सुवा कहि देबे संदेस

समारू हर ऐ बखत अपन दु एकड़ खेत म चना बोय रिहिस. बने ऊंच -ऊंच हरियर-हरियर चना के झार म अब्बड़ रोठ-रोठ मिठ दाना चना के फरे रिहिस. अइसन चनाबूट के दाना ल देख के समारू हर अब्बड़ खुस होगे रहाय. इही पइत के चना हर अब्बड़ सुघ्घर होय हवय, बने पचास बोरी ले जादा चना होही. अइसना बिचार म अब्ड़े खुस रिहिस समारू हर. अपन घरवाली संग संझा बिहिनिया चना के खेत के रखवारी करत रहाय. फेर चना हर पाके ल धरिस त एक दिन बिहिनिया समारू अउ ओखर…

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नान्हें कहिनी : तीजा के लुगरा

सुकलू के एकेच झन बहिनी रहिस सुखिया।तीजा-पोरा आवय त रद्दा जोहत राहय कि मोर भइया ह मोला लेगे बर कब आही,फेर सुखिया के भउजी ह सुकलू ल पोरा के बाद भेजय सुखिया ल लाय बर।भउजी ह थोकिन कपटीन रहिस हे,सुखिया ल तीजा मं लुगरा देवय तेन निच्चट बिहतरा राहय,पहिरत नइ बनय तइसने ल देवय।एको साल बने लुगरा नइ देवत रहिस तभो ले सुखिया ह खुस राहय,कभू कुछु नइ काहत रहिस,खुसी-खुसी लुगरा ल पहिरय अउ बासी खावय। गरमी के दिन मं सुखिया के ननंद के बिहाव रहिस त सुखिया के भउजी…

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कमरछठ कहानी : मालगुजार के पुण्य

-वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव में एक झन मालगुजार रहय। ओहा गाँव के बाहिर एक ठन तरिया खनवाय रहय फेर वह रे तरिया कतको पानी बरसय फेर ओमे एक बूंद पानी नइ माढ़े। रद्दा रेंगईया मन पियास मरे तब तरिया के बड़े जान पार ला देख के तरिया भीतरी जाके देखे। पानी के बुंद नइ दिखय तब सब झन मालगुजार ला करम छड़हा कहिके गारी देवय। मालगुजार के जीव बिट्टागे रहय। मालगुजार इही संसो फिकर में घुरत रहय। एक दिन ओला तरिया के देवता ह सपना दिस कि तैहा तोर दुधमुँहा…

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कमरछठ कहानी : देरानी-जेठानी

वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव में एक देरानी अउ जेठानी रहय। जेठानी के बिहाव तो बहुत पहिलीच के होगे रहय फेर अभी तक ओखर कोरा सुनना रहय। अड़बड़ देखा-सुना इलाज-पानी करवाय फेर भगवान ओला चिन्हबे नइ करय। मइनखे मन ओला बांझ कहिके ताना मारे। जेठानी के जीव ताना सुनई में हलाकान रहय। सास-ससुर अउ ओखर गोसान तक ओला नइ भावय। ओहा निचट निर्दयी घला रहय काखरो लोग लइका ला नइ भाय। सब ला गारी बखाना दे। उहीच घर में जब ओखर देरानी ह बिहा के अइस तब साल भर में ओखर…

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कमरछठ कहानी – सोनबरसा बेटा

-वीरेन्द्र सरल एक गांव में एक झन गरीब माइलोगन रहय। भले गरीब रिहिस फेर आल औलाद बर बड़ा धनी रिहिस। उहींच मेरन थोड़किन दूरिहा गांव में एक झन गौटनीन रहय। ओखर आधा उमर सिरागे रहय फेर ओहा निपूत रहय। एक झन संतान के बिना ओखर जिनगी निचट अंधियार रहय। ओहा गरीबिन के किस्मत ला सुने तब मने-मन गुनय। जेखर घर खाय पिये बर धान चांउर नहीं तेखर अतेक अकन लोग लइका अउ मोर घर अतेक भरे बोजे हावे तब एक झन संतान के बिना जिनगी अंधियार, वाह भगवान तोरो लीला…

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कमरछठ कहानी – दुखिया के दुःख

