लोक म बोलचाल के भासा अपन-अपन स्थान विसेस म अलग-अलग होथे। अपन स्थानीय अउ जातीय गुन के आख्यान करथे। फेर प्रदेस अउ देस के भासा बनत खानी बेवहार म एकरूपता जरूरी हो जाथे। येला हम विविधता म एकरूपता भी कह सकत हन। बिलकुल इही बात बोलचाल के भासा अउ साहित्य के भासा अउ मानकीकरन भासा म लागू होथे। मानकीकृत छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ बर परम आवस्यकता बनगे है। ये बात ल समय के जरूरत मान के स्वीकार करना परही चाहे रोके करी के धो करी। येफर्रा छत्तीसगढ़ी भासा के मानकीकरन ल ले…
Read MoreCategory: गोठ बात
छत्तीसगढ़ी के सरूप
‘छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें। असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे। जेकर कारन ओ मन सुछिंद एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे।’ छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के डेढ़ करोड़ लोगन के मातृभासा, संपर्क भासाय ये अउ तीर-तखार के उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, अउ झारखण्ड के इलाका मन म तइहा ले रहत आत छत्तीसगढ़िया मन के भासा ए। छत्तीसगढी क़े संगे-संग…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गीत नंदावत हे
गीतकार, कवि सुशील यदु से खास बातचीत अंचल के जाने माने कवि व गीतकार सुशील यदु ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकगीत, लोककला को संरक्षित करने शासन स्तर पर कोई खास प्रयास नहीं हो रहे हैं। पंजाब की तर्ज छत्तीसगढ़ के लोकउत्सव में भी सिर्फ छत्तीसगढ़ के लोककला व संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम प्रमुखता से हो। बाहर के कलाकार बुलाकर अपने कलाकारों को हतोत्साहित करना उचित नहीं है। कवि सुशील यदु ने इस आशय के विचार ‘देशबन्धु’ के कला प्रतिनिधि से खास मुलाकात में व्यक्त किए। 0 वाचिक…
Read Moreबरी बिजौरी करत हे चिरौरी
कहां नंदागे चरौंटा भाजी अउ गुरमटिया के भात। लागय सुग्घर खोटनी भाजी, खोटनी बरी संग भात। अब तो सुरता रहिगे, रंधनी घर के सेवाद सिरागे। सि रतोन बात ताय। तइहा-तइहा के बरी-बिजौरी ल खाय बर जे जुन्ना मनखे बांचे हे ते मन तरस गे हे। डुबकी, चीला, बूंदिया, भजिया के कढी घला आज रंधनी घर ले परा गे हें। जे दू-चार झन सियनहा बांचे हे ते मन कहूं खाय के सउख कर पारही त आज के बोहो-बेटी मन चिटपोट नइ करयं अउ बपुरा सियनहा जीभ ल चांटत अपन पानी ल…
Read Moreजइसे खाबे अन्न तइसे बनही मन
‘सेठ ह कहिथे- महंतजी, मे ह चोरी के बाहना बिसाय रहेंव व वोमा मोला अड़बड़ फायदा होइस तेकरे सेती में ह मंदिर म दान दे रहेंव। महंत जी वो अनाज के प्रभाव ल समझिस’ हमर खवई पिययि ह हमर मन का बनाथे- बिगाड़थे एकरे सेती हमर सास्त्र-पुरान ह खाय-पिये म पबरित रहय। अइसे बताय हे। जेन धन ले अनाज बिसाय गे हे वोकरो असर ह मनखे के मन ल परभावित करथे। वृन्दावन (उ.प्र.) के घटना आय- एक मंदिर म एक झन महात्मा रहत-रहय। एक रात के घटना आय वो ह…
Read Moreबम-निकलगे दम
एक झन कहिस- का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नहीं तिहां बम फोरत हे, गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे। हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाए बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही। बम! जइसने बम के गोठ निकलिस रेल ह थरथरागे अउ वोकर पोटा कांपे ल धर लिस। वोला बम…
Read Moreछत्तीसगढ़ी में मुहावरा के परयोग
लोक जीवन में बोलचाल में मुहावरा के बड़ महत्व हे। ये भाखा अउ बोली के सिंगार होथे। ये ह गोठ बात के बेरा म ओला परभावशाली अउ वजनदार बनाथे। ये गोठ बात ल पूरा करे के साथे -साथ सही समे अउ इस्थान में परयोग करे ले बोलइया-लिखइया के भाखा में परगट करथे। हमर छत्तीसगढ़ी घलो ह एक बड़हर भाखा आय। मय अपन बीच उठया-बैठइया साहित्यकार संगवारी मन ल पूछेंव कि मुहावरा ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे, तो कोनो सुलिनहा जवाब नइ दिन। कोनो ‘हाना’ बताइन तो कोनो ‘पटन्तर’ कहिन। जबके…
Read Moreपातर पान बंभुर के, केरा पान दलगीर
‘राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…
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राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…
Read Moreचिल्हर के रोना
आज के समे अइसन उपाय तो चिल्हर के रोना बर करे नी जा सकय। काबर के चिल्हर के रोना एक, दू अउ पांच रुपिया के जादा रथे अउ एकर नोट छपना बंद हो गे हे। अरे बंद नी होय होही ते कमती जरूर हो गेहे। तेखरे सेती अब चिल्हर के रोना ल खतम नी करे जा सके। ये सबर दिन के रोना बन गे हे, अम्मर हो गे हे। सरकार चुमड़ी-चुमड़ी सिक्का बांटथे फेर कोजनी चारेच दिन म कहां उछिन हो जथे। चिल्हर के रोना फेर जस के तस। कतको…
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