करे। पुस्तक कापी तक ले के दे देवत राहय । बारहवीं पढ़हे के बाद राजेश ह गरीबी के कारन आगे नइ पढ़ीस अऊ अपन घर के काम बूता में हाथ बंटाय लागीस। वोहा बैंक…

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नान्हे कहानी – सुगसुगहा

राजेश बड़ सुगसुगहा आय। थोरको मौसम बदलिस कि ओखर तबियत बिगड़ जातीस। धुर्रा माटी हा ओखर जनम के बैरी रिहिस होही। राजेश हा अइसे तो बड़का कंपनी मा नउकरी करथे। तनखा घलो बनेच मिलथे। दाई ददा ले दुरिहा, कंपनी के घर मा रहिथे। फेर एकेच ठन दुख मा गुनत हवय। उमर 35 पूरगे हवय अउ बिहाव नइ होय हवय।संग संगवारी मन बिहाव करेबर काहय तब मुच ले हाँस दय। भँइसा के सींग भँइसा ला भारी अइसने ओखर दुख हा दिनोंदिन ओला भारी होवत रहय।अइसे वो भगवान के भक्ति मा कमी…

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कहानी – सुरता

इसकूल ले आके रतन गुरजी ह लकर-धकर अपन जूता मोजा ला उतारिस अउ परछी म माढे कुरसी म आंखी ल मूंदके धम्म ले बइठगे। अउ टेबुल म माढे रेडियो ल चालू कर दिस। आज इसकूल के बुता-काम ह दिमाग के संगे संग ओकर तन ल घलो थको डारे रिहिस। आंखी ल मुंदे मुंदे ओहा कुछु गुनत रिहिस वतकी बेरा रेडियो म एक ठ ददरिया के धुन चलत रहय-धनी खोल बांसरी तोला कुछु नइ तो मांगो रे! मया के बोली का हो राजा! खोल बांसरी पानी रे पीये पीयत भर के…

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लघुकथा – आटोवाला

बड़ दिन बाद अपन पेंशन मामला के सेती मोहनलाल बबा के रयपुर आना होइस। घड़ी चौक म बस ले उतरिस ताहने अपन आफिस जाय बर आटो के अगोरा म खड़े होगे। थोरकुन बाद एक ठ आटो ओकर कना आके रूकिस अउ ओला पूछिस -कहाँ जाओगे दादा!! डोकरा अपन जमाना के नौकरिहा रहय त वहू हिंदी झाडिस -तेलीबांधा मे फलाना आफिस जाना है। कितना लोगे? आटोवाला बताइस -150रु. लगेगा। बबा के दिमाग ओकर भाव ल सुनके भन्नागे। वोहा तुरते वोला पूछिस -कहां रहते हो रयपुर मे। आटोवाला ओला अपन पता ठिकाना…

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संसो

आज संझौती बेरा म बुता ले लहुट के आयेंव त हमर सिरीमति ह अनमनहा बैठे राहय।ओला अइसन दसा म देखके मे डर्रागेंव।सोचेंव आज फेर का होगे?काकरो संग बातिक बाता होगे धुन एकर मइके के कोनो बिपतवाला गोठ सुन परिस का। में ह पूछेंव-कस ओ!आज अतेक चुप काबर बैठे हस? ओहा किहिस -कुछु नीहे गा!अउ अपन बुता काम म बिलमगे।जें खायके बाद ओहा बुता काम ले रीता होइस त फेर पूछेंव-कुछु तो बात हे खिल्लू के दाई!बता न मोला! मोर गोठ ल सुनके ओकर आंखी ले आंसू निथरगे।ओहा बताइस-तें ह हमर…

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नान्‍हे कहिनी : नोनी

आज राधा अउ जानकी नल म पानी भरत खानी एक दूसर संग गोठियावत राहय। राधा ह जानकी ल पूछथे-‘हव बहिनी! सुने हंव तोर बर नवा सगा आय रिहिस किके।’ जानकी ह बताथे-“हव रे! आय तो रिहिन हे!” ‘त तोर का बिचार हे?’ “मोर का बिचार रही बहिनी! दाई-ददा जेकर अंगरी धरा दिही ओकर संग चल देहूं। आखिर उंकर मुड के बोझा तो बनगे हंव” ‘पाछू घनी धोखा खाय हस रे! सोच समझ के निरनय लेबे।’-राधा किथे। “मोर निरनय ल कब कोन सुने हे रे! पाछू समे में ह अउ पढहूं…

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नान्‍हे कहिनी : आवस्यकता

जब ले सुने रहिस,रामलाल के तन-मन म भुरी बरत रहिस। मार डरौं के मर जांव अइसे लगत रहिस। नामी आदमीं बर बदनामी घुट-घुट के मरना जस लगथे। घर पहुंचते साठ दुआरीच ले चिल्लाईस ‘‘ललिता! ये ललिता!‘‘ ललिता अपन कुरिया मं पढ़त रहिस। अंधर-झंवर अपन पुस्तक ल मंढ़ाके निकलिस। ‘‘हं पापा!‘‘ ओखर पापा के चेहरा, एक जमाना म रावन ह अपन भाई बिभिसन बर गुसियाए रहिस होही, तइसने बिकराल दिखत रहिस। दारू ओखर जीभ मं सरस्वती जस बिराजे रहिस अउ आंखी म आगी जस। कटकटावत बोलिस ‘‘मैं ये का सुनत हौं…

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नान्हे कहिनी – फुग्गा

लच्छू अपन नानकुन बेटी मधु ला धरके मड़ई देखायबर लाय हे।लच्छू के जिनगी गरीबी मा कटत हे। खायबर तो सरकार हा चाउँर दे देथय।फेर गाँव मा काम बूता हाथ मा नइ रहे ले एकक पइसा बर तरसत रहिथे। आज गाँव के मड़ई हे।एसो बहुतेच भीड़ हवय। काबर कि एसो मड़ई के दिन सरकारी छुट्टी घलो पड़गे हवय। गाँव के जतका सरकारी नौकरी करइया मन सहर मा रहिथे सबो मन परिवार संग मड़ई मानेबर आय हवय। गाँव के मड़ई मा बेटी दमाद ,समधी सजन सबो मन आय हे। माता देवाला अउ…

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