छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही सुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत ही लाभ या पून्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे। कब मनाथे – अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे कि जो भी सुभ काम करबे ओकर कभू छय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे। परसुराम अवतार…
Read MoreCategory: गोठ बात
बेटी के हाथ मा तलवार करव बिचार
ओ दिन छग ले परकासित सबो अखबार मा फोटू छपे रहिस, संगे संग लिखाय रहिस -“बेटियों ने थामी तलवार” । पढ़के मोर आत्मा कलप गे। जौन बेटी ल ओकर दाई ह चूल्हा फूकेबर, बर्तन मांजे बर,घर लिपेबर, साग भात रांधेबर, पढ़लिख के अपन गोड़ मा खड़े होयबर अउ ममता, मया के संग जिनगी बिताय के गुन सीखे के सिच्छा देथय।आज समाज मा हमर बेटी के हाथ मा तलवार धरात हे।हमर बेटी मन घलो,चाहे पढ़े लिखे होय चाहे अनपढ़, परबुधनीन बनत जात हे।गुनीक मन बिचार करव।का ये बने होवत हे?कुछेक बच्छर…
Read Moreनंदावत हे रूख-राई : सियान मन के सीख
सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन बने-बने स्वादिश्ट फल के बीजा ला जतन के धरे राहय। उॅखर पेटी या संदूक ला खोले ले रिकिम-रिकिम के बीजा मिल जावत रहिस हे। जब हमन छोटे-छोटे रहेन तब हमर दाई-बबा के संदूक ले कागज के पुड़िया में रखे कोहड़ा, रखिया, तुमा, छीताफल अउ कई परकार के बीजा मिल जावत रहिस हे। देख के बड़ अचरज होवय के दाई-बबा मन बीजा ला अतेक सम्हाल के काबर धरे हावय। पूछन तब बतावय। कहय-बेटी! जब पानी…
Read Moreलेख : बंटवारा
बुधारु अऊ समारु दूनों भाई के प्रेम ह गांव भर में जग जाहिर राहे ।दूनों कोई एके संघरा खेत जाय अऊ मन भर कमा के एके संघरा घर आय । कहुंचो भी जाना राहे दूनों के दोस्ती नइ छूटत रिहिसे ।ओकर मन के परेम ल देख के गाँव वाला मन भी खुस राहे अऊ बोले के एकर मन के जोड़ी तो जींयत ले नइ छूटे । बिचारा बुधारु अऊ समारु के बाप तो नानपन में ही मर गे रिहिसे ।बाप के सुख ल तो जानबे नइ करत रिहिसे ।ओकर दाई…
Read Moreपीथमपुर के कलेसरनाथ : भोला बबा के महत्तम
हसदो नदिया के तिर म कलेसरनाथ भगवान। दरसन जउन ओखर करिहि, आ बइकुंठ जाही।। – प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी छत्तिसगढ़ प्रांत म घलो बड़कन जियोतिरलिंग जइसन काल ल जितवइया भोला बबा के मंदिर-देवालय हवय जेखर सावन म दरसन, पूजा-पाठ अउ अभिसेक करे म सब पाप धुल जाथे। अइसनहे एक ठन मंदिर जांजगीर-चापा जिला म हसदो नदिया के तिर म बसे पिथमपुर म हवय। सावन महिना म, महासिवरात्रि म अउ चइत परवा से अम्मावस तक 15 दिन इहां मेला भरथे अउ धूल पंचमी के दिन इहां भोला बबा के बरात निकलथे जेला…
Read Moreरामनौमी तिहार के बेरा म छत्तिसगढ़ में श्रीराम
-प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी आज जऊन छत्तिसगढ़ प्रान्त हवय तेखर जुन्ना गोठ ल जाने बर हमन ल सतजुग, तेरताजुग अऊ द्वापरजुग के कथा कहिनी ल जाने-पढ़ेबर परही। पहिली छत्तिसगढ़ हर घोर जंगल रहिस। इहां जंगल, पहाड़, नदी रहिस जेखर सुघ्घर अउ सांत बिहनिया म साधु संत इहां तपस्या करय। इहां जंगली जानवर अउ राक्छस मन भी रहय जऊन अपन एकछत्र राज करे बर साधु संत मन डरावंय अऊ मार डारय। इकर बाद भी ये जगह के अड़बड़ महत्ता होय खातिर साधु संत मन इंहा रहय। इहां बहुतअकन साधु संत मन के…
Read Moreहिन्दू नवा बच्छर के बधाई..
