रमा आज बहुत खुस हावय। आज अकती हे, आज ओखर पुतरी के बिहाव हावय। रमा के संगवारी अनु घलो खुस हावय, काबर के रमा के पुतरी ओखर घर आही। दूनों संगवारी समधिन बनहीं। दू दिन पहिली ले तइयारी चलत हावय। रमा अउ अनु तेल मायन सब करिन। एक अँगना म दूनों झन बिहाव करत रहिन […]
Category: गोठ बात
बहिनी मन, ए तो तुमन जानत होहु कि लइका मन हमर देस के भविष्य ल संवारथे। लइका मन के सउख ल देख के हमन ओखर भविष्य के नकसा बना लेथन। आजकल हमन देखथन कि हमर लइकामन के मन ह पढ़ई लिखई में जादा नइ लागय। का कारन ए-एला हमन सोचे बर मजबूर हो जथन। लइका […]
रमिया केतकी के कथा – सत्यभामा आड़िल
एक रहिस रमिया। एक रहिस केतकी। दूनों एके महतारी के बेटी रिहीन। खारुन नदिया ले चार कोस दूरिहा रक्सहूं बूड़ती मं एक गांव ‘कसही’। भइगे दूनों उहीं रहत रहींन अपन महतारी संग। महतारी ह खाली हाथ रहीस। खेतखार मं बनीभूती करके अपन जिनगी चलावय। रमिया केतकी बिहाव के लइक होगे। दुनों के रूपरंग सोन जइसे […]
रोजा रखना फाका रखना नो हे, बल्कि येमा अल्लाह के अराधना, लोगन ले सद् बेवहार करना अउ गुनाह ले बचे के भाव हे। येमा अहसास हे कि गरीब मनखे मन कोन तरह ले भूख-पियास म सही के जिनगी बिताथे। ये भाव हर मनखे ल मनखे बने रहे के संदेश देथे। रोजा हर समे मन म […]
नाटक अऊ डॉ. खूबचंद बघेल
आज जरूरत हे अइसना साहित्यकार के जेन ह छत्तीसगढ़ के धार्मिक राजनैतिक अऊ सामाजिक परिवेस के दरसन अपन लेखन के माध्यम ले करा सकय। बिना ये कहे के मैं ह पहिली नाटककार आवं के कवि आंव। आज के कुछ लेखक मन ये सोच के लिखत हावंय के मैं ह कोन मेर फिट होहूं। जल्द बाजी […]
बाल साहित्य के पीरा
आजकल बाल साहित्य देखे म नई आवय। दूकान बाजार म लइका मन ल बने पुस्तक भेंट देना हे, सोच के कहूं पुस्तक मांगेस तव दूकान वाला सोच म पर जथे। कहिनी पुस्तक तो अब है नहीं। जेन हावय तेन दिल्ली प्रकासन के कुछ लोककथा सरिख पुस्तक मिलथे या फेर पंचतंत्र के कहिनी सरिख बड़े-बड़े जानवर […]
ख्मंच मा परकास, मुनरी अंगना ला बाहरत हावय अउ घरि घरि बाहिर कोति झांकत हावय, बाहिर लंग गोधन गाना गात हावय, कुछु देर पीछू मुनरी भीतरिया जाथे। , गोधनः- सोना देवें सुनार ला, वो पायल बना दीस। दिल देवें मुनरी ला, वो घायल बना दीस।। ख्मुनरी फेर अंगना मा आके बाहिर झांके बर लागथे, दूनोंझन […]
कैकेयी वरदान भरतलाल के गादी सुन दुख होथे तुंहला, मांग-मांग कहके फोकट गंधवाया मोला। रोवा झिन अब कहिस कैकयी खुबिच रिसाके, अइसन लगथे लाये, मोल बिसाके ॥1॥ तपसी मन अस भेख बनाके, बन नहीं जाही राम बिहनिया। मैं महुरा खाके मर जाहंव, ले के राम अवध तूं रइया॥ 2॥ डोंगहा संवाद डोंगा मा बइठा के […]
में नो हों महराज: नारायण लाल परमार
एक ले एक हे हुसियार ,में नो हों महराज। करे सब करिया कारोबार, मे नो हो महराज॥ कनवा ला कनवा कहइया होहीं कोन्हो दूसर, गउ के किरिया हे हवलदार, मे नो हों महराज ॥ सब के बांटा ला अपन मान के जे खावत हें, कोन्हों कुकुर होही सरकार, मे नो हों महराज॥ देस ला कतकोझन, […]
संत परंपरा के मनखे मन जन-चेतना के बिकास म अपन योगदान दे के समाज ल एक नवा दिसा देथे। समाज में अइसे कतको बिसगति समा जाथे, जोन ह समाज ल आगू नइ बढ़न दे। धीरे-धीरे समाज म एक जड़ता आ जाथे। आम मनखे मन ये जड़ता ल अपन जीवन म अपना लेथे अउ रूढ़ता के […]