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बकठी दाई के गांव

एती बकठी दाई के मिहनत के हाथ रहीस। ओहा बिहानिया ले रतिहा सुतत तक काहीं न काही बुता करते राहय। ओकर घर के मन घलो मिहनत करे म बरोबरी ले ओखर संग देवयं। तीर- तार के गांव म इज्जत बाढ़गे, लइका मन ल बने संस्कार मिलीस।कोनो माई लोगन ला अगर कोनो बकठी कही देही तो […]

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नान्हे कहिनी – दहकत गोरसी म करा बरसगे

ये बखत कतका जाड़ परिस अउ कतका गरमी रही येला प्रकृति के नारी छुवइया मन बने बताही। रेडियो अउ टीबी वाला मन ओकरे बात ल पतिया के सरी दुनिया म बात बगराथें। टीबी म संझा के समाचार सुन के मैं मुड़ी गोड़ ले गरम ओनहा पहिरेंव अउ रातपाली काम म जाय बर निकलेंव। गर्मी होवे […]

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परोसी के परेम

डोकरी-डोकरा के एक-एक सांस नाती नतरा ल देख के भीतर बाहिर होथे। जानों मानो ऊंकर परान नाती-नतरा म अटके रहिथे।’ ‘ये दुनिया मया पिरित म बंधाय हे तभे ये जुग ह तइहा-तइहा ले चले आत हे। एक सादा सुंतरी म गूंथे रंग-बिरंग के फूल कस सरमेट्टा गुंथाय हे। मया बर जात लगे न कुजात। घर-परिवार, […]

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नान्हे कहिनी: लइकाहा बबा

नउकरी ले रिटायर होये के बाद गांव ले ये सोच के अपन बेटा कना शहर आ गे कि बांचे जिनगी बेटा कने नाती मन संग खेलत खावत कट जाही। संझा सात बछर के नाती संग सहर के एक मात्र बगीचा मा घूमे बर आ गिन। वो हा देखिन बगीचा मा जम्मो मइनखे घूमत-फिरत हावय, कोनो-कोनो […]

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छत्‍तीसगढ़ी तिहार : छेरछेरा पुन्‍नी

एक समे कोसलपति राजा कल्‍याण साय दिल्‍ली के महाराजा के राज म रहिके राज-पाठ, राजनीत अउ लड़ई के सिक्‍छा पाये बर आठ बरिस ले रहिन,ओखर बाद सरयू नदी तिर ले बाम्‍हन महराज मन के टोली ल संग लेके छत्‍तीसगढ़ के तइहा के राजधानी रतनपुर पहुंचिन। कोसल के परजा आठ बरिस म अपन राजा ला आवत सुनके अड़बड़ खुस होगे, परजा मन […]

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कहिनी : ईरखा अउ घंमड के फल

– भगवान कृष्ण मंझनिया के आराम करत राहय। घमण्ड से चूर दुरयोधन भगवान के मुड़सरिया कोती बइठ के कृष्ण के नींद खुले के इंतजार करे लगथे। ओतके बेर अर्जुन घलो मदद के नाम से पहुंचथे। ओला देख के दुरयोधन के मन में भय समा जाथे के अर्जुन तो कृष्ण के फुफेरा भाई ए अउ ओखर […]

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नान्हे कहिनी : डोकरा-डोकरी के झगरा

डोकरा-डोकरी के झगरागांव म एक ठन घर में डोकरा-डोकरी रहय। एखर मन के लोग-लइका नई रहिस। डोकरा-डोकरी अतका काम-बुता करय के जवान मनखे मन नई कर सकंय। अपन खेत-खार ल अपनेच मन बोवय अपनेच मन निंदय-कोंड़य। बुता-काम ले थोर-बहुत ठलहा होवय त छांव म थोर-बहुत संगवारी मन करा गोठ-बात करे के मन होथे। एक दिन […]

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कहिनी : हिरावन

‘हिरावन बारवीं म मेरिट म पास होईस। फेर नेमसिंग, हिरावन ल आगू नई पढ़इस। सोचिस ‘जादा पढ़े-लिखे ले मनखे अलाल हो जाथे। नउकरी त मिलना नइ हे।’ ईतवारी, हिरावन ल पढ़ाए बर नेमसिंग ल फेर किहिस। फेर नेमसिंग उहू ल नइ घेपिस उल्टा कहि दिस, ‘भंइसा के सिंग ह भंइसाच ल गरू लागथे’ गा। तोर […]

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कहिनी : लंगड़ा भिखारी के इच्छा

शहर म एक झन लंगड़ा भिखारी रहय। जम्मो मनखे मन ओला लंगड़ा भिखारी कहिके पुकारय। भिखारी ह हमेशा खुसी-खुसी के जीवन बितावय, कभू घुस्सा नई करय। भिखारी शहर के दुरिहा म एक ठन झोपड़ी म राहय। झोपड़ी ह कुड़ा-करकट के ढेर के बीच म एक ठन पेड़ के तरी रहिस हे। लंगड़ा भिखारी के झोपड़ी […]

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कहिनी : नोनी दुलौरिन

टूरी कहूं लछमी, त कहूं दुरगा देवी के रूप म जनम लेथे। डीह डोंगर, ससुरे-मईके दूनो कुल के मरियादा होथे। ये ह मोर अंगना के फूल-फुलवारी, मोर बेटी मोर हीरा ए। येला लिखाहूं-पढ़ाहूं बड़े साहेब बनाहूं, इही मोर डीह-डोंगर के दिया बरईया ए। खद्दर के छानी म, दूनो परानी, अपन जिनगी के सुख-दुख ल घाम […]