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गुड़ी के गोठ गोठ बात

काम दहन के आय परब- होली

छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म भगवान शिव अउ वोकर परिवार ले जुड़े संस्कृति ल जीथे, एकरे सेती इहां के जतका मूल परब अउ तिहार हे सबो ह सिव या सिव परिवार ले जुड़े हावय। उही किसम होली जेला इहां के भाखा म होली कहे जाते। इहू हर भगवान भोलेनाथ द्वारा कामदेव ल भसम […]

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गोठ बात

नंदावत हे लोककला, चेत करइया नई हे…

गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा से खास बात ‘देवार डेरा’, ‘चंदैनी गोंदा’, कारी बर लिखे गीत अऊ कवि सम्मेलन मा सोझेच अपन मन के बात कहइया गीतकार कवि लक्ष्मण मस्तुरिहा के कहना हे कि नवा राज बने नौ बछर बीतगे फेर छत्तीसगढ़ के लोककला के चिन्हारी करइया नई मिलीस। जतका बड़का आयोजन होइस ओमा दिल्ली, बम्बई के […]

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गोठ बात

दारू बंदी के रद्दा अब चातर होवत हे

 हमर प्रदेस मा चारो मुड़ा कारखाना उपर कारखाना लगत हावय, धान के कटोरा छत्‍तीसगढ़ मा किसानी जोंत के रकबा दिनो-दिन घटत जावत हावय। सहर ले लगे गांव-खेत मन ला बिल्डिंग हा लीलत हावय अउ जंगल-ड़ोंगरी के जमीन मन ला कारखाना हा लीलत हावय। बांचे खोंचे किसानी के जमीन हा कारखाना के चिमनी ले उड़ात करिया […]

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मन के लाड़ू

रोज बिगड़ई म परिसान होके बिदही तीस हजार म मेटाडोर ल बेच दीस। घर म न चांउर रहीस न दार, उई पइसा ल सब उड़ात गिस। सब पइसा सिरागे त बिदही रोजी-रोटी कमाय जाय लगिस।’समारू ल गांव के सब छोटे बड़े मन बढ़िया मान गौन करयं। समारू हर तको अपन ले बड़े के गोड़ छू […]

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माँ-छत्तीसगढ़ के महत्व

जेन ह जिनगी भर लइका ल देते रहिथे। तभे तो प्रसाद जी कहे हे अतेक सुग्घर के मन म वोला गुनगुनाते रहाय तइसे लागथे इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्सर्ग छलकता है। मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं, इतना ही सरल झलकता है। व्यास जी कहे हे- ‘गुनी लइका ह दाई […]

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लींग परीक्छन के परिनाम

आज कई परिवार एक या दू लड़की ले संतुस्ट हावय अउ अपन लड़की ल इंजीनियर डाक्टर बनाये के सोचत हे। पिछड़ा समाज घलो ये विचार ल स्वीकारत अपन बेटी मन ल पढ़ावत हावय।आज के जुग ह बिज्ञान के जुग आय। आज बिज्ञान के सहारा ले मनखे ह कहां ले कहां पहुंच गे हे। जम्मो जिनिस […]

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छत्तीसगढ़ गीत म सिंगार रस

छत्तीसगढ़ी भाखा ल भले भारत सरकार ह भासा के मान्यता नइ देये फेर येमा जम्मो रस के गीत अउ गोठ समाय हे। तभे तो गीत म ये भाखा सही कोनो मीठ अउ धीरलगहा भाखा नइए केहे हे। मोर भाखा संग दया-मया के, सुग्घर हावय मिलाप रे। अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा, ककरो संग झन नाप रे॥ ये […]

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आम जनता के गणतंत्र

तीन कोरी एक आगर बरिस पहिली हमर देस के संविधान ला लागू करत खानी जउन किरिया हम अउ हमर जम्‍मो भारत के मनखे मन खाये रहेन वो किरिया हा कतका सुफल होए हे तउन ला आज के दिन बिचार करे के बात हे। वो समे अउ हमर गणतंत्र के अभी के हाल ला सोंचे बिना […]

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किसान मन के अन्नदान परब छेरछेरा पुन्नी

किसान उपजाए धान ले मिंजके कोठार म रास बनाके अन्नपूरना ”लक्ष्मी देवी” के रूप म नरियर अउ हूम-धूप ले पूजा करथे ओखर बाद कोठी म भंडारन करे खातिर ले जाथे। स्कंद पुरान म दान के महत्ता दरसाय गे हवय, ओखर मुताबिक कमाय धन के दसवां भाग दान करना आदमी के करतब है। ये ही सब […]

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छत्तीसगढ़ी भासा बर सकारात्मक संवाद जरूरी हे

लोक म बोलचाल के भासा अपन-अपन स्थान विसेस म अलग-अलग होथे। अपन स्थानीय अउ जातीय गुन के आख्यान करथे। फेर प्रदेस अउ देस के भासा बनत खानी बेवहार म एकरूपता जरूरी हो जाथे। येला हम विविधता म एकरूपता भी कह सकत हन। बिलकुल इही बात बोलचाल के भासा अउ साहित्य के भासा अउ मानकीकरन भासा […]