तोर धरती तोर माटी रे भैय्या तोर धरती तोर माटी लड़ई झगड़ा के काहे काम जे ठन बेटा ते ठन नाम हिंदू भाई ल करौ जैराम मुस्लिम भाई ल करौ सलाम धरती बर वो सबे बरोबर का हाथी का चांटी रे भैय्या झम-झम बरसे सावन के बादर घम-घम चले बियासी के नागर बेरा टिहिरीयावत हे मुड़ी के ऊपर खाले संगी तंय दू कौरा आगर झुमर-झुमर के बादर बरसही चुचवाही गली मोहाटी रे भइया फूले तोरई के सुंदर फुंदरा जिनगी बचाये रे टूटहा कुंदरा हमन अपन घर में जी संगी देखो…
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पितर पाख म साहित्यिक पुरखा के सुरता – विद्या भूषण मिश्र
बगुला के पांख कस पुन्नी के रात, गोरस मं भुइंया हर हावय नहात ल बुढवा के चुंदी कस कांसी के फूल, आंखी दुधरू दुधरु खोखमा के फूल। लेवना कस सुग्घर अंजोरी सुहाय, नदिया के उज्जर देंहे गुरगुराय। गोकुल के गोरी गोपी अइसन् रात, तारा के सुग्घर फूले हे फिलवारी। रतिहा के हाँथ मं चांदी के थारी, पंडरा पंडरा लागै खेत अउ खार नवा लागय जइसे गोरस के धार, घेरी बेरी दिया झांकै लजात आमा के छईहाँ संग उज्जर उज्जर अंजोरी, दुःख सुख जइसे बने जांवर जोरी। कई दिन के गर्मी…
Read Moreपितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : नरसिंह दास
हाट्स एप ग्रुप साहित्यकार में श्री अरूण कुमार निगम भईया ह पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता कड़ी म हमर पुरखा साहित्यकार मन के रचना प्रस्तुत करे रहिन हे जेला गुरतुर गोठ के पाठक मन बर सादर प्रस्तुत करत हन – सवैया साँप के कुंडल कंकण साँप के, साँप जनेऊ रहे लिपटाई। साँप के हार है साँप लपेटे, है साँप के पाग जटा शिर छाई ।। नरसिंह दास देखो सखि रे, बर बाउर है बैला चढ़ि आई । कोऊ सखी कहै हे छी: , कुछ ढंग नहीं हावे छी:…
Read Moreसाहित्यिक पुरखा के सुरता : कुञ्ज बिहारी चौबे
चल ओ उठ ओ चरिहा धरके, हम गोबर बीने ला जातेन ओ। बिन लेतेन गोबर पातेन तौ, अउ साँझ के घर चलि आतेन ओ।। तैं हर बोलत काबर नहिं ओ बहिनी, तैं हर काबर आज रिसाये हवस। चुटकी -मुँदरी सब फेंक दिहे, अंगना म परे खिसियाये हवस ।। xxx xxx xxx चल मोरे भैया बियासी के नागर चल मोरे भैया बियासी के नागर, अरे! कैसे मजा के बियासी के नागर! बिजली लफालफ चमकत है, इंदर देवता ह तमकत हे। जुड़ जुड़ बोहत हवे पुरवाही, दीखत हे लच्छन गजब पानी आही।…
Read Moreपितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय
हाट्स एप ग्रुप साहित्यकार में श्रीमती सरला शर्मा अउ अरूण निगम ह पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता कड़ी म हमर पुरखा साहित्यकार पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय के रचना प्रस्तुत करे रहिन हे जेला गुरतुर गोठ के पाठक मन बर सादर प्रस्तुत करत हन – छायावाद के जन्मदाता मुकुट धर पाण्डे ल आखर के अरघ, कालिदास के मेघदूत खण्डकाव्य के छत्तीसगढ़ी अनुवाद … कैलास परबत के कोर मं हिमगिरि ….कतका सुग्घर … “हरगिरि के अंचल मं अलका के सोभा हे कइसे , पीतम के कोर मं बइठे प्राण पियारी जइसे ।…
