रफी के छत्तीसगढ़ी गीत

रफी साहब….. हिंदी सनिमा जगत के बहुत बड़े नाम आय। जिंकर गुरतुर अउ मीठ अवाज के जादू के मोहनी म आज घलो जम्मो संगीत परेमी मनखे झूमरत रथे। उंकर अवाज के चरचा के बिना हिंदी सनिमा के गीत-संगीत के गोठ ह अधूरहा लागथे। जम्मो छत्तीसगढ़िया मन भागमानी हवय के अतिक बड़े कलाकार ह हमर भाखा के गीत ल घलो अपन अवाज दे हवय। रफी साहब के अवाज म छत्तीसगढ़ी गीत सुनना अपन आप म बड गौरव के बात आय। बछर 1965 के आसपास म जब छत्तीसगढ़ी सनिमा जगत के दादा…

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हिन्दी साहित्य के महान साहित्यकार उपन्यास सम्राट, कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद

हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दीर भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीं भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार हावय। हिन्दीं भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा मन आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दी3 साहित्य के इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल,…

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जल अमरित

पानी के बूँद पाके, हरिया जाथें, फुले, फरे लगथें पेड़ पउधा, अउ बनाथें सरग जस,धरती ल। पानी के बूँद पाके, नाचे लगथे, मजूर सुघ्घर, झम्मर झम्मर। पानी के बूँद पाए बर, घरती के भीतर परान बचाके राखे रहिथें टेटका, सांप, बिछी, बीजा, कांद-दूबी, अउ निकल जथें झट्ट ले पाके पानी के बूँद, नवा दुनिया देखे बर। पानी के सुवागत मं नाचथें फुरफून्दी, बत्तर कीरा। इसकूल घलोक करत रहिथे अगोरा पानी के खुले बर। पानी पाके लाइन घलोक हो जथे अंजोर, पहिली ले जादा। पानी ल पाके, किसान सुरु करथे काम…

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बेरा के गोठ : फिलिम के रद्दा कब बदलही

आजकल जौन ला देखबे तौन हा फिलिम, सिरियल अउ बजरहा जिनिस बेचइया विज्ञापन करइया मनके नकल करेबर अउ वइसने दिखेबर रिकिम रिकिम के उदिम करत हे।सियान मन कहिते रहिगे कि फिलिम विलिम ला देखव झिन, ये समाज अउ संस्कृति के लीलइया अजगर आय जौन सबो ला लील देही। आज वइसनेच होत हावय। हमर पहिराव ओढ़ाव, खाना पीना, रहना बसना, संस्कृति, परंपरा, तीज तिहार, बर बिहाव सबो फिल्मी होगे। देस मा जब फिलिम बनेबर सुरु होइस तब कोंदा फिलिम अउ करिया सफेद (ब्लेक एंड व्हाइट) फिलिम हा हमर देबी देवता के…

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चंदैनी गोंदा, रामचंद्र देशमुख, लक्ष्मण मस्तुरिया अउ खुमान लाल साव एक दूसर के पर्याय

लोक गायक महादेव हिरवानी के सांस्कृतिक संस्था “धरोहर” ह लोक संगीत के पुरोधा खुमानलाल साव अउ गीत के पुरोधा लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता म कन्हारपुरी, राजनाँदगाँव म “श्रद्धा-सुमन” के आयोजन करिस जेमा छत्तीसगढ़ के पचास ले आगर लोक मंच अउ उँकर कलाकार मन गीत अउ संगीत द्वारा अपन श्रद्धा सुमन प्रस्तुत करिन। कार्यक्रम के शुरुवात मा कर्मा भवन मा स्थित मंदिर म कर्मा माता के पूजा अर्चना होइस। तेखर बाद मंच मा खुमान लाल साव जी के फोटू मा उँकर बड़े बेटा चेतन साव, दाऊ दीपक चंद्रकार, अरुण कुमार निगम…

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कबीरदास कोन ? एक भक्त , समाज सुधारक या एक रहस्यवादी जन कवि

हमर देस राज म साहित्य बैदिक काल ले आज तलक समरिध हावय चाहे वो जब हिंदी भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिंदी भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिंदी भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिंदी साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल, रीतिकाल…

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दुसर के दुख ला देख : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! दुसर के दुख ला देख रे! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। काबर उमन कहय के दुसर के दुख ला देख। संगवारी हो ये दुनिया में भांति-भांति के मनखे हे। कोनो मन दुसर के दुख ला नई देखे सकय त कोनो मन दुसर के सुख ला नई देखे सकय यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय। तइहा के मनखे मन के मन में जम्मों जीव-जन्तु…

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दिनेश चौहान के आलेख – कबीर जयंती बर विशेष : जन-मन म बसे कबीर

हिन्दी साहित्य के अकास म आज ले लगभग सवा छै सौ साल पहिली एक अइसे नक्षत्र के उदय होय रिहिस जेला हमन कबीरदास के नाँव ले जानथन। कबीरदास जी कवि ले बढ़के एक समाज सुधारक रिहिन। जउन सोझ-सोझ अउ खर भाखा म बात केहे के बावजूद हिन्दू अउ मुसलमान दुनो के बीच समान रूप म लोकप्रिय होइन अउ आजतक ले हवँय। ऊँखर पूरा जीवन विवाद के चादर म लपटाय मिलथे। कबीरदास जी के माता-पिता अउ जनम के बारे म निश्चित ढंग ले कुछ कहना संभव नइ हे। कोनो कहिथे के…

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सुरता मा जुन्ना कुरिया

पच्चीस बच्छर बीत गे हावय। हमर आठ खोली के घर के नक्सा नइ बदलिस। चारो मुड़ा खोली अउ बीच मा द्वार। एक खोली ले बाड़ी डहर जाय के रद्दा। पच्चीस बच्छर पहिली कुवाँर कातिक मा ये नवा घर ला नत्ता गोत्ता संग मिलके सिरजाय रहिन। संगे संग मोर बिहाव करेबर टूरी खोजेबर बात चलात रहिन। मोरो लगन फरियाय रहय। माघ महिना मा घर सिरजगे। फागुन महिना के आखिर मा वो परिवार मिलगे जौन अपन बेटी देयबर तियार होगे। चइत मा चुमा चाटी,पेज पसिया, पइसा धरई होगे। बइसाख नम्मी मा भाँवर…

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लमसेना प्रथा चालू करव

आज मँय एक ठन अलकरहा गोठ करेबर जात हँव। आजकल हमर देस, प्रांत सबो डहर एकेच गोठ सुनेबर मिलथँय कि बहूमन अपन सास ससुर ला अबड़ तपथँय दुख देथँय। एहा समाजिक समस्या बनत जावत हावय। सास ससुर मन सियान होय के पाछू जब कुछु कमाय नइ सकय पइसा कउड़ी के आवक बंद हो जाथय, तब बहू मन के टेचरही गोठ सियानमन बर पहाड़ हो जाथय।कतको घर तो एक एक टिकली बर तरसथे। बड़हरमन तो वृद्धाश्रम भेज देथय। एकर इलाजबर जुन्ना दवई माने लमसेना लाय के परथा ला शुरू करे जाय।…

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