आज फेसन के युग हे। ये बात सोलाआना सिरतोन हे फेर फेसन के चलन मा अपन जरी कटई हा अलहन ला नेवता देवई हरय। आज बिदेशी जीनिस ला अपनाय के चस्का मा अपन देशी मान मरजाद ला घलाव मेटावत चले जाथन। अइसने एकठन नवा फेसन हे 31 दिसंबर के अधरतिहा हो हल्ला करत नवा बच्छर के सुवागत करई। फेर सिरतोन मा एहा हमर भारतीय नवा बच्छर नो हे। पबरित भारत भुँइयाँ के शान अउ मान दु हजार ले जादा जुन्ना विक्रम संवत हा हरय जेखर सुग्घर सुरुवात चइत अंजोरी पाख…
Read Moreनवरात मा दस दोहा
1~भक्ति भाव भक्कम भरे, बंदन बदन बुकाय। राम-राम बड़ जीभ रटे, छूरी पीठ लुकाय। 2~ चंदन चोवा चुपर के, सादा भेस बनाय। रंगरेलिहा मन हवै, अंतस जबर खखाय। 3~जप-तप पूजा पाठ ले, नइ छूटय जी पाप। मन बैरागी जे करय, वोला का संताप। 4~ माया मोय मा मन रमे,भगवन मंदिर खोज। अंतस अपने झाँक ले, प्रभू दरस हे रोज। 5~ नौ दिन देवी देहरी, भंडारा दिनरात। लांघन महतारी मरे, कइसे बनही बात। 6 ~देवी सेवा जस करे, करथे कैना भोज। महतारी के कोख मा, बेटी हतिया रोज। 7~तन ला तपसी…
Read Moreकुकुर के महिमा
भईगे महुं ल कुछु, बोले बर नई मिलिस त सोचेंव, चल बाहिर म हवा खा आवं, बिहनचे उठेंव, बिन दतुन मुखारी घसे, किंदरे कस निकल गयेंव। रददा म काय देखत हंव!!! द दा रे आनि-बानि के टुकुर टुकुर देखत मनखे असन फबित ओन्हा पहिरे, कुकुर…, कोउनो कबरा, त कोउनो बिलवा त कोउनो भुरवा…. मने मन म कहेव.. कस ग भगवान मोला तै ह काबर मनखे जनम देहे ग, महु ल दईसनेहे कुकुर नई बना देतेस!!! आगू गें, त दू झिन संगी मन, कुकुर ल संकरी म बांधे गोठियावत रहें, त…
Read Moreकिताब कोठी : विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़
विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़ डॉ. विनोद कुमार वर्मा (छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर से अनुदान प्राप्त ) प्रकाशक : वदान्या पब्लिकेशन नेहरु नगर बिलासपुर मो. 77710-30030 मुद्रक : अंकुर प्रिंटर्स, बृहस्पति बाजार बिलासपुर मो . 98271-70543 भूमिका संस्कृत, हिन्दी और उसकी प्राय: समग्र प्रमुख लोकभाषाओं यथा-ब्रज, अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी़ के साथ भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी है। ध्वनि आधारित होने के कारण उच्चारण भी प्राय: समान ही हैं । प्रश्न उठता है यदि लिपि की समानता है तो वर्णमाला में भेद क्यों ? बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में…
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