-वीरेन्द्र सरल एक गाँव में दुखिया नाव के एक झन माइलोगन रहय। दुखिया बपरी जनम के दुखियारी। गरीबी में जनम धरिस, गरीब के घर बिहाव होइस अउ गरीबीच में एक लांघन एक फरहर करके जिनगी पोहावत रिहिस। उपरहा में संतान के सुख घला अभी तक नइ मिले रिहिस। जिनगी के आधा उमर सिरावत रहिस फेर आज ले ओखर कोरा सुन्ना रिहिस। कोन जनी भगवान ओला काबर नइ चिन्हत रिहिस। संतान के बिना घर-दुवार, गली-खोर सुन्ना लागे अउ जिनगी अंधियार। गाँव के लइकोरी मन ओला ठाठा कहिके ताना मारे। काय करे…

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कमरछठ कहानी – सातो बहिनी के दिन

-वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव में सात भाई अउ एक बहिनी के कुम्हार परिवार रहय। सबो भाई के दुलौरिन बहिनी के नाम रहय सातो। एक समे के बात आय जब आशाढ़ के महिना ह लगिस। पानी बरसात के दिन षुरू होईस तब कुम्हार भाई मन पोरा के चुकी-जांता, नंदिया बइला अउ गणेष भगवान के मूरती बनाय बर माटी डोहारबो कहिके गाड़ी में बइला ला फांदिन अउ गांव के बाहिर खार डहर चले लगिन। उही बेरा में नानकिन बहिनी सातो घला माटी डोहारे बर जाहूँ कहिके जिद करे लगिन। मयारूक भाई-भौजाई मन,…

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कमरछठ कहानी : बेटा के वापसी

– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव में एक झन मालगुजार रहय। ओखर जवान बेटा ह अदबकाल में मरगे रहय। मालगुजार ह अपन ओ बेटा ला अपन पूर्वज मन के बनाय तरिया जउन ह गांव के बाहिर खार में रहिस उहींचे ओला माटी दे रिहस। उहीच गांव में एक गरीब पहटिया रहय जउन ह मालगुजार घर के गाय-भंइस ला चराय। जेखर एक झन मोटीयारी बेटी रहय। जउन ह घातेच सुघ्घर रिहिस। फेर काय करे बपरी ह गरीबी के सेती उही तरिया के तीर में रोज गोबर अउ लकड़ी बिने बर जाय। एक…

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नवा बहिनी : नान्हे कहिनी

दीनू मन तीन भाई होथय। बहिनी तो भगवान हा उँखर भाग मा लिखे नइ रहिस। दीनू एसो नवमीं पढ़ही, छोटे भाई विनय सातवीं अउ बड़े भाई मनोज हा ग्यारवीं। दीनू के ददा हा बिजली विभाग के सरकारी करमचारी हवय।हर चार-पाँच बच्छर मा उँकर रहे बसे के ठिकाना बदल जाथय। दीनू अपन दूनो भाई ले अलग सुभाव के हवय। ओहा जौन गाँव मा जाथय नवा संगवारी बना डारथे।वो हा नोनी पिला मन संग जादा रहिथे। जब जब राखी तिहार आथे तब ओकर मन गरु हो जाथय। गुने लगथे एसो कोन राखी…

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छत्तीसगढी़ कहानी संग्रह : शहीद के गाँव

परंपरा की खुशबू है इन कहानियों में छत्तीसगढी-साहित्य में निरंतर अनुसंधान तथा अन्य विधाओं में सक्रिय लेखनरत डॉ.जयभारती चंद्राकर का यह प्रथम छत्तीसगढी़ कहानी संग्रह है। ‘शहीद के गाँव’ शीर्षक से संकलित इन कथाओं में छत्तीसगढ़ का यथार्थ स्वाभाविक रूप से दिखाई देता है। पहली कहानी ‘शहीद के गाँव’ एक सच्ची कहानी है, जो देश के लिए मर मिटने वाले युवा के अदम्य साहस की कथा कहती है, जिसकी शहादत पर समूचा गाँव गर्व करता है। संग्रह की तेइस कहानियों में ग्रामीण नजीवन, छत्तीसगढ़ की संस्कृति, सुख-दुख, त्याग-बलिदान, घर-किसान, अंधविश्वास के प्रति…

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