लक्ष्मण मस्तुरिया के खण्‍ड काव्‍य : सोनाखान के आगी

लिखे-पढ़े के सुख कोनो भी देस-राज के तरक्‍की के मूल म भासा. संस्कृति अउ जनम भुंई के महात्‍तम माने जाथे। एकर बिना कोनो भी किसम के विकास प्रगति बढ़ोत्तरी अकारथ होथे। छत्‍तीसगढ़ राज नई बनेरिस वो समे बीर नरायेन सिंह के ए बीरगाथा सुनके नौजवान मन के मन म भारी जोस अउ आत्म गौरव के भाव जागतरिस, कवितापाठ के बीच बीच म जय छत्‍तीसगढ़ के नारा लगावंय। छत्‍तीसगढ़ राज बने के बाद एकर महत्व बाढ़गे हे, नवा पीढी ल अपन पुरखा मन के त्‍याग बलिदान अउ जोम के जानकारी होना…

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छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास : जुराव

कामेश्‍वर पाण्‍डेय ‘कुस’ का बड़बड़ाइस, भीड़ के हल्ला-गुल्ला मं समझ मं नइ आइस। नवटपा के ओहरत सुरुज हर खिड़की मं ले गोंड़ जी के डेरी कनपटी लऽ तमतमावऽथे। भीड़ के मारे सीट मं बइठइया सवारी घलउ मन के जी हलकान हे। देंव हर ओनहा-कपड़ा के भीतर उसनाए कस लगऽथे। ऊपर ले पंखो हर गर्राटेदार तफर्रा लऽ फेंकऽथे। मनखे के मुँह बार-बार सुखावऽथे। कतको झन के दिमाग तो टन्न-टन्न करऽथे। डब्बा हर कोचकिच ले भर गै हे। सीट मं तो खूब करके रिजर्वेसन वाला मद्रासीच मन बइठे हें। छत्तीसगढिय़ा मन बर तमिल, तेलगु, कन्नड़,…

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तॅुंहर जाए ले गिंयॉं

तॅुंहर जाए ले गिंयॉं श्री कामेश्वर पांडेय जी द्वारा लिखित आधुनिक छत्तीसगढ़ की स्थिति का जीवंत चित्रण तो है ही, संघर्ष की राह तलाशते आम आदमी की अस्मिता के अन्वेषण की आधारशिला भी है। इसे छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर लिखित और ‘हीरू के कहिनी’ के बाद प्रस्तुत 21वीँ सदी का श्रेष्ठ औपन्यासिक साहित्य भी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र श्री कामेश्वर पांडे पिछले 10 वर्षोँ से लगातार श्रम और शोध के द्वारा इसे परिष्कृत—परिमार्जित करते हुए अब प्रकाशन के लिए तैयार हुए है। उपन्यास मे जहाँ छत्तीसगढ़ी…

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सरला शर्मा के उपन्‍यास : माटी के मितान

सरला शर्मा का यह छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपनी विशिष्ट शैली के कारण पठनीय है। यह उपन्यास यात्रा- संस्मरण का पुट लिए हुए सास्कृतिक-बोध के लिए आधार-सामग्री प्रदान करता है। छतीसगढ़ की सास्कृतिक चेतना का स्वर उपन्यास के पात्रों, स्थलों और उसकी भाषा में गूंजता दिखाई देता है। इस उपन्यास में शासन के स्तर की अनेक योजनाओं का प्रचार-पसार है तो दूसरी ओर गाँवों के समग्र विकास का सपना भी है। इस सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश की कुछ झलक भी इसमे प्रदर्शित है। छत्तीसगढ़ की जांज़गिरी मिठास इस उपन्यास…

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टिकेश्‍वर सिन्‍हा ‘गब्‍दीवाला’ के छत्‍तीसगढ़ी काव्‍य संग्रह : ठूठी बाहरी

भूमिका : टीकेश्वर सिन्हा के कविता संकलन “ठूठी बाहरी ” ल पढे कं वाद सोचें बर परिस आखिर ठूठी बाहरी काबर? बाहरी ह ठूठी कब होथे? जब बाहरी ह घर दूवारी के कचरा ल बाहर के सकेला करथे। ओखर वाद ओला घर गोसइन ह र्फकथे। वइसनेने ये टीकेश्‍वर के कलम ह बाहरी बनके घर द्वार, गाँव, त्तरिया, खेतखार, समाज सब ल बाहर के साफ करे हावय। … सुधा वर्मा.

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कातिक

पहला सरग:- उमा के जनम भारत के गंगाहू मा, हे हिमालय पहार। जे हे उड़ती बूड़ती, धरती के रखवार।। धरती ल बनाइन गाय, पीला बन गिरिराज। मेरू ला ग्वाला बना, पिरथू दूहिस आज।। हिमालय रतन के खान, हावय सेता बरफ। महादेव के गला मा, सोभा पाथे सरफ।। हिमालय के चोटी मा, हे रंग बिरंग चट्टान। बादर छांय सुघर लाल, परी सम्हरे पहान।। पहरी चोटी बड़ उपर, मेघ नी सके जाय। साधु पानी ले घबरा, चोटी मा चढ़ जांय।। शेर मारथे हाथी ला, परथे रकत निसान। बरफ मा लहू मिटाथे, गजमोती…

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रासेश्वरी

1- बन्दना 1- कदंब तरी नंद के नंदन, धीरे धीरे मुरली बजाय। ठीक समे आके बइठ जाय, घरी घरी तोला बलाय।। सांवरी तोर मया मा, बिहारी बियाकुल होवय। जमुना के तीर बारी मा ,घरी घरी तोला खोजय।। रेंगोइया मला देख के ,आपन हाथ ला हलाय। गोरस बेचोइया ग्वालिन मला,बनमाली पूछय। कान्हा के मन बसे हस,तोला मया करय।। ष्यामा तोर संग बिहारी,रस रास रचाय। सुमति मोर बचन ला सुन,तोर मति मा थोरकन गुन। चाहना पूरी कर दे तैंहर,पाबे गोरी तैंहर रसरास पून।। जमुना के लहरा घलो,मजा मा हल्ला मचाय। 2:- राधा…

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