भोजन में दार भात बांकी सब कचरा। देवता में महादेव अऊ हे ते पथरा॥ छत्तीसगढ़ राज म कतको पुराना शिव मंदिर विराजमान हावे जेकर लेख इहां के बड़े-बड़े साहित्यकार मन बेरा-बेरा में उल्लेख करे हावे। कलचुरि काल अउ सोमवंशी राजकाल में शिवमंदिर सावन महिमा म बिसेस साधना के जगा होथे भगवान शिव हिन्दू धरम के […]
Category: गोठ बात
भक्ति-भाव के महापरब-सावन मास
व्रती मन सोमवार रखथे अउ फल फलहरी खाके उपास ल तोड़थें। शिवलिंग के पूजा में बेल पत्ता के अब्बड़ महत्व हे। पूजा में सिरिफ तीन पत्ती वाला अखंडित बेल पत्ता ही चढ़ाय जाथे। ये तीनों पत्ता ल मन, वचन अउ करम के प्रतीक माने गेहे। शिवलिंग में अधिकतर तीन लकीर वाला त्रिपुण्डी होथे। येहा शिव […]
नवा रइपुर मोर रइपुर
हर छत्तीसगढ़ वासी ल अपन प्रदेस उपर गरब करना चाही। काबर के ये प्रदेस ह वोला अइसन गरब करे के भरपूर मउका देथे। ये ह प्रदेस के सांस्कृतिक बल आय जउन वोला अपन मन के बुता करे के अपन मन के बात केहे-बोले अउ लिखे के आजादी देथे। ये सांस्कृतिक ताकत ल हमर प्रदेस के […]
सिक्छा आज दुकानदारी होगे हे, दुकानदारी का? ठेकादारी, ठेकादारी के नीलामी। ‘मोला सहे नहिं जात रहिस अनदेखी भूरि बरत रहि।’ हमर किसान के कोनो नइहे भाई। पइसा वाले के आजो पइसा हे। उंखरे सासन हे, रकस-रकस कमइया किसान, मजदूर ल आजो जानवर, गंवार समझे जाथे। साल भर म पूजा करे जाथे गाय गरूवा के देवारी […]
कला जगत म नइ चलय कोताही : राकेश साहू सुबह होती है, शाम होती है-जिन्दगी यूं तमाम होती हैं’। ये लाइन हर हाथ म हाथ धरे बैठे ठलहा बइठोइया आम मनखे मन बर सही बइठते। फेर अपन जिनगी म कुछु खास करे खातिर ठान लेवइया मनखे मन ऐला खारिज करत अपन परिवार के भरण-पोषण के […]
क्या आपने कभी किसी दुकान प्रतिष्ठान का नाम छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा पाया है? व्यवसाय क्षेत्र में कहीं भी चले जाइए आप एक भी छत्तीसगढ़ी नाम पा जाएं तो यह कोलम्बस की अमरीका खोज जैसा पुरुषार्थ होगा। दुकानों प्रतिष्ठानों के अंग्रेजी नाम ही लोगों को लुभाते हैं। चाहे वह प्रतिष्ठान का मालिक हो या ग्राहक, […]
बिकास के नाव म बिनास ल नेवता
उत्तराखंड म पाछु सोला जून के आय बाढ़ ल तो दुनिया ह देखत हे। ए तबाही ल भूलाना सायदेच कखरो ले संभव हो सकथे। ए तबाही म जिहां हजारों मनखे मन ह अपन परिवार के कतकोन मनखे मन ल गंवा दीन, उहें लाखो लोगन मन घर ले बेघर होगे। बिकराल तबाही के रूप म आय […]
समग्र साहित्यिक परंपराओं पर निगाह डालें तो वैदिक साहित्य भी श्रुति परंपरा का ही अंग रहा है। कालांतर में लिपि और लेखन सामग्रियों के आविष्कार के फलस्वरूप इसे लिपिबद्ध कर लिया गया क्योंकि यह शिष्ट समाज की भाषा में रची गई थी। श्रुति परंपरा के वे साहित्य, जो लोक-भाषा में रचे गये थे, लिपिबद्ध नहीं […]
इहां होथय सब के मनोकामना पूरन लोकमत हे कि जुन्ना करेला गांव के ” डोंगरी ” म दाई भवानी आदिकाल ले बिराजमान हवै। पर एक ठन कहिनी घलोक बताये जाथे – गाँव पटेल महेन्द्रपाल सिंग के परदादा उमेंदसिंग कंवर गांव के मालगुजार रिहीन। उन हर जेठ के महीना म गांव के कुछ लोगन संग परछी […]
जवारा अउ भोजली के महत्तम
एक समय पूरा छत्तीसगढ़ में सावन के महीना में सब कोनो भोजली बोवत रहिन। सबो गांव अउ शहर में घरो-घर भोजली दाई सावन मं लहरावत रहय। भोजली ल देवी के अवतार माने जात रहिस। आज के समय में भोजली अउ जवारा बोवाई नंदावत जावत हे। आज के पढ़े-लिखे मनखे मन भोजली के वैज्ञानिक महत्तम ल […]