नइ आवै : देवीप्रसाद वर्मा ‘बच्चू जाँजगिरी’ के गीत

ये चंदैनी भरे रात जोडा़ नींद नइ आवै। छाती हवै कसमसात जोडा़ नींद नई आवै॥ बइठे हों सुरता के दीया बाती बारे भटकत हौं येती ओती जोगी बानाधारे आगी अस लागै बरसात जोडा़ नींद नई आवै। आँखी आँखी भूलय झमकय चमकथय तोर पैरी सुन्ना सुन्ना कुरिया लागय, अंगना होगे बइरी उम्मर होगे बज्जात जोडा़ नींद नइ आवै। – देवीप्रसाद वर्मा ”बच्चू जाँजगिरी”

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हमर गाँव अब जागिस : लखन लाल गुप्त के गीत

हमर गाँव अब जागिस संगी हमर गाँव अब जागिस। बिपत हमर सब भागिस संगी हमर गाँव अब जागिस॥ असल काम हे हमर गाँव के खेत ला सुघर कमाई जम्मो जन अब भिड़ के पैदा अन्न खूब उपजाई बाँध बंधागै कुंआ खनागै खेत के करौ सिंचाई टेक्टर-नांगर धुंकनी-पंखा घलो गाँव मां लाई उपज बढाथे खातू मिलथै कीडामार दवाई आगिस नंवा नंवा अब चलिस योजना हमर गाँव अब जागिस। अपरिध्दई ला झनिच अगोरा, जुर मिल के सब आवा आईस क्रांति ला भिड़के जम्मो गाँवे सफल बनावा ऋषि भुंइया ले खेती करके सुध्घर…

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लगथे आजेच उन आहीं : श्यामलाल चतुर्वेदी के कविता

डेरी आँखी फर कत हे लगथे आजेच जानत हौं उनकर सुभाव जानत हौ आतेच टू री ला पाहीं दू महीना कहिन गइन तौ गय चार, पाँच अधियांगे रोजहा के डहर देखाई मा आँखी मोर चेंधियागे निरदयी मयाला टोरिस रोजमारे जरय सिरावै ओमा का नफा धरे हे छोडे़ घर दुरिहा जावै मोर रिसही के रिस देख लिही जब उनला तभे पराहीं डेरी आँखी फरकत हे लगथे आजेच उन आहीं का कहौ सुहावन तोला तोरसो का बात लुकावंव एको छिन नई देखँव तब अगुन छगुन हो जावौं बिन देखे पंच पंच महिना…

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जागो उठो जवान रे : बंगाली प्रसाद ताम्रकार के गीत

बनिया साहेब – बाबू जागो, जागौ कुली किसान रे। छत्तिसगढ़ के माटी जागिस, जागौ उठो जवान रे॥ जागिस सहर भिलाई चिमनी, कोरबा कोइला माटी जागिस राजहरा के लोहा, बैलाडीला घाटी गोंदरी अऊ गंगरेल जागगै जागिस कुघरी रेता नरवा जागिस, नंदिया जागिस, जागौ जनता नेता लइका जागौ, बुढ़ुवा जागौ जागौ सबो किसान रे। छत्तीसगढ़ के माटी जागिस जागौ उठो जवान रे॥ केरल आन्ध्र बिहार उडीसा, एक पेट के भाई अपन अपन बाँटा मां बइठे, बाँट बाँट के खाई जे माटी में नाल गडे हे जेखर धूर खा नहायेन ओ माटी के…

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छत्तिसगढ़ के गंगा : हरि ठाकुर के गीत

दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार। छत्तिसगढ़ के माटी ओखरे सेती करे सिंगार।। लहर लहर लहरावै खेती, डोलावै धान कोदो राहेर तिंबरा बटुरा, मां भरथे मुस्कान हरियर हरियर जम्मो कोती दिखथे सबो कछार। दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार॥ छत्तिसगढ़ के गंगा मइया, सब जन के महतारी तोर अँचरा मां राजिऊ लोचन तीरथ अब्बड भारी तोर दया जेखर उप्पर हे निरव ओखर संसार। दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार ॥ तोर चरन मां पाप चढा़ के, पुन्न सकेले पायेन तोर भरोसा जीयेन-खायेन इतरायेन मेछरायेन…