Read Moreपितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : शुकलाल प्रसाद पांडेय
हाट्स एप ग्रुप साहित्यकार में श्री अरूण कुमार निगम भईया ह पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता कड़ी म हमर पुरखा साहित्यकार मन के रचना प्रस्तुत करे रहिन हे जेला गुरतुर गोठ के पाठक मन बर सादर प्रस्तुत करत हन – छत्तीसगढ़ी सूक्तियाँ जेहर पर के प्रान बचाथे। तेकर ले इसवर सुख पाथे।। बुद्धमंता मन सिरतो कहथें। बनिजेच मां लछिमी जी बसथें।। मनखे मनखे होथे अंतर। कोनो हीरा कोनो कंकर।। दुनोंदीन ले बिनसिन पांड़े। हलुआ मिलिस, मिलिस नइ मांड़े।। दू कौंरा जाथे जब भीतर। तभे सूझथे देंवता-पीतर।। मनखे ला…
Read Moreसाहित्यिक पुरखा के सुरता : प्यारेलाल गुप्त
झिलमिल दिया बुता देहा गोई, पुछहीं इन हाल मोर तौ, धीरे ले मुस्क देहा। औ आँखिन आँखिन म उनला, तूं मरना मोर बता देहा।। अतको म गोई नइ समझें, अउ खोद खोद के बात पुछैं। तो अँखियन म मोती भरके, तूं उनकर भेंट चढ़ा देहा।। अतको म गोई नइ समझें, अउ पिरीत के रीत ल नइ बूझें। एक सुग्घर थारी म धरके, मुरझाए फूल देखा देहा।। गोई, कतको कलकुत उन करहीं, बियाकुल हो हो पाँ परहीं। तौ काँपत काँपत हाँथ ले तूं, झिलमिल दिया बुता देहा ।। -0- घर उज्जर…
Read Moreसाहित्यिक पुरखा मन के सुरता : नारायणलाल परमार
अँखियन मोती मन के धन ला छीन पराइस टूटिस पलक के सीप उझरगे पसरा ओकर बाँचे हे दू चार कि अँखियन मोती ले लो । आस बुतागे आज दिया सपना दिखत हे सुन्ना परगे राज जीव अंगरा सेंकत हे सुख के ननपन में समान दुख पागे हावै काजर कंगलू हर करियाइस जम चौदस के रात। बारिस इरखा आगी में बेचै राख सिंगार सहज सुरहोती ले लो कि अँखियन मोती ले लो ।। – नारायणलाल परमार
Read Moreसाहित्यिक पुरखा मन के सुरता : द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र
तिरिया- (कुण्डलिया छन्द) तिरिया ऐसी ब्याहिये, लड़ै रोज दस बेर घुड़की भूल कभी दिए, देखै आँख लड़ेर देखै आँख लड़ेर, नागिन सी फुन्नावै कलह रात दिन करै, बात बोलत भन्नावै जीना करै हराम, विप्र बाबा की किरिया मरने का क्या काम, ब्याह लो ऐसी तिरिया । गैया – गैया ऐसी पालिये कि खासी हरही होय पर धन् खा घर लौटिहै, लीजै दूध निचोय लीजै दूध निचोय-मुफ्त का माल उड़ाओ पारा बस्ती शहर भरे की गाली खाओ पहुंचे काछी द्वार, करै फिर दैया मैया शहर बसो तो विप्र, पाल लो हरही…
Read Moreमोर गांव के फूल घलो गोठियाये : श्रीमती आशा ध्रुव
मोर गांव के फूल घलो गोठियाये। बड बिहनियां सूरूज नरायन मया के अंजोर बगराये। झुमे नाचे तरियां नदिया फूले कमल मुसकाये। नांगर बईला धर तुतारी मोर किसनहा जाये। मोर गांव के फूल घलो गोठियाये…… मोगरा फूले लाई बरोबर मोती कस हे चक ले सुघ्घर कुआं पार बारी महमहाये तनमन ला ये ह सितलाये। उंच नीच के डोढगा पाट ले अंतस मन ला कर ले उज्जर। मोर गांव के …….. गोंदा फूले पिवरा पिवरा पाटी मार खोपा मा खोचे। चटक चदैंनी अंगना मा बगरें खूंटधर अंगना ह लिपाये। पैरी बाजे रूनुक…
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