"डोकरा भइन कबीर "-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति "बूढ़े हुए कबीर " का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी… Read More
जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख… Read More
वाह रे चुनाव तोर बुता जतिच नाव। जब ले तंय आए हच,होगे काँव काँव। भाई संग भाई ल तंय हा,लड़वा… Read More
चर डारिन गोल्लर मन धान के फोंक । हकाले म नइ मानय अब लाठी ठोंक ।। जॉंगर चलय नही जुवारी… Read More
काला कहि अब संत रे, आसा गे सब टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम… Read More
(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष… Read More
घर-घर ले अब सोर सुनाथे वंदे मातरम लइका-लइका अलख जगाथें वंदे मातरम... देश के पुरवाही म घुरगे वंदे मातरम सांस-सांस… Read More
नंदावत चीला फरा,अउ नंदाय जांता । झांपी चरिहा झउहा,नंदावत हे बांगा। नंदावत हे बांगा,पानी कामे भरबो। जांता बीना हमन,दार कामे… Read More