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हे राम : नारायण लाल परमार के नवगीत

दुनिया मां नइये कखरो ठिकाना – मनखे ठाढ सुखावत हे राम, मनखे ठाढ सुखावत हे राम। झन पूछ भइया हाले हवाल मारिस ढलत्ती येसो दुकाल पथरा होगे जिहाँ पछीना धुर्रा फकत उडा़वत हे राम। का पुन्नी का फागुन तिहार आठों पहर दिखै मुंधियार धरम इमान ह देखते देखत गजट बरोबर चिरावत हे राम। आँही बाँही नइये चिन्हार जतका दिखथे सबो लचार फोकट के धमकी-चमकी देथे, पागी पटुका नंगावत हे राम। – नारायण लाल परमार

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सुरुज किरन छरियाए हे

तैंहर उचिजाबे गा, सुरुज किरन छरियाए हे। अब नइये बेरा हर, सुत के पहाये के अब नइये बेरा अंटियाये के अब नइये बेरा हर ऊँघाये सुरताये के आये हे बेरा हर कमाये के आँखी धो लेबे गा, चिरगुन मन पाँखी फरकाये हे। झन तैं बिलमबे उतारे बर नांगर ला जऊने खोंचाये हे काँड मन मां झन तैं बिलमबे धरे बर तुतारी ला जऊने धराये हे बरवंट मां तैंहर धरि लेबे गा, खुमरी ला, बादर अंधिंयारे हे। लकर लकर रेंग देबे खेत कोती तैंहर भुइया तोर रद्दा ला जोहत हे बइलन…

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किसान

नंगरिहा, नई उपजै तोर बिना धान। धरती पूंजी धरती रुंजी, धरती पूत किसान।। मिहनत ला जनमत पाये हस सबके सेवा बर आये हस तोर तपसिया तीन बतर के बरसा जूड तिपान। अब आगे हे तोर दिन बादर बरसे ला पानी चल मोरे नांगर लहू पछीना, टोरे जाँगर, बइला तोर मितान। दाई के थन मां दूध भरे हे लइका बर भगवान गढे़ हे जइसे तोला गढ़के भेजिस भुंइया बर भगवान। – बद्री विशाल यदु ‘परमानंद’

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अइसन दिन आये हे

अइसन दिन आये हे काँही झगरा नवां झन बिसाव जी। निकरत ले काम, लेवना लगाय जी। अब अइसन दिन आये हे॥ कोन ह करत हवय, तेला तुम छोड़व ना जेमा अपन काम सघे उही गनित जोडो़ गा फिकर झन करौ भइया खाव तेखर गाव जी अब अइसन दिन आये हे। दिन ला तुम रात कहौ, आमा ला अमली डोरी ला साँप कहौ रापा ला टंगली खुसामद ले आमद हे उही ला कमाव जी अब अइसन दिन आये हे। झपटो मारो काटो ये राक्षस राज हे बाढे हे बेसरमी कहाँ काम…

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जय जय हो धरती मइया

जय जय हो धरती मइया। तोरेच बल में गरजत हावन खात खेलत बहिनी भइया। जय जय हो धरती मइया ॥ बजुर बरोबर बडे़ माथ में छाती अडा़ हिमालय गंगा जमुना निरमल धारा, सबके जीव जुडावय विन्ध्य सतपुडा बने करधनी कनिहा गजब सुहावय महानदी कृष्णा कावेरी गोदावरी मन भावय ब्रम्हपुत्र नर्मदा ताप्ती ठंव ठंव नांव जगावय चारों खूंट मां चार धाम के घर घर दरस देवइया। उत्ती बुड़ती घाट बिराजे उटकमंड अऊ आबू अरब अऊर बंगाल समुंदर खडे हे आजू बाजू सतलज झेलम अऊ चिनाब के सिंधु मनोहर राजू बाग बगइचा,